भारत चौहान नई दिल्ली , हर बीमार को सुरक्षित रक्ताधान करने से पहले न्यूकलिक एसिड टेस्ट (नैट) अनिवार्य कर दिया गया है। नैट का मतलब यह होता है कि ब्लड बैंक में स्वैच्छिक रक्तदाता से प्राप्त रक्त में वायरस 1, हेपेटाइटिस बी और सी जैसे अति खतरनाक माने जाने वाले संक्रमण की पहचान की जाती है। जब जांच निगेटिव पाई जाती है तभी उस खून को किसी रोगी या फिर उसके बीमार रिश्तेदार को चढ़ाया जाता है।
नैट के महत्व पर फोकस करते हुए थेलेसेमिक इंडिया की सदस्य सचिव और थेलेसेमिक पैशेंट्स एड्वोकेसी ग्रुप (टीपीएजी) की संयुक्त सचिव अनुभा तनेजा मुखर्जी ने अपने विचारों को साझा किया। नैट जागरुकता अभियान की शुरूआत करते हुए सोमवार को अनुभा ने कहा कि मेरे इस काम में मुझे केंद्र सरकार और थेलेसीमिया से ग्रस्त दूसरे लोगों का भी पूरा समर्थन मिला। मैं चाहती हूं कि जब हमारे देश में थेलेसीमिया के लोगों को विस्तरीय दवाईयां और दूसरे उपचार उपलब्ध हैं, तो ऐसे में रक्तधान के दौरान होने वाले संक्रमणों को पूरी तरह रोका जाए। कई मरीजों जिनकी किसी दुर्घटना या बीमारी के चलते सर्जरी हो रही हो, उन्हें या तो संपूर्ण रक्त या रक्त के किसी कम्पोनेंट (घटक) की जरूरत पड़ती है। इसलिए, यह बहुत जरूरी है कि दान में प्राप्त हुए रक्त की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत तकनीकों द्वारा स्क्रीनिंग की जाए, ताकि रक्ताधान के दौरान एचआईवी, हेपेटाइटिस जैसे संक्रमणों को रोका जा सके।
थेलेसीमिया मेज़र की समस्या के साथ जन्मीं तनेजा ने कहा कि जिसमें हर पंद्रह दिन में खून चढ़ाना (रक्ताधान) जरूरी होता है। 15 वर्षो से यह सिलसिला लगातार चल रहा था, लेकिन सोलहवें वर्ष में रक्ताधान के दौरान वो संक्रमण की चपेट में आ गई। जब डायग्नोसिस किया गया तो पता चला की जो रक्त चढ़ाया गया था वो सुरक्षित नहीं था, जिसके चलते उन्हें हेपेटाइटिस सी हो गया है। इस घटना ने उनका जीवन बदल दिया। और हमेशा के लिए रक्ताधान के दौरान संक्रमण की आशंका के भय और चिंता को उनके मस्तिष्क में अंकित कर दिया। आज इस घटना को आठ वर्ष हो गए, लेकिन उनका दूसरे लोगों को रक्ताधान के दौरान संक्रमण से बचाने का दृढ़ निश्चय अडिग है।
सुरक्षित रक्ताधान जरूरी:
बरेली आईएमए ब्लड बैंक की निदेशक डा. अंजु उप्पल ने इस मौके पर कहा कि मैं सभी मरीजों को सौ प्रतिशत सुरक्षित रक्त चढ़ाने की पैरवी करती हूं ताकि संक्रमण का खतरा शून्य हो जाए। एनएटी (नैट) एक ऐसी ही तकनीक है। हमारे केंद्र में यह अगस्त 2016 में प्रारंभ हुई। पहले हम सभी ब्लड युनिट्स की एलिसा तकनीक के अंतर्गत जांच करते हैं, जो युनिट्स नेगेटिव आते हैं, उनकी दोबारा नैट तकनीक से जांच की जाती है। नेट तकनीक द्वारा एचआईवी, हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी के जेनेटिक मटेरियल (आरएनए और डीएनए) की सीधे जांच हो जाती है।
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नाको (नेशनल एड्स कंट्रोल आर्गेनाइज़ेशन) से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में टीटीआईएस के कारण 2018-19 में एचआईवी संक्रमण के 1,300 मामले सामने आए हैं। डब्ल्यूएचओ ने भी सिफारिश की है कि प्रत्येक राष्ट्र को रक्ताधान से पहले उसकी उचित स्क्रीनिंग के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनानी चाहिए।