वायु प्रदूषण के चलते एंटीबायोटिक दवाएं हो रही हैं बेअसर -एम्स-आरएमएल, पटेल चेस्ट संस्टीट्यूट के विशेषज्ञों ने किया अध्ययन में खुलासा

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नई दिल्ली , बीते कई दिनों से राजधानी शहर का संभवत: हर शख्स दमघोंटू जहरीले वायु प्रदूषण से जूझ रहा है। विशेषज्ञों का तर्क है कि इसके चलते बैक्टीरिया की क्षमता में बढ़ोतरी हो जाने के कारण सांस से जुड़ी परेशानी के इलाज में दी जाने वाली एंटीबायोटिक दवाएं बेअसर हो साबित हो रही है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), आरएमएल एवं दिल्ली वि विद्यालय से संबंद्ध बल्लभ भाई पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञों ने कहा कि शोध से हमें यह समझने में मदद मिली है कि किस तरह वायु प्रदूषण मानव जीवन को प्रभावित करता है। इससे पता चलता है कि इंफेक्शन पैदा करने वाले बैक्टीरिया पर वायु प्रदूषण का काफी प्रभाव पड़ता है। वायु प्रदूषण से इंफेक्शन का प्रभाव बढ़ जाता है। इस शोध में बताया गया है कि वायु प्रदूषण कैसे हमारे शरीर के सन तंत्र (नाक, गले और फेफड़े) को प्रभावित करता है। अध्ययन अप्रैल से लेकर बीते 10 नवम्बर के दौरान 4567 ओपीडी, इमरजेंसी में आने वाले मरीजों पर किया गया।
वायु प्रदूषण मुख्य वजह:
आरएमएल हास्पिटल में मायक्रोबायोलॉजी विभाग के सहायक प्रो. डा. अरविंद कुमार के अनुसार वायु प्रदूषण का प्रमुख घटक कार्बन है। यह डीजल, जैव ईधन व बायोमास के जलने से पैदा होता है। यह प्रदूषक जीवाणु के उत्पन्न होने और उसके समूह बनाने की प्रक्रिया को बदल देता है। इससे उनके सन मार्ग में वृद्धि और छिपने और हमारा इम्यूनिटी सिस्टम से लड़ने में सक्षम हो जाता है।
ऐसे हुआ शोध:
यह शोध दो मानव रोगाणुओं स्टेफाइलोकोकस अयूरियस और स्ट्रेप्टोकोकस निमोनिया पर किया गया। यह दोनों प्रमुख सन संबंधी रोगकारक हैं जो एंटीबायोटिक के प्रति हाई लेवल का प्रतिरोध दिखाते हैं। कार्बन स्टेफाइलोकोकस अयूरियस के एंटीबायोटिक बर्दाश्त करने की क्षमता को बदल देता है। यह स्टेफालोकोकस निमोनिया के समुदाय की पेनिसिलीन के प्रति प्रतिरोधकता को भी बढ़ा देता है। इसके अलावा पाया गया कि कार्बन स्ट्रेप्टोकोकस निमोनिया को नाक से निचले सन तंत्र में फैलाता है, जिससे बीमारी का खतरा बढ़ जाता है।
जानलेवा है:
एम्स के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया के अनुसार एंटीबायोटिक का इस्तेमाल इतने तेजी से हो रहा है कि बैक्टीरियाओं पर इसका असर ही नहीं हो रहा है। इससे ऐसे मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, जिनके बैक्टीरिया पर किसी भी एंटीबायोटिक का असर नहीं होता है और उनकी मौत हो जाती है। आमतौर पर डायरिया और वायरल में एंटीबायोटिक का सबसे ज्यादा दुरूपयोग होता है। एम्स में ही माइक्रोबायलॉजी यूनिट के डा. विजय कुमार गुर्जर के अनुसार आईसीयू में दाखिल होने वाले करीब 70 फीसद मरीजों पर एंटीबायोटिक बेअसर हो जाता है। इसकी वजह से डॉक्टरों को ऐसे एंटीबायोटिक का इस्तेमाल करना पड़ता है जिनके दुष्प्रभावों की वजह से उनका इस्तेमाल नहीं किया जाता रहा है।
बचाव:
पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट के निदेशक डा. राज कुमार के अनुसार इन बैक्टीरियाओं से बचाव का एक ही उपाय है सफाई। ये बैक्टीरिया आमतौर पर गंदे हाथ, खाने-पीने, सांस लेने और गंदे वातावरण से शरीर में आते हैं। इन्हें साफ-सफाई से ही रोका जा सकता है। इसमें भी हाथों की सफाई बेहद अहम है।

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