ज्ञानप्रकाश नई दिल्ली
..जाको राखे साईया मार सके न कोय. वाली कहावत कम से कम आसमा के जीवन पर कुछ हद तक चरितार्थ होती है। केंद्रीयकृत सद्मा सुश्रुत सेवाएं (कैट्स) एम्मुलेंस कर्मियों की सूझबूझ एवं दक्षता के चलते आसमा खान की डिलीवरी उबड खाबड सड़क पर सीमिति संसाधनों से ही सुरक्षित तरीके से डिलीवरी कराने में सफल रहे। विषम परिस्थितियों में तीन लड़कियों के बाद बेटे को जन्म देने के बाद आसमा को फिलहाल करीब 8 किलोमीटर दूर स्थित रोहिणी के डा. भीमराव अंबेडकर अस्पताल के प्रसूति रोग यूनिट में भर्ती कराया गया। जहां पर जच्चा बच्चा दोनों की हालत खतरे से बाहर बताई गई है।
हैरत भरी रही सुबह:
बुधवार को तड़के करीबन 3 बजे एंबुलेंस के पायलट (ड्राइवर) और मौजूद पैरामेडिकल की सूझबूझ से महिला और नवजात शिशु का जीवन बच सका। दरअसल सुबह एंबुलेंस बीटा-96 पर मुबारकपुर डबास से डिलीवरी की कॉल आई थी। कॉल आने पर पायलट केके डांगी और पैरामेडिकल पुरनमल टेलर कॉल पर मुबारकपुर डबास पहुंचे। वहां पहुंचने पर उन्होंने महिला आसमा खान को एंबुलेंस में बैठाया और अस्पताल की ओर चल दिए। चूंकि आसमा का इलाज रोहिणी स्थित अंबेडकर अस्पताल में चल रहा था और उसका कार्ड भी वहीं का बना हुआ था, तो उसे अंबेडकर अस्पताल ले जाने लगे। हालांकि उनके घर के पास संजय गांधी अस्पताल पड़ता है। चूंकि उसने वहां प्रसव के लिए रजिस्ट्रेशन नहीं कराया था। बकौल टेलर उसे लेकर जैसे ही 7-8 किलोमीटर चले तो उसे अचानक तेज प्रसव पीड़ा होने लगी और वह कराहने लगी। प्रसव पीड़ा कम करने के लिए इस दौरान काफी इलाज किया लेकिन आराम नहीं आया। हालात बेकाबू होने लगे, तब मुझे यह लगा की अंबेडकर अस्पताल पहुंचने से पहले महिला की डिलीवरी हो जायेगी इसलिए अभी कुछ करने की जरूरत है। जब महिला की प्रसव पीड़ा बढ़ने लगी तो पायलट को एंबुलेंस सड़क किनारे लगाने को कहा गया और अपनी सुझबुझ से काम लिया।ऐसी स्थिति में थोड़ी सी भी लापरवाही महिला और उसके बच्चे के लिए जान का खतरा बन सकती है। जब एंबुलेंस को रोका गया तो महिला की हालत काफी खराब हो चुकी थी लेकिन इसके बावजूद अपने अनुभव से हम दोनों ने मिलकर महिला की डिलीवरी करवाई और डिलीवरी करवाने के बाद महिला और उसके बच्चे को पास ही के संजय गांधी अस्पताल में भर्ती करवाया गया जिसके बाद डॉक्टरों ने दोनों का इलाज शुरू किया। सीएमओ डा. रोहित कुमार के मुताबिक महिला और बच्चा दोनों ही अब स्वस्थ्य हैं।