ज्ञान प्रकाश नई दिल्ली , देशभर में विभिन्न दुर्घटनाओं में करीब 1.3 करोड़ ऐसे मामले रहते हैं जिन्हें स्पाइनल इंजूरी (मेरूदंड) गंभीर रूप से चोटिल होती हैं। करीब 1.5 लाख इन दुर्घटनाग्रस्तों में से ऐसे होते हैं जिन्हें सर्जरी के बाद माकुल पुनर्वास केंद्र, न्यूरो रिहेबिलिटेशन सेंटर्स की कमी है। नतीजतन वे शारीरिक विकलांगता का जीवन जीने के लिए विवश है। जिन्हें आजीवन संकट में रहने वाले लोगों की जिंदगी काफी मुश्किलों में रहती है। हालांकि चोटिल होने के बाद समय पर उपचार मिले तो इस तरह की जिंदगी से बचा जा सकता है।
बुधवार को दिल्ली के अपोलो अस्पताल में लगातार दुर्घटनाओं में चोटिल होने वालों की बढ़ती संख्या पर डॉक्टरों ने चिंता व्यक्त करते हुए स्पाइन सर्जन डा. राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि समय पर और सही इलाज उपलब्ध कराने से मरीज के जीवन को बचाया जा सकता है। उन्होंनें कहा कि देश में कम से हर राज्य में एक न्यूरो रिहेबिलेटेशन सेंटर स्थापित करने की दरकार है। जहां पर दुर्घटनाग्रस्तों का निरंतर फालोअप करने की सुविधा हो। अमरीका समेत अन्य विकसित देशों में ऐसे व्यवस्था है। मरीजों से जुड़े सर्जिकल अनुभव साझा किया, जिन्हें समय पर उपचार दिया गया, अब सामान्य जीवन बिता रहे हैं।
मौत को पीछे छोड़ नया जीवन मिलने वालों की जुबानी:
21 वर्षीय प्रियंका पहली मंजिल से गिरने के कारण चोटिल हुई। यूरीन रीटेन्शन की समस्या भी हो गई। एमआरआई से पता चला कि उनके एल 1 लम्बर फ्रैक्चर था और उसके कारण स्पाइनल कोर्ड में कम्प्रेशन था। डीकम्प्रेशन और स्पाइन के स्थिरीकरण के लिए दो सर्जिरयों की जरूरत थी। जब वह अस्पताल पहुंची, उनकी टांगों में पैरालिसिस था और वह अपना ब्लैडर फंक्शन खो चुकी थीं। इनके अलावा 23 वर्षीय अखिलेश कुमार दिल्ली की एक निजी कंपनी में कार्यरत है। ऊंचाई से गिरने के कारण उसके सिर और स्पाइन चोटिल था। टांग और पैल्विक में कई फ्रैक्चर के कारण टांगों में कमजोरी आ गई थी। ब्लैडर और बोवल फंक्शन पूरी तरह से खत्म हो चुका था। समय पर अस्पताल आने के कारण अखिलेश को नया जीवन मिल गया, जोकि इस तरह के मामलों में बेहद जरूरी है। वहीं साल 2008 में कनॉट प्लेस में आतंकवादी हमले में घायल कश्यप रावत को गंभीर चोटें आई थीं। उनके सरवाईकल स्पाइन, छाती और हाथ-पैर में गंभीर चोटें आई थीं। उनके चारों लिम्ब्स में पैरालिसिस हो गया था। फिलहाल वे पहले से बेहतर अवस्था में है। बैसाखी के सहारे जीवन जी रहे हैं।
जरूरी है मरीज के लिए गोल्डन ऑवर:
डा.तरूण साहनी के अनुसार ट्रामा मरीज को सबसे पहले एयरवे, ब्रीदिंग, सकरुलेशन देना चाहिए। ये पुलिस या प्रशिक्षित लोगों से दिलवाया जा सकता है। इसके बाद मरीज को प्रशिक्षित पैरामेडिकल स्टाफ और एंबुलेंस की मदद से अस्पताल पहुंचाना चाहिए। मरीज को गोल्डन ऑवर के अंदर स्पाईन बोर्ड पर रख अस्पताल पहुंचाने से चोट को गंभीर स्थिति में आने से रोका जा सकता है।