ध्वनि प्रदूषण में अग्रणी चार शहरों में दिल्ली दूसरे स्थान पर लंबे समय तक शोर के संपर्क में रहने से श्रवण हानि और अन्य समस्याएं हो सकती है

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ज्ञान प्रकाश नई दिल्ली, वि स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की हालिया एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की राष्ट्रीय राजधानी, दिल्ली उच्च शोर प्रदूषण के मामले में दूसरा सबसे खराब शहर है। शोर प्रदूषण इस शहर की एक बढ़ती समस्या है। शोर की सूची में इसके बाद जो शहर आते हैं, वे हैं काहिरा, मुंबई, इस्तांबुल और बीजिंग। इन शहरों में शोर का स्तर तीन अंकों तक पहुंच गया है।
शोर प्रदूषण को आम तौर पर इतने ऊंचे ध्वनि स्तर के लगातार संपर्क में रहने के आधार पर परिभाषित किया जाता है, जो मनुष्यों या अन्य जीवों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। कोई व्यक्ति प्रतिदिन 8 घंटे तक 80 डीबी शोर का एक्सपोजर सहन कर सकता है। चार घंटे के लिए 85 डीबी, 2 घंटे के लिए 90 डीबी, एक घंटे के लिए 95 डीबी, 30 मिनट के लिए 100 डीबी, 15 मिनट के लिए 110 डीबी के लिए 105 डीबी और एक मिनट से कम समय के लिए 110 डीबी शोर को मानव कान बर्दास्त कर सकते हैं।
एक्सपर्ट्स की नजर में:
हार्ट केअर फाउंडेशन आफ इंडिया (एचसीएफआई) के अध्यक्ष पद्मश्री डा. केके अग्रवाल ने कहा, ‘परमिसिबल लेवल से ऊपर के शोर का एक्सपोजर स्वास्थ्य के लिए एक जोखिम है। शोर-शराबे वाले यातायात के लंबे संपर्क से कुछ मामलों में शोर से होने वाला हियरिंग लास हो सकता है। शोर शरीर को सिम्पेथेटिक मोड में बदल देता है और हमें जागरुकता आधारित निर्णयों से दूर ले जाता है। शोर से अधिक प्रभावित लोगों में यातायात पुलिस प्रमुख है। शोर के ऊंचे स्तर से टिनिटस विकार (कान बजना) हो सकता है। टिनिटस आगे चलकर विभिन्न मनोवैज्ञानिक समस्याओं का कारण बन सकता है और व्यक्ति नींद न आने, अनियमित रक्तचाप और शुगर के लेवल से पीड़ित हो सकता है। अंतर्राष्ट्रीय शोर प्रदूषण जागरूकता दिवस पर, इन पहलुओं पर जागरूकता पैदा करना और व्यक्तिगत स्तर से शुरू करके शोर को रोकने के लिए कदम उठाने आवश्यक हैं।’

दिशानिर्देशों के अनुसार, आवासीय क्षेत्रों में अनुमत शोर स्तर रात के समय 45 डीबी और दिन में 55 डीबी है। साइलेंस जोन में अनुमत शोर सीमा दिन में 50 डीबी (6 बजे से शाम 10 बजे) और रात के समय में 40 डीबी (10 बजे से सुबह 6 बजे) होती है।
25 को नो हार्न डे:
सीमाओ के उपाध्यक्ष डा. अग्रवाल के अनुसार ‘सड़क पर, हॉर्न केवल तभी उपयोग करना चाहिए जब पूरी तरह से जरूरी हो। निरंतर हार्न बजाने से न केवल यातायात संतुलन बिगड़ता है, बल्कि दूसरों के मन की शांति भी खो जाती है। आईएमए-एनआईएसएस देश भर में 25 अप्रैल को नो हर्न डे के रूप में मना रहा है, क्योंकि यातायात का शोर, देश में शोर प्रदूषण का एक प्रमुख घटक है।’
सुझाव:
साइलेंस जोन और नो होंकिंग वाले साइनबोर्ड, स्कूलों और अस्पतालों के पास लगाने चाहिए।
तेज आवाज वाले हॉर्न और मोडिफाइड साइलेंसर वाली मोटरबाइक तथा शोर मचाने वाले ट्रकों पर प्रतिबंध लगाने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए।
पार्टियों और डिस्को में लाउडस्पीकरों के उपयोग के साथ-साथ सार्वजनिक घोषणा पण्रालियों की जांच होनी चाहिए और इन पर प्रतिबंध होना चाहिए।
शोर के नियमों को साइलेंस जोन में कड़ाई से लागू किया जाना चाहिए।
सड़कों के आसपास और आवासीय क्षेत्रों में पेड़ लगाने से ध्वनि अवशोषित की जा सकती है। यह ध्वनि प्रदूषण को कम करने का एक अच्छा तरीका है।

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