एनएमसी बिल संसद में पारित: डाक्टर बिरादरी के एक धड़े ने सिरे से किया खारिज -कहा भ्रष्टाचार को बढ़ावा देगा -बदलाव न होने पर देशव्यापी स्वास्थ्य सेवाएं ठप करने की दी चेतावनी

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ज्ञानप्रकाश
नई दिल्ली , सोमवार को बेशक संसद में एनएमसी बिल 2019 बहुमत के साथ पारित कर दिया गया है। बावजूद इसके डाक्टर बिरादरी ने केंद्र सरकार के इस कदम अपनी गहरी नाखुशी व्यक्त की है। जहां आज संसद में एनएमसी बिल को पेश करने से पहले सत्ता और विपक्ष अपना मंतव्य रख रहे थे वहीं संसद के बाहर देशभर के मेडिकल कॉलेजों के शीषर्स्थ अधिकारी, मेडिकल स्टूडेंट्स, निजी व सरकारी अस्पतालों में प्रैक्टिशरत डाक्टर इस बिल का विरोध में संसद का घेराव कर रहे थे।
दी देशव्यापी आंदोलनी की धमकी, कहा स्ववास्थ्य सेवाएं कर देंगे ठप:
देशव्यापी आंदोलन की चेतावनी देते हुए डाक्टरों ने सरकार को चेताया है कि वह उसकी बात यदि गंभीरता से नहीं मानेगी तो उन्हें ऐसा करने के लिए विवश होना पड़ेगा। बेशक आवश्यक रखरखाव सेवा अधिनियम (एस्मा) सरकार लगा दे लेकिन वे जन आंदोलन कर स्वास्थ्य सेवाएं पुरी तरह से ठप कर देगी। आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. सांतनू सेन के अनुसार 2016 से एनएमसी बिल के खिलाफ लड़ रहे है। बिल में केवल कॉस्मेटिक बदलाव हुए हैं और आईएमए द्वारा उठाई गई मुख्य चिंताओं को लेकर अभी तक कोई कदम नहीं उठाया गया है। बिल में धारा 32 को भी जोड़ा गया है, जो ऐसे लोगो को चिकित्सा का अभ्यास करने के लिए कानूनी अधिकार देता है जिन्हें मेडिकल से संबंधिक कोई ज्ञान नहीं और इस तरह यह केवल लोगों के जीवन को खतरे में डाल रहा है। इस प्रकार निडर होकर कभी कोई इसके खिलाफ नहीं खड़ा हुआ है। एनएमसी बिल एक प्रो-प्राइवेट मैनेजमेंट बिल है जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहा है।
जनता हित में नहीं:
आईएमए के राष्ट्रीय महासचिव डा. आरवी अशोकन के अनुसार इस कठोर और खोखले बिल को इस उद्देश्य लाया गया है जिससे सारा अधिकार भारत सरकार के हाथों में आजाए, जो बिल्कुल भी जनता के हित में नहीं है और साथ ही मेडिकल शिक्षा और पेशेवरों के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है। निजी मेडिकल में सीटों के लिए फीस को बढ़ा दिया जाएगा जिसके कारण देश में चिकित्सा की पढ़ाई बहुत महंगी हो जाएगी। इसका सबसे ज्यादा असर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग पर पड़ेगा। इस तरह यह गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों को चिकित्सा की पढ़ाई से प्रभावित रूप से वंचित कर रहा है।
आईएमए क्या है:
आईएमए 70 वर्षो से समाज में मेडिकल शिक्षा की गुणवत्ता को बनाए हुए है जो स्वयं रोगियों को बेहतर स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने वाली सुविधाओं में से एक है। आईएमए समय-समय पर दवा की कीमतों में कटौती करने और अस्पतालों में ईडब्ल्यूएस आरक्षण को बढ़ावा देने के अलावा कई अन्य चीजों के लिए आम जनता का साथ देता रहा है। एनएमसी बिल के खिलाफ आंदोलन भी एक नया उदाहरण है कि कैसे आईएमए सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा कर रहा है जिसमें कोई व्यक्तिगत हित शामिल नहीं है।
हषर्वर्धन ने दी सफाई:
लोकसभा ने सोमवार को ‘राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग विधेयक-2019’ को मंजूरी दे दी। सरकार ने इस पर विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि एनएमसी विधेयक निहित स्वार्थी तत्वों का विरोधी है जिसमें राज्यों के अधिकारों को बनाये रखते हुए एकल खिड़की वाली मेधा आधारित पारदर्शी नामांकन प्रक्रिया को बढावा देना सुनिश्चित किया गया है। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डा. हषर्वर्धन ने कहा कि यह कहना सही नहीं है कि राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) विधेयक संघीय स्वरूप के खिलाफ है। राज्यों को संशोधन करने का अधिकार होगा, वे एमओयू कर सकते हैं। डा. हषर्वर्धन ने कहा एनएमसी विधेयक निहित स्वार्थी तत्वों का विरोधी और लोकोन्मुखी है। यह इंस्पेक्टर राज को कम करने में मदद करेगा । इसमें हितों का टकराव रोकने की व्यवस्था की गई है। डाक्टरों के डाटाबेस से शुचिता सुनिश्चित की जा सकेगी। यह लोकोन्मुखी विधेयक है । इसमें नीम हकीमों को कड़ा दंड देने का प्रावधान किया गया है। भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) में लंबे समय से भ्रष्टाचार की शिकायतें आ रही थीं। इस मामले में सीबीआई जांच भी हुई। ऐसे में इस संस्था के कायाकल्प की जरूरत हुई। आईएमए (भारतीय चिकित्सक संघ) की उठाई गई आशंकाओं का समाधान होगा।
एनएमसी बिल:
एनएमसी विधेयक में परास्नातक मेडिकल पाठ्यक्रमों में प्रवेश और मरीजों के इलाज के लिए लाइसेंस हासिल करने के लिए एक संयुक्त अंतिम वर्ष एमबीबीएस परीक्षा नेशनल एक्जिट टेस्ट (नेक्स्ट) का प्रस्ताव दिया गया है। यह परीक्षा विदेशी मेडिकल स्नातकों के लिए स्क्रींिनग टेस्ट का भी काम करेगी। राष्ट्रीय प्रवेश परीक्षा ‘नीट’ के अलावा संयुक्त काउंसिलिंग और ‘नेक्स्ट’ भी देश में मेडिकल शिक्षा क्षेत्र में समान मानक स्थापित करने के लिए एम्स जैसे राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों पर लागू होंगे।

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