दिल्ली स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट गुणवत्ता पूर्ण चिकित्सीय सेवाएं देने में बिफल -कैंसर रोगियों की मृत्युदर में इजाफा, पांच साल में तीन गुना ज्यादा हुई मौत

कारण: जरूरी गुणवत्ता पूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव -अनुभवी सर्जन्स की कमी, रखरखाव में प्रशासनिक संवेदनहीनता

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ज्ञानप्रकाश/भारत चौहान नई दिल्ली ,करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी जिंदगी से जूझ रहे कैंसर रोगियों को नया जीवन जीने के उद्देश्य से स्थापित दिल्ली सरकार के दिल्ली स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट (डीएससीआई) अपने उदे्श्यों को पुरा करने में विफल साबित हो रहा है। चिंतनीय तथ्य यह है कि बीते पांच साल के दौरान बीते सालों की अपेक्षा तीन गुना ज्यादा मौतें दर्ज की गई है। दिल्ली सरकार ने मोहल्ला क्लीनिक खोले, मुफ्त में दवाएं देने का भी वादा कर रही है, सीटी, एमआरआई, सर्जरी जैसी खर्चीली चिकित्सीय सेवाएं में मुफ्त में प्रदान करने का दावा करती रही है। लेकिन सच्चाई इसके कोसों दूर है।
मौत की रफ्तार साल दर साल बढ़ती रही:
संस्थान प्रशासन से प्राप्त जानकारी के अनुसार कुल 13 हजार 390 मरीज इलाज की आस में आए। इसमें से 1093 की मृत्यु हो गई। यह आंकडे 29 अक्टूबर 2019 तक हैं। वर्ष 2018 में जनवरी से लेकर दिसम्बर के दौरान कुल आए 17, 281 मरीजों में से 1858 मरीजों की की मृत्यु हुई। वर्ष 2017 में इस दौरान कुल 17, 259 आए कैंसर रोगियों में से 1420 ने दम तोड़ा। वर्ष 2016 में आए कुल 15, 916 मरीजों में से 1106 कैंसर पीड़ितों की मौत हुई। इसी तरह से वर्ष 2015 के दौरान कुल 14, 662 मरीज बेहतर इलाज की आस लेकर अस्पताल पहुंचे, इसमें स 1166 कैंसर पीड़ितों की मौत हुई। इसी तरह से वर्ष 2014 में कुल 13, 683 आए मरीजों में से 1168 ने दम तोड़ा। यह आंकड़ा वर्ष 2013 के दौरान 11, 840 इलाज के लिए पंजीकृत किए गए मरीजों में से 976 ने दम तोड़ दिया। वहीं वर्ष 2012 के दौरान कुल आए 9, 573 कैंसर के मरीजों में से 692 ने दम तोड़ा। वर्ष 2011 में कुल 8, 970 मरीजों में से 571 तो वहीं वर्ष 2010 के दौरान 6848 मरीजों में से 178 ने इलाज के दौरान दम तोड़ा। यह संख्या सबसे कम वर्ष 2009 में 4333 पंजीकृत रोगियों में से सिर्फ 49 लोगों ने दम तोड़ा। सूचना अधिकार के तहत दिल्ली स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट के एमआरओ हेमन्त शर्मा ने यह जानकारी उपलब्ध कराई है।
नहीं है अदद सुविधाएं:
सूत्रों के अनुसार जब तक इस संस्थान के निदेशक डा. आरके ग्रोवर थे तब तक कैंसर पेशेंट फ्रेंडली के नाम से यह संस्थान प्रख्यात था। दिल्ली में आप सरकार के काबिज होने के कुछ माह बाद से निर्वतमन स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन से संबंध तलख हो गए। इसलिए उन्हें अपने इस ड्रीम प्रोजेक्ट को न चाहते हुए भी गुड बाय कहना पड़ा। इसके बाद से ही यहां से करीब एक दर्जन से अधिक फैकल्टी स्टाफ दूसरे अस्पतालों में जाने के लिए विवश हुए। रखरखाव मामले में भी ध्यान नहीं दिया गया। ज्यादातर जांचों को मरीज को बाजार से कराना पड़ता है। एक अधिकारी ने कहा कि यहां आने वाले 70 फीसद रोगियों की आर्थिक हालत बाहर से दवाएं व जांच कराने व सर्जरी कराने लायक नहीं रहती है।

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