ज्ञान प्रकाश नई दिल्ली, बृहस्पतिवार को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के विभिन्न विभागों में डा. मनीष शर्मा की खुदकुशी करने की घटना मिस्ट्री के रूप में बनी रही। डा. शर्मा गौतम नगर में एक किराए के मकान में रह रहे थे, वह एम्स में आंकोलॉजी सब्जेक्ट से एमडी कर रहे थे। उनका शव बुधवार की मध्य रात्रि कमरे में मिला था। आत्महत्या की मिस्ट्री के पीछे गला काटू प्रतिस्पर्धा मुख्य कारण के रूप में मानी जा रही है। मनो चिकित्सा विभाग के कई डाक्टरों ने इस बात से इनकार नहीं किया कि काम का दबाव और माकूल रहने की जगह न मिलना, मन के मुताबिक वेतन न मिलना, अपनो से मिलने की चाहत जैसी कारण खुदकुशी के हो सकते हैं।
न काम आया वेलनेस:
डा. मनीष शर्मा की आत्महत्या के बाद एक बार फिर से साइकेट्री और साइकलॉजी जैसी चीजों को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं। याद हो कि ऐसी चीजों से निपटने के लिए करीबन छह महीने पहले एम्स के डॉक्टर्स ने मेडिकल स्टूडेंट्स और डॉक्टर्स के लिए स्टूडेंटस वेलनेस क्लीनिक की शुरु आत की थी। इसका मकसद था स्टूडेंट्स और डॉक्टर्स को उन स्थितियों से बाहर निकालना जिसमें उनके मन में आत्महत्या करने के विचार आते हैं या फिर वह बेहद ज्यादा तनाव (स्ट्रेस) में रहते हैं लेकिन शायद मेडिकल स्टूडेंट्स और डॉक्टर्स खुद ही इन स्थितियों से बाहर निकलने में इच्छुक नहीं है। यहीं कारण है कि पिछले छह महीनों में इस क्लीनिक में लगभग 24 लोगों ने ही संपर्क किया है। इस बारे में एम्स की रेजिडेंट डॉक्टर्स असोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डा. हरजीत सिंह भाटी का कहना है कि इस क्लीनिक में 10 क्लीनिकल साइकलॉजिस्ट्स काउंसिलर नियुक्त किए गए थे जिनकी अगुवाई एम्स के सीनियर साइकेट्रिस्ट प्रफेसर प्रताप शरन कर रहे हैं। अगर कोई स्टूडेंट या डॉक्टर क्लीनिक में नहीं आ सकता, तो उनके लिए ऑनलाइन नंबर की सुविधा भी दी गई थी जिस पर वह राउंड द क्लाक कर सकते हैं। हमें महीने में तीन से चार कॉल ही आती हैं। इसकी शुरु आत इसलिए की गई थी क्योंकि मेडिकल स्टूडेंट्स और डॉक्टर्स काफी स्ट्रेस में रहते हैं और उनका स्ट्रेस लेवल काफी हाई होता है। ऐसे में उनके मन में काफी तरह के ख्याल आते हैं जिन्हें वह सच भी कर लेते हैं। मैक्स कैथलैब के निदेशक डा. विवेका कुमार ने कहा कि इनमें आत्महत्या का ख्याल आना सबसे आम और अहम बात है लेकिन इसमें काफी कम केस आ रहे हैं। संभवत: डा. शर्मा द्वारा आत्महत्या का सबब बना। हालांकि जांच एचेंसियां अब तक इसकी वजह निजी बता रहा है। लेकिन कहीं न कहीं उनमें भी स्ट्रेस था। ऐसे में हमें एक बार फिर इस क्लीनिक के प्रचार को तेज करने की जरु रत है ताकि ज्यादा से ज्यादा मेडिकल स्टूडेंट्स और डॉक्टर्स तक यह पहुंच सके और उन्हें बचाया जा सके ।