ज्ञान प्रकाश , गुर्दा प्रत्यारोपण के मामलों में अक्सर किडनी के सही तरीके से काम करने में एक सप्ताह का समय लग जाता है, लेकिन कुछ मामलों में यह समय इससे कुछ ज्यादा लंबा भी हो सकता है। इसलिए ऐसे में मरीज और डाक्टर को थोड़ा धैर्य रखना चाहिए। ऐसा ही एक मामला आरएमएल अस्पताल मे सामने आया है जहां लगभग सब कुछ समान्य होने के बाद भी गुर्दा के काम करने में डेढ़ महीने का समय लग गया।
डा. आरएमएल अस्पताल के नेफ्रोलॉजी विभाग के एसोसिएट प्रो. डा. हिमांशु वर्मा के अनुसार बीते वर्ष ऋषिकेश की रहने वाली 31 वर्षीय संगीता किडनी ट्रांसप्लांट के लिए अस्पताल आई थीं। जनवरी के दूसरे सप्ताह में डा. राणा एके सिंह की टीम ने उनकी मां में गुर्दा प्रत्यारोपित किया। आम तौर पर प्रत्यारोपण के एक सप्ताह के भीतर किडनी काम करने लगती है, लेकिन संगीता के मामले में ऐसा नहीं हुआ। जिसके बाद नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख डा. हिमाशु महापात्रा, डा. हिमाशु और डा. ललीत पोशनानी के नेतृत्व में उसका इलाज शुरु हुआ। पहले उसकी बायोप्सी और फिर सीटी स्कैन किया गया। आश्चर्यजनक बात यह थी कि किडनी फेल भी नहीं हुई थी। उसमें किसी तरह की परेशानी भी नहीं थी, लेकिन फिर भी वह काम नहीं कर रहा था।
यह भी:
ऐसे मामले में मरीज का इलेक्ट्रोलाइट और फ्लयूइड मैनेज करना होता है और संक्रमण से बचाव करना होता है। इसके लिए संगीता को ट्रांसप्लांट के बाद से ही आईसीयू मे रखा गया था। तीन सप्ताह के बाद भी जब किडनी ने काम नहीं किया तो एक बार फिर से उसकी बायोप्सी की गई। इसमें एक्यूट टयूबलट निक्रोसीस (एटीएन) के कुछ अंश दिखाई पड़े। जिसके बाद करीब एक सप्ताह और उसे आईसीयू में रखा गया। जिसके बाद संगीता की किडनी काम करने लगी। और अब वह पूरी तरह से स्वस्थ्य है।
आधे घंटे में प्रत्यारोपण:
लाइव डोनर के मामले में किडनी को आधे घंटे के भीतर डोनर से निकाल कर रेसिपिएंट को लगाना होता है। इससे ज्यादा देर होने पर किडनी की आर्टरी की कोशिकाएं मृत होने लगती हैं। हालांकि ट्रांसप्लांट में ज्यादा देर नहीं होने पर जहां कोशिकाएं मृत होती हैं वहां नई कोशिकाएं जन्म लेने लगती हैं। इसे एटीएन कहते हैं।