भारत चौहान नई दिल्ली
डब्लूएचओ के मानकों के अनुसार किसी भी देश में कुल प्रसव के केवल 15 प्रतिशत मामलों में ही नवजात के जन्म के समय सी सेक्शन किया जाना चाहिए। जबकि भारत मे हर साल होने वाले कुल प्रसव में 74 प्रतिशत सी सेक्शन या प्रसव के लिए सर्जरी की जा रही है। प्रसव का व्यवसायिकरण करने वाले निजी अस्पतालों पर लगाम करने के लिए जनहित याचिका दायर की गई। तीन अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में याचिका पर सुनवाई होगी।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में दर्ज जीने का आजादी के अधिकार का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता और वरिष्ठ अधिवक्ता रीपक कंसल ने निजी अस्पतालों द्वारा गर्भवती महिलाओं की बेवजी सी सेक्शन सर्जरी करने को उनके अधिकारों का हनन बताया है। जबकि देश के सभी राज्यों सी सेक्शन किए जा रहे हैं, जिससे प्रसव के महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अहम यह है कि क्लीनिक और प्रसूति गृह में प्रसव कराने वाली महिलाओं के परिजन को नवजात के जन्म से पहले ही कई परेशानियां गिना दी जाती हैं, एक तरह से चिकित्सक और क्लीनिक परिजनों पर सी सेक्शन कराने का दवाब डालते हैं। याचिकाकर्ता ने जनहित याचिका में सी सेक्शन के लिए जरूरी गाइडलाइन बनाने, प्रसव का व्यवसायिकरण रोकने सहित इस बात पर जोर दिया है कि सभी अस्पतालों के बाहर इस बात की जानकारी सार्वजनिक होनी चाहिए कि किस महीने में कितने प्रसव सी सेक्शन से हुए। याचिककर्ता ने अपील में कहा कि सी सेक्शन के बाद महिलाओं को तीन से चार हफ्ते तक अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है। जिससे अस्पतालों का बिल बढ़ता है। अहम यह है कि सी सेक्शन के बाद नवजात को मां से दूर रखा जाता है। जिससे उसे मां का पहला गाढ़ा दूध भी नहीं मिल पाता। इस बावत किए गए एक अध्ययन के अनुसार केरल में 41 प्रतिशत, तमिलनाडू में 58 और दिल्ली में कुल प्रसव के 65 प्रतिशत प्रसव सी सेक्शन से किए गए। याचिका कर्ता ने अपील की है कि सी सेक्शन के लिए पृथक गाइडलाइन बनाई जाएगी, जिससे महिलाएं कष्टमुक्त गर्भधारण कर पाएं।
नवजात के जन्म के समय भी बेवजह होती है सर्जरी
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन के ताजा अध्ययन में देश के प्रमुख निजी और सरकारी अस्पतलों में 15 अधिक महंगी गैर जरूरी सर्जरी की जा रही हैं। जिसमें सर्जरी से नवजात का जन्म भी शामिल है। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में छपे लेख में इस बात का खुलासा हुआ है। पीएचएफआई द्वारा किए अध्ययन के अनुसार प्रसव के सी सेक्शन के लिए ढाई हजार से 40 हजार रुपए तक का शुल्क लिया जाता है। अस्पतालों की विभिन्न 80 मदों पर लिए जाने वाले इस शुल्क में से 55 फीसदी को बेवजह बताया गया है। अप्रैल 2011 से 2012 के बीच किए गए अध्ययन के अनुसार चैरिटेबल और सरकारी अस्पतालों में गर्भाश्य को निकालने और शुरू को जन्म देने के समय 79 प्रतिशत अधिक व्यय किया गया। जिसका बोछ परिवार पर पड़ा।
प्रमुख आंकड़े
वर्ष 2011 से 2012 के बीच वैश्विक स्तर पर 273500 महिलाआें की प्रजनन के समय मौत हुई, जिसमें से 99 प्रतिशत मौत एशियाई देशों में हुई और इसमें 70 प्रतिशत की जान सी सेक्शन या सर्जरी के कारण हुई। इसमें 45 प्रतिशत मामलों में हिस्टेक्टिमी की गई। जिसमें गर्भाशय को सर्जरी कर निकाल दिया जाता है।
कितने अस्पताल हुए शामिल
57 चैरिटेबल अस्पताल
200 निजी अस्पताल
400 जिला स्तरीय अस्पताल
655 क्षेत्रीय टैरिटोरियल अस्पताल
नोट- इस अस्पतालों से जनरल व इमरजेंसी में होने वाली सर्जरी पर होने वाले खर्च की जानकारी ली गई।