देश की राजधानी दिल्ली की 16 फीसद महिलाएं कम उम्र में गर्भाशय विकृति की गिरफ्त में -गर्भाश्य खराब होने के कारण मां बनने लायक नहीं -कारण: ज्यादातर मामलों में जीवन शैली के कारण हार्मोनल असंतुलन

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ज्ञान प्रकाश नई दिल्ली, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के सहयोग से नोवा इवी फर्टिलिटी और इवी स्पेन द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि लगभग 1-2 फीसद भारतीय महिलाएं 29 से 34 साल के बीच रजोनिवृत्ति के लक्षणों का अनुभव करती हैं। इसके अतिरिक्त 35 से 39 साल की उम्र के बीच महिलाओं के मामले में यह आंकड़ा 8 फीसद तक बढ़ जाता है। इसमें देश की राजधानी दिल्ली की 30 साल से 40 साल की उम्र की करीब 16 फीसद महिलाएं समय पूर्व अंडाशय विफलता (गर्भाश्य विकृति) से जूझ रही है।
मंगलवार को रिपोर्ट के हवाले से नोवा इवी फर्टिलिटी की निदेशक एवं आईवीएफ एक्सपर्ट डा. पारुल सहगल ने बताया कि
कोकेशियन महिलाओं की तुलना में भारतीय महिलाओं की ओवरीज छह साल अधिक तेज है। इसके बारे में निहितार्थ बहुत गंभीर हैं – इन दिनों जोड़े पश्चिम का अंधानुकरण कर रहे हैं और देरी से विवाह करते हैं और इसी तरह गर्भधारण भी देर से करते हैं, वे इस बात से अनजान हैं कि भारतीय महिलाओं की जैविक घड़ी तेजी से टिक-टिक कर रही है। एक हालिया विश्लेषण में भी 36 वर्ष से कम उम्र की भारतीय महिलाओं में बांझपन के सामान्य कारणों को पाया गया। पलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओएस) महिलाओं में बांझपन का सबसे सामान्य कारण माना जाता है, जो लगभग 20: महिलाओं में होता है।


यह भी:
‘प्रीमैच्यौर ओवेरियन फेल्योर (पीओएफ) को समय से पूर्व अंडाशय में खराबी आने के रूप में जाना जा सकता है। इसमें कम उम्र में ही (35 वर्ष से कम उम्र में) अंडाशय में अंडाणुओ की संख्या में कमी आ जाती है। सामान्यत: महिलाओं में 40-45 वर्ष की उम्र तक अंडे बनते रहते हैं। यह रजोनिवृत्ति से पहले की औसत आयु है। पीओएफ के मामलो में महिलाओं में तीस वर्ष की उम्र में ही अंडाणु नहीं मिलते हैं।
एलर्ट रहनी की जरूरत:
चिंता वाले तथ्य ये हैं कि 18-20 फीसद युवा महिलाएं लो ओवेरियन रिजर्व या समयपूर्व अंडाशय की विफलता से ग्रस्त हैं। माना जाता है कि लो ओवेरियन रिजर्व आम तौर पर बडी उम्र के बाद होता है (35 से अधिक)। फैलोपियन टय़ूब क्षतिग्रस्त होने पर महिलाओं को स्वाभाविक रूप से गर्भ धारण नहीं हो सकता है। निसंतानता के 9 प्रतिशत मामलों में यही कारण जिम्मेदार होता है। एंडोमेट्रियोसिस – एक ऐसी स्थिति जिसमें महिला के गर्भाशय (एंडोमेट्रियम) के अंदर के टिश्यूजं गर्भाशय के बाहर बढ़ते हैं, जिससे दर्दनाक माहवारी होती है। पांच फीसद नि:संतान महिलाओं में यही कारण होता है।

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