ज्ञान प्रकाश नई दिल्ली, यूनिसेफ इंडिया के कार्यवाहक स्वास्थ्य प्रमुख डा. गगन गुप्ता ने केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की हालिया रिपोर्ट के हवाले से बताया कि बीते वर्षो में देश ने नवजातों की मौत को कम करने के मामले में अच्छा प्रयास किया है। जिसकी वजह से वर्ष 1990 और 2016 के दौरान नवजातों के मौत के आंकडों में करीब ढ़ाई करोड़ की कमी आई है। जो करीब 66 प्रतिशत है। उन्होंने बताया कि इसकी बड़ी वजह लोगों में बढ़ी जागरूकता है। जिसकी वजह से बाल विवाह और किशोरावस्था में गर्भाधान के मामलों में 50 फीसद की कमी आई है।
नवजात बच्चियों की मौत चिंता का कारण:
डा. गगन के अनुसार बेशक नवजात बच्चों के मौत के आंकड़ों में कमी आई है, लेकिन अभी भी इस दिशा में काफी काम करना शेष है। क्योंकि नवजात लड़को के मुकाबले नवजात लड़िकयों ?की मौत के आंकडे अभी भी देश में ज्यादा हैं। वर्ष 2016 में भी यह फासला 11 प्रतिशत का है। हालांकि 2013 में यह फासला 17 प्रतिशत का था। लेकिन इस छह प्रतिशत की कमी के बाद भी भारत दुनिया का एक मात्र बड़ा देश है जहां नवजात लड़िकयों का मृत्यूदर नवजात लड़कों से ज्यादा है।
50 लाख प्रसव अभी भी घर पर
चलाया गया अभियान:
यूनिसेफ की मीडिया प्रोटोकॉल सोनिया सरकार ने कहा कि सोनिया सरकार ने कहा कि बीते वर्षो में चलाए गए सरकारी कार्यक्रमों की वजह से अस्पताल में प्रसव कराने को लेकर जागरु कता बढ़ी है। जिसकी वजह से 80 फीसद तक प्रसव अस्पतालों में होने लगे हैं, लेकिन इसके बाद भी हर साल करीब 50 लाख महिलाओं का प्रसव अस्पताल के बाहर घर पर हो रहा है। चिंताजनक तो यह है कि अस्पताल में प्रसव होने के बाद भी करीब आधे बच्चों को जन्म के पहले घंटे में मां का दूघ नहीं मिल पा रहा है। इसे बढ़ाए जाने की जरूरत है।