वैज्ञानिक जुटे पार्किसंस डिजीज की शुरुआत में पहचान करने में! -पूरी तरह से बचाव कैसे हो, अति रहस्यमय पहेली बनी डिजीज

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ज्ञानप्रकाश
नई दिल्ली , अगर किसी अपने करीबी को बेहद कम उम्र में पार्किंसंस डिजीज (पीडी) हो जाए तो सुनकर ही मन व्यथित हो जाता है। यह एक ऐसी बीमारी है जो व्यक्ति की मानिसक और शारीरिक क्षमता को प्रभावित करती है। चिंता तब और अधिक होती है जब यह समस्या 21 से 50 की कम उम्र में हो जाती है। वैिक ट्रेंड्स के अनुसार, अब पार्किंसंस सिर्फ बुजुगरे की बीमारी नहीं रही। अमेरिका में जितने लोगों में पार्किंसंस की पहचान हो रही है उनमें 10-20 फीसद मरीजों की उम्र 50 साल से कम है, और करीब आधे मरीज तो 40 साल से भी कम उम्र के हैं। इस बीमारी की अक्सर अनदेखी हो जाती है, जिसके चलते लम्बे समय तक जांच और इलाज नहीं हो पाता है। अधिकतर मामलों में इस बीमारी की जांच तब होती है जब व्यक्ति अपने जीवकाल के 60वें दशक में होता है, इसकी प्रगति भी हर व्यक्तिमें अलग ढंग से होती है, जिसका निर्धारण उनकी स्वास्थ्य स्थिति से होता है न कि उनकी उम्र से। पार्किंसंस डिजीज से पूरी तरह से बचाव कैसे हो सकता है, इस बात का पता लगाने के लिए शोध जारी है।
सीडीसी अति खतरनाक है बीमारी:
इंडियन स्पाइनल इंजरी सेंटर में न्यूरोलॉजी यूनिट के प्रमुख डा. एके साहनी ने सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एवम प्रिवेंशन (सीडीसी) के हवाले से वि पार्किसंस दिवस की पूर्व संध्या पर बताया कि पार्किंसंस डिजीज दुनिया भर में मृत्यु दर का 14वां सबसे बडा कारण है। यह दिमाग के उन नब्ज को प्रभावित करती है जिनसे डोपामाइन का उत्पादन होता है और नर्वस सिस्टम की संतुलन सम्बंधी कार्यक्षमता को बाधित करती है। ब्रेन के निग्राएरिया में नर्वस में आने वाली कमी व्यक्ति की ध्यान लगाने की क्षमता, संतुलन बनाने की की क्षमता और दिन-भर के कायरे को सही ढंग से कर पाने की क्षमता को प्रभावित करती है। जो लोग पार्किसंस डिजीज से प्रभावित होते हैं उन्हें पैरों, जबडे, चेहरे, हाथों और बाहों के संतुलन में कमी महसूस होती है, जो कि मोटर डेफिसिट, अंगों में कठोरता के चलते होता है जिससे शरीर का संतुलन बिगड जाता है।
कम उम्र में पार्किंसंस डिजीज के कारण
पार्किंसंस डिजीज के पीछे क्या कारण है यह अब भी एक रहस्य है, कुछ लोग इसके लिए जेनेटिक और वातावरण सम्बंधी कारणोँ को जिम्मेदार मानते हैं क्योंकि इनसे डोपामाइन का उत्पादन प्रभावित होता है। यह केमिकल न्युरोट्रांसमीटर का काम करता है और शरीर के मूवमेंट को नियंत्रित करने के लिए दिमाग को संदेश भेजता है। हालांकि रिसर्चर अब भी इस नतीजे पर पहुंचने के लिए खोज में लगे हुए हैं कि जेनेटिक और वातावरण सम्बंधी कारकोँ का इस बीमारी से क्या और कितना सम्बंध है। नेशनल पार्किंसंस फाउंडेशन के अनुसार, 20 से 30 साल की उम्र वाले 32 प्रतिशत लोग जेनेटिक म्युटेशन से प्रभावित हैं। वातावरण सम्बंधी कारक जैसे कि कीटनाशक, फंगीनाशक और केमिकल हर्बिसाइड्स आदि बीमारी के लिए जिम्मेदार कारणोँ में से एक है। कुछ रेयर मामलों में, यह बीमारी किशोरों और बच्चों में भी देखी जाती है, जिसे हम जुवेनाइल पार्किंसंस के नाम से जानते हैं।
रिस्क फैक्टर्स:
पार्किंसंस का सम्बंध कई चीजों से है जिससे बीमारी के जल्द शुरु आत का खतरा बढ जाता है। वातावरण:मैगनीज, लेड और ट्राइक्लोरोएथलीन आदि से बीमारी की जल्द शुरु आत हो सकती है। इसके अलावा, सिर की चोट और ऐसे माहौल में काम करना जहां आप खतरनाक सॉल्वेंट के सम्पर्क में आते हैं, से समय से पहले पार्किंसंस डिजीज होने का खतरा बढ जाता है। उम्र बढने के साथ, पार्किंसंस डिजीज होने का खतरा बढ जाता है, आमतौर पर इसकी शुरु आत अधेड उम्र से होती और 60 व इससे ऊपर की उम्र में पहुंचने पर खतरा बढ जाता है। महिलाओं की तुलना में पुरु षों को इस बीमारी का खतरा अधिक रहता है।

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