इनकी नजर में मजदूर दिवस का माईने नहीं, हर दिन की तरह ही हाड़ तोड़ मेहनत, मजदूरी की तलाश -तेज गर्मी, सिर पर ईट, सीमेंट, रोढ़ी, बदरपुर की भारी भरकम बोझ ही रहा बुधवार को दिनचर्या में शामिल -चुनाव जरूरी है, लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए वोटिंग जरूरी करने पर जोर

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ज्ञानप्रकाश /भारत चौहान नई दिल्ली लोकतंत्र और चुनाव इनके लिए कुछ भी अहम् नहीं है इनके लिए अहम् है तो फिर सिर्फ दो जून की रोटी का जुआड करना। जो सुबह होते ही चौराहे पर हाथों में हथौड़ा, कन्नी, फावड़ा, कुदाल, सिर पर फटा पुराना अंगौछा बांधकर सामान्य दिनों की तरह बुधवार को भी राजधानी के विभिन्न क्षेत्रों की फूटपाथों पर सैकड़ों दिहाड़ी मजदूरों की दिनचर्या भी सामान्य रही। तापमान 42 डिग्री सेल्सियस तेज गर्मी के बावजूद वे विभिन्न जगहों पर सिर पर ईटे, सीमेंट, रेता,बालू, बदरपुर, पत्थर ढोने में व्यस्त दिखे। उनकी नजर में मई दिवस क्या है, लोकतंत्र और चुनाव आपके लिए कितना अहम् है। प्रचार के तौर तरीकों तक से इन्हें कुछ लेना देना नहीं। देश की आजादी के 70 साल से अधिक समय बीतने के बावजूद अब तक 90 फीसद दिहाड़ी श्रमिकों की स्थिति में कोई खास सुधार नहीं देखा गया है। हालांकि इसके इतर कुछ निजी कं पनियों, कारपोरेट सेक्टर और कुछ सरकारी संस्थान मई दिवस के मौके पर अवकाश घोषित किया। कुछ कंपनियों में जश्न मनाया गया। श्रमिक महिलाओं
मजदूर दिवस पर इन्हीं श्रमिकों के साथ इस संवाद्दाता द्वारा बिताए दिन भर की ग्राउंड रिपोर्ट: लक्ष्मी नगर में एक भवन का निर्माण कर रहे मूलत: यूपी के जिला विजन्नोर स्थित चांदपुर गांव के निवासी मोहम्मद इदरीश (42) दोपहरी में भूतल से पांचवी मंजिल पर सिर पर ईट लेकर चढ़ाने में व्यस्त दिखे। उसने कहा कि साहब, संडे हो या मंडे, होली हो या दीवाली अगर दिहाड़ी मजदूरी मिल जाती है तो हम काम का नागा नहीं करते हैं। मुश्किल से तो काम मिलता है, अक्सर ठेकेदार तय दिहाड़ी तक नहीं देता है। साइट पर आने का समय प्रात: 8 बजे है और जाने का कोई समय निर्धारित नहीं है। अक्सर रात को 9 से 10 बजे तक मजदूरी कराने के लिए विवश किया जाता है। यानी हर दिन 10 से अधिक घंटे तक काम कराया जाता है। इदरीश की जैसी ही यहां काम करने वाले 50 से अधिक अन्य श्रमिकों की ऐसी ही दिक्कतें थी। सोनिया विहार में दीपक गुप्ता ने कहा कि श्रम विभाग के पास भी इस समस्या का हल नहीं है। मजदूरों की हालत में सुधार के लिए नीति बनाया जानी चाहिए। उनका कडाई से अनुपालन हो। देहाड़ी मजदूरी करने का समय नियमानुसार 6 से 8 घंटे है लेकिन यहां पर ठेकेदार 10 से 12 घंटे तक काम कराते हैं। लोधी रोड़ पर सेवारत योगेश तय नियम के अनुसार पुर मजदूरी नहीं देने वाले ठेकेदारों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की। विरोध करने पर अगले दिन काम नहीं करने देते हैं। इस समस्या को श्रम विभाग को गंभीरता निवारण करना चाहिए। केजी मार्ग पर चाट की दुकान लगाने वाले पप्पू भाई कहते हैं कि फुटपाथ पर दुकाने दी है, उनका सौंदर्यीकरण करना चाहिए। इंस्पेक्टर राज खत्म होना चाहिए। हम उपभोक्ताओं को स्वादिष्ट खाद्य वस्तुएं देने के लिए संकल्पबद्ध है।
चुनाव है अहम्:
मूलत: हरियाणा के मरोदी जाटाल, तहसील कलानोर, जिला रोहतक के निवासी और जनकपुरी में व्यवसाय करने वाले राजवीर सिंह अहलावत कहते हैं इस वर्ष का मजदूर दिवस कई माइनों से खास है, हम काम करते वक्त यह भी चर्चा करते रहते हैं, सूचना रेडियो, टीवी, अखबार के जरिए लेते है कि चुनाव कब है। चूंकि मैं दिल्ली का मतदाता हूं तो 12 मई को पहले मतदान करुंगा, मेरे साथ अन्य लोग भी पोलिंग स्टेशन पर जाएंगे, सबको मत का प्रयोग करने के लिए प्रेरित करना भी जरूरी है। लोकतंत्र का मतलब है जनता का, जनता के लिए, जनता के द्वारा हमें साफ सुधरी छवि वाले प्रत्याशी का ही चयन करना चाहिए।
महत्व:
मजदूर दिवस उन लोगों का दिन है जिन्होंने अपने खून पसीने से देश और दुनिया के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। किसी भी देश, समाज, संस्था और उद्योग में मजदूरों, कामगारों और मेहनतकशों की अहम भूमिका होती है। मजदूरों और कामगारों की मेहनत और लगन की बदौलत ही आज दुनिया भर के देश हर क्षेत्र में विकास कर रहे हैं। हर साल बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन का एक महत्वपूर्ण स्थान है। मजदूर दिवस को लेबर डे, मई दिवस, श्रमिक दिवस भी कहा जाता है।
यह भी:
मजदूर दिवस या मई दिवस हर साल दुनिया भर में 1 मई को मनाया जाता है। पिछले 132 साल से अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिव मनाया जाता है। 1877 में मजदूरों ने काम के घंटे तय करने की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया। एक मई 1886 को पूरे अमेरिका के लाखों मजदूरों ने एक साथ हड़ताल शुरू की। इस हड़ताल में 11 हजार फै क्ट्रियों के कम से कम 3 लाख 80 हजार मजदूर शामिल हुए।
मजदूरों की नजर में:
मजदूरों के हालात और जिंदगी को लेकर उर्दू में कई तरह की शायरी लिखी गई है। उर्दू के मशहूर शायरों में से एक मुनव्वर राना के चुनिंदा शेर: सो जाते हैं फुटपाथ पे अख़्ाबार बिछा कर, मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते।

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