जानलेवा कैंसर सेल्स के उन्मूलन की मद में खर्च होंगे पौने दो सौ करोड़ बच्चों में होने वाले कैंसर कोशिकाओं को खत्म करने के लिए होगा प्रोटॉन का प्रयोग

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ज्ञानप्रकाश
नई दिल्ली देश में कैंसर के इलाज और गुणवत्तापूर्ण नैदानिक तकनीकों को और धार मिलने वाली है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के वैज्ञानिकों की देखरेख में एनसीआर के दायरे में आने वाले झज्जर स्थित नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट (एनसीआई) को नवीनतम तकनीकों से सुस्सज्जित करने के उद्देश्य से करीब दो सौ करोड़ का बजट दिया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने नीति आयोग को लिखे पत्र में यह मांग की थी। जिसके तहत वित्त विभाग ने इस महती योजना को अमलीजामा पहनाए जाने के लिए राशि जारी कर दी है।
एम्स में बीआरए आईआरसीएच के निदेशक एवं (एनसीआई) के चेयरमैन डा. जीके रथ ने राष्ट्रीय सहारा से कहा कि अत्याधुनिक मशीनें स्थापित होने के बाद यह तय है कि देश में होने वाले असमय कैंसर संबंधी मृत्युदर में कमी दर्ज की जाएगी। समय पर असरदार इलाज होगा पहचान की जाएगी, इसमें ऐसी तकनीक से जुड़े उपकरणों को स्थापित करने की योजना है जो अब तक देशभर में ये सुविधा एक दो निजी अस्पतालों में ही है। जो आम लोगों की पहुंच से कोसों दूर है। वे इतनी महंगी जांच इलाज संबंधी विधि है जिस पर आने वाला खर्च हर मरीज उठा नहीं सकता है। यहां पर ये सुविधाएं मुफ्त में प्रदान की जाएगी।
खास बातें:
बच्चों में होने वाले कैंसर में खास तौर पर इस्तेमाल होने वाली अन्य तकनीकों में से एक तकनीक का जिक्र करते हुए डा. रथ ने कहा कि इस तकनीक की खास बात यह है कि इसमें कैंसर कोशिकाओं को खत्म करने के लिए प्रोटॉन का इस्तेमाल किया जाएगा। इसके लिए टेंडर प्रक्रिया शुरू हो गई है 2020 में शुरू होने की उम्मीद जताई जा रही है। अभी तक कैंसर कोशिकाओं को समाप्त करने के लिए जिस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है, उसमें कैंसर के बाहरी हिस्से में तो ज्यादा असर होता था, लेकिन बीच में असर कम होता था। लेकिन नई थेरेपी जिसे प्रोटोन थेरेपी कहा जाता है, में दवा को मशीन के द्वारा कैंसर के न्यूक्लिसय में पहुंचाया जाता है। जिससे दवा का असर ज्यादा होगा। इसे ब्राग पिक भी कहा जाता है। इसके लिए प्रोटोन थेरेपी मशीन का इस्तेमाल किया जाता है।
यह भी:
बत्तरा हास्पिटल एंड रिसर्च सेंटर कैंसर यूनिट के डा. इरफान बसीर यूं तो इसका इस्तेमाल लगभग सभी प्रकार के कैंसर के इलाज में किया जाता है लेकिन बच्चों में यह खास प्रभावी माना जाता है। कंसल्टेंट ओंकॉलॉजिस्ट डा. अनिल थकवानी के अनुसार अमरीका में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला यह तकनीक अभी देश में केवल चेन्नई स्थित अपोलो में ही यह सुविधा मौजूद है। सरकारी उपक्रम में ऐसी सुविधा के प्रारंभ होने से कैंसर के शुरुआत लक्षण पहचन और उपचार में मदद मिलेगी।

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