बेजुबानों पक्षियों पर ठंड का कहर ठण्ड और कोहरा बने जहर ! -अस्पताल में रोजाना 50 से 60 पक्षी पहुंच रहे इलाज के लिए -इनमें से आधे लकवे से ग्रस्त तो आधे ठंड से पस्त -दी जा रही हैं विटामिन ई और अन्य दवाएं -कई पक्षियों को रखा गया है आईसीयू में

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भारत चौहान/ज्ञानप्रकाश नई दिल्ली , पंछी, निदयां, हवा के झोके..कोई सरहद ना इन्हें रोके, बस दिल्ली की कड़कड़ाती ठंड ही है जो पक्षियों की उड़ान पर लगाम लगाने पर लगी है। इस ठंड ने न सिर्फ लोगों को दांत पसीजने पर मजबूर कर दिया बल्कि पक्षियों को भी अस्पताल पहुंचा दिया है। आलम यह है कि इस ठंड की वजह से पक्षियों को लकवा मार रहा है वायु प्रदूषण और कोहरा से रोजाना 50 से 60 पक्षी चेरिटी र्बड हॉस्पीटल पहुंच रहे हैं। इनमें कबूतरों की संख्या काफी ज्यादा है और जंगली व पालतू दोनों कबूतर शामिल हैं। इनमें से आधे पक्षी लकवे वाले हैं तो आधे वो हैं जिन्हें ठंड ने कमजोर कर दिया है।
खास बात:
यह है कि पक्षियों के इस अस्पताल में इस बार दो खरगोश भी पहुंचे हैं जिन्हें लकवा मारा हुआ है। इन सभी को अस्पताल के आईसीयू वॉर्ड में रखा गया है और इलाज किया जा रहा है। अस्पताल के मानद प्रबंधक डा. सुनील जैन ने बताया कि जिन पक्षियों को लकवा मारा हुआ है, उनका इलाज किया जा रहा है। जिसे कम लकवा है, उसका इलाज तीन महीने तक किया जाता है। वहीं जिसे ज्यादा लकवा मारा हुआ है, उसे ठीक होने में छह महीने लग जाते हैं। इन्हें विटामिन ई और ताकत की अन्य दवाइयां दी जा रही हैं। वैसे तो रोजाना यहां 50 से 60 पक्षी आ रहे हैं लेकिन रविवार के दिन इनका आंकड़ा 100 से ऊपर पहुंच जाता है क्योंकि पास में ही रविवार सुबह बाजार लगता है और वहां कबूतरों, तोता जैसे पक्षी बेचे जाते हैं। जो पक्षी ठीक होते हैं, उन्हें लोग खरीदकर ले जाते हैं लेकिन जो बीमार होते हैं, दुकानदार उन्हें अस्पताल छोड़ जाते हैं। हम इनका इलाज करते हैं और जो ठीक हो जाता है, उसे खुले आसमान में छोड़ दिया जाता है। उनका कहना है कि यह पक्षी पानी पीने के लिए ठंडे पानी में उतर जाता है और इनकी प्रतिरोधक क्षमता कम होती है जिस वजह से इन्हें लकवा मार जाता है। वहीं कई बार ताकत की अत्यधिक कमी से भी लकवा हो जाता है। इन्हें सड़क पर तड़पता देख कोई न कोई इन्हें अस्पताल छोड़ जाता है। फिर हम लिक्विड दवाओं के जरिए इनका इलाज करते हैं। चूंकि यह पक्षियों का अस्पताल है, इसलिए यहां सिर्फ पक्षियों का ही इलाज होता है लेकिन कई बार लोग चुपके से सीढ़ियों में खरगोश और मुर्गे भी छोड़ जाते हैं, फिर हमें उनका इलाज करना पड़ता है। फिलहाल यहां दो खरगोश हैं जिन्हें लकवा मार गया है और एक मुर्गा है जो काफी बीमार है।
बीते सालों का तोड़ा रिकार्ड:
वेटरनरी विशेषज्ञ डा. रोहित राव ने कहा कि बीते सालों की अपेक्षा इस वर्ष प्रदूषण के साथ ही ठिठुरन का दबाव ज्यादा है। मौसम की आद्र्रता में नमी दर्ज होने के साथ ही इन पक्षियों के संरक्षण के लिए स्वच्छ पीने के पानी का भी प्रबंधन नहीं किया गया है। रिज इलाकों का काफी हिस्सों में निर्माण कार्य हो चुका है। वर्ष 2017 की अपेक्षा इस साल दिसम्बर माह के दौरान 13 फीसद अधिक पंक्षियों के बीमार होने के मामले दर्ज किए गए हैं। बीते साल कुल 567 पक्षियों का इलाज किया गया था जो इस बार 723 के करीब तक पहुंच गया है।

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