डीडीए को अपने विवेक का इस्तेमाल करने देना चाहिए:अदालत

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ज्ञान प्रकाश नयी दिल्ली, दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि डीडीए का परम कर्तव्य राष्ट्रीय राजधानी का विकास सुनिश्चित करना है और वह जो भी श्रेष्ठ समझता है, उस हिसाब से उसे काम करने देना चाहिए। न्यायमूर्ति सी हरिशंकर ने कहा कि वर्तमान मामले में यदि अदालत महसूस करती है कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) भिन्न प्रकार से काम कर सकता था तो भी कानून को डीडीए पर संयम से काम लेना होगा। न्यायमूर्ति हरिशंकर ने कहा, ‘‘ वैधता की थोड़ी सी भी दृष्टि से देखा जाए तो यह नहीं कहा जा सकत कि डीडीए के मन में उस किसी व्यक्ति के प्रति गलत करने की भावना है जिसे उसके (डीडीए के) द्वारा जमीन आवंटित किया जाना है या फिर वह (डीडीए) उस संबंध में दुर्भावना से काम करता है।’’ अदालत ने कहा, ‘‘जिन व्यक्तियों की जमीन अधिग्रहीत की गयी है, उन्हें वैकल्पिक भूखंड आवंटित करने का फैसला सदैव अनिवार्य तौर पर और मौलिक रूप से एक नीतिगत फैसला है। जबतक यह फैसला नागरिक को संपत्ति के अधिकार से असंवैधानिक एवं अनुचित रूप से वंचित नहीं करता है तबतक उसे मूल तौर पर न्यायिक समीक्षा से छूट रहती है।’’ अदालत ने शहर के बांिशदे रामकुमार की अर्जी खारिज करते हुए यह टिप्पणी की । रामकुमार ने अदालत से दरख्वास्त की थी कि वह डीडीए को उसे नरेला के बजाय द्वारका में 250 वर्गयार्ड का वैकल्पिक भूखंड देने का निर्देश दे जो उसकी अधिग्रहीत की गयी जमीन की दर के अनुरूप हो।

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