सांस रोगियों का दर्द छूमंतर करेगी नेविगेशन नोड्यूल विधि गूगल की तरह नेविगेशन पण्राली सांस की नली में जाएगा, बीमारी का पता लगा दर्द रहित है विधि, एम्स में शुरू, मरीजों को मिलेगी यह सुविधा मुफ्त में दावा: देश में इस विधि का पहली बार प्रयोग, एम्स में ही होती है यह जांच टीबी, कैंसर, फंगल इंफेक्शन, ट्यूमर की पहचान प्रारंभ में

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ज्ञानप्रकाश नई दिल्ली । सन तंत्रिका पण्राली, फेफड़ों संबंधी विकृतियों से जूझ रहे देश के मरीजों के लिए राहत की खबर है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के वैज्ञानिक अब नेविगेशन तकनीक के सहारे सन पण्राली की स्थिति का आकलन करने में इस्तेमाल कर रहे हैं। इसे फिलहाल यहां पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर प्रारंभ किया गया है। जिसके सकारात्मक परिणाम मिल रहे हैं। दिचलस्प यह है कि नेविगेशन का प्रयोग फिलहाल दुनियाभर की जानकारी लेने के लिए गूगल नक्शे की मदद ली जाती रही है। इसी विधि का प्रयोग मरीजों के सांस की नली में मौजूद विकृतियों की पहचान कर रहे हैं।
क्या है विधि:
चिकित्सीय जगत में इसे वर्चुअल ब्रोंकोस्कोपी नेविगेशन (डब्ल्यूबीएन) कहते हैं। एम्स में अब तक चार मरीजों की इस अत्याधुनिक तकनीक से जांच भी हो चुकी है।
इस एक्सपर्ट्स ने की शुरुआत:
एम्स के पल्मोनरी मेडिसिन एंड स्पील डिस्आर्डर विभाग के प्रोफेसर डा. आनंत मोहन के अनुसार अक्सर सांस की नली में दिक्कत होने पर मरीजों का सीटी स्कैन या चेस्ट एक्सरे कराया जाता है। इन जांच केआधार पर सांस की नली में नोड्यूल की मौजूदगी तो पता चल जाती है, लेकिन इसकी सटीक पहचान करना एक चुनौती भरा कदम रहता है। डाक्टर को एक नीडिल के जरिए शरीर के अंदर सांस नली तक सैंपलिंग करनी पड़ती थी। इस प्रक्रिया को बॉयोप्सी कहते हैं। लेकिन वर्चुअल ब्रोंकोस्कोपी नेविगेशन तकनीक से शरीर में बगैर नुकीली लंबे आकार की दर्द भरी सुई डाले काम हो सकता है।
ट्यूमर की भी पहचान:
इस विधि का प्रयोग करने वाले डा. करण मदान ने बताया कि अगर नोड्यूल की जांच समय पर होती है तो इससे कैंसर, टीबी, फंगल इंफेक्शन, निमोनिया के अलावा अन्य कई प्रकार के कैंसर्स ट्यूमर की पहचान कर शुरु आती स्टेज में ही रोका जा सकता है। अभी तक ये विधि देश के किसी भी सरकारी और निजी अस्पताल में उपलब्ध नहीं है। लेकिन एम्स में यह मरीजों के लिए नि:शुल्क सुविधा है।
मरीजों के जीवन के लिए वरदान:
एम्स निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया ने बताया कि सांस और फेफड़ों से जुड़ी परेशानियों को लेकर अस्पताल आने वाले मरीजों के लिए यह विधि किसी संजीवनी से कम नहीं है। एम्स का पल्मनेरी मेडिसिन एवं स्लीप डिस्ऑर्डर विभाग और उसकी टीम अक्सर नई नई तकनीकों के जरिए मरीजों के इलाज को आसान बनाने में नवीनतम विधि खोज करती रहती है। फेफड़ों में कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इस नेविगेशन के जरिए इस तरह के मामलों को शुरु आत में रोका जा सकता है। उन्होंने कहा कि 23 अप्रैल को ही एम्स में इस मशीन के जरिए पहले मरीज की जांच की गई थी। सांस रोगियों के जीवन स्तर सुधरेगा। उनका दर्द भी कम होगा।

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