स्वास्थ्य मंत्रालय जुटा बाल मृत्यु दर की रफ्तार पर अंकुश लगाने में! -वेलनेस सेंटर में प्रसूति सुविधा, टीकाकरण की वर्तमान सुविधा में होगा सुधार -24 राज्यों ने योजना में भागीदार करने की दे चुके हैं स्वीकृति – नवजात बच्चों की मौतें रोकने के लिए गुणवत्ता वाली और सस्ती देखभाल मिलना आवश्यक है -हर किसी को स्वास्थ्य देखभाल के लिए मासिक बचत का एक स्पष्ट लक्ष्य पर होगा जोर

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ज्ञानप्रकाश नई दिल्ली , केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय अब बाल मृत्यु दर की रफ्तार पर अंकुश लगाने के लिए रणनीति तैयार कर रहा है। जिसके तहत सभी राज्यों के वेलनेस सेंटर्स में परिवार नियोज और स्त्री एवं प्रसूति केंद्रों की स्थिति में प्रथम दज्रे की सुविधा स्थापित की जाएगी। इस मद में सभी राज्यों को अतिरिक्त बजट की राशि दी जाएगी। केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव प्रीति सूदॉन ने कहा कि सरकार ने अब तक 24 राज्यों से इस मद में राशि बढ़ाने के लिए स्वीकृति प्रदान कर चुका है। वर्ष 2019 नये साल में इस लागू करने की रणनीति तैयार की जाएगी। उम्मीद है कि मार्च 2019 तक इस योजना का लाभ राज्यवार वेलनेस सेंटर्स में मिलना प्रारंभ हो जाएगा। जहां पर अभी तक वेलनेस सेंटर नहीं स्थापित किए जा सके हैं उन राज्यों के जिला अस्पतालों को अपग्रेड किया जाएगा।
दरकार क्यों:
करीब 3 करोड़ नवजात शिशुओं को हर साल अस्पताल में विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है, जिसके बिना उनकी या तो मृत्यु हो जाती है या फिर वे विकलांगता या अन्य किसी समस्या से ग्रस्त हो जाते हैं, जिसका प्रभाव पूरे जीवन तक रहता है। यूनिसेफ और वि स्वास्थ्य संगठन के सहयोग से हुए एक ताजा अध्ययन से यह जानकारी सामने आयी है। रिपोर्ट की सलाह है कि संबंधित देशों को नवजात शिशुओं की असमय मृत्यु को रोकने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश करना चाहिए। रिपोर्ट के अनुसार गुणवत्ता वाली देखभाल के लिए सार्वभौमिक पहुंच 2030 तक होने वाली 17 लाख या 68 प्रतिशत नवजात मौतों को रोक सकती है। इसमें कहा गया है कि नवजात शिशुओं के लिए सप्ताह में सातों दिन और 24 घंटे स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण, उपकरणों और बुनियादी ढांचे में निवेश करने की जरूरत है। यूनिसेफ की कम्युनिकेशन ऑफिसर सोनिया सरकार ने कहा कि स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ हम बाल मृत्युदर की रफ्तार पर अंकुश लगाने के लिए प्रयासरत हैं।
यूनिवर्स हेल्थ कवरेज:
एचसीएफआई के अध्यक्ष पद्मश्री डा. केके अग्रवाल ने कहा, यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज का मतलब अच्छी गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य देखभाल है, जो उपलब्ध हो, सुलभ हो, सस्ती हो और जवाबदेह हो। स्वास्थ्य शायद भारत के राजनीतिक एजेंडे के प्राथमिक बिंदुओं में कभी शामिल ही नहीं रहा। देश ने हमेशा जेब से होने वाले खर्च को ही एक आदर्श रूप में देखा है, यहां तक कि सार्वजनिक अस्पताल भी आम लोगों के लिए स्वास्थ्य सेवा को एक चुनौती की तरह पेश करते है। अभी भी गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों की संख्या अधिक है, ऐसे में गुणवत्ता भरी स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चित करने की आवश्यकता है, जिसमें वितरण की लागत और इसके लिए भुगतान करने की क्षमता दोनों को ही देखने क जरूरत है। बीमा बहस का एक अलग ही विषय है। सस्ती और गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच प्रदान करने के अलावा, सरकार के लिए एक केंद्रीत स्वास्थ्य बचत योजना सुनिश्चित करने के लिए एक केंद्रीत कोष प्रबंधन की भी आवश्यकता है। इससे समाज के एक बड़े हिस्से को सेवाएं मिलेंगी और सभी के लिए स्वास्थ्य सेवा के लक्ष्य को पूरा करने में मदद मिलेगी।
शिशुओं की देखभाल गुणवत्ता पूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं जरूरी:
नीति आयोग के सदस्य डा. वीके पॉल ने कहा कि देखभाल की गुणवत्ता को हमेशा पसंद किया जाता है, परंतु यह हमेशा संभव नहीं होता, क्योंकि यह उपचार की लागत को बढ़ा सकता है। फिर फोकस क्या होना चाहिए। प्रत्येक अस्पताल या स्वास्थ्य देखभाल प्रतिष्ठान को उन संसाधनों के भीतर गुणवत्ता सुधारने और अधिकतम करने की कोशिश करनी चाहिए जो उनके लिए उपलब्ध हैं और उन संसाधनों के सवरेत्तम उपयोग के साथ हैं। खराब गुणवत्ता वाली सेवा संसाधनों के दुरुपयोग की ओर इशारा करती है। गुणवत्ता और सामथ्र्य दोनों को संतुलित करने की आवश्यकता है, विशेष रूप से हमारे जैसे देश में, जो दुनिया में स्वास्थ्य पर होने वाले सबसे अधिक खचरे में से एक है।
चिकित्सा व्यय को प्लान:
-हर महीने एक स्पष्ट बचत लक्ष्य निर्धारित करें। इस धन का उपयोग केवल चिकित्सा खर्च के लिए करें।
इस बचत को संकट के लिए सुलभ रखें ताकि यह आसानी से उपलब्ध रहे।
-जिस तरह एक कार को रखरखाव की आवश्यकता होती है, उसी तरह स्वस्थ रहने के लिए भी रखरखाव की आवश्यकता होती है। सुनिश्चित करें कि आप मासिक चेक अप को अनदेखा न करें। यह बचत उसमें भी सहायक हो सकती है।

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