अलर्ट: राजधानी में क्षयरोगियों का ग्राफ बढ़ा -स्वास्थ्य विभाग ने कहा कि दूसरे राज्यों के मरीजों की संख्या है ज्यादा -डाट्स केंद्रों में दर्ज किए वर्ष 2018 में 89 हजार से अधिक मामले -जो वर्ष 2017 की अपेक्षा 21 हजार 361 मामले ज्यादा है

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ज्ञानप्रकाश नई दिल्ली , मैन टू मैन फैलने वाला जानलेवा माइक्रो बैक्ट्रिरियल डिजीज यानी क्षयरोग (टीबी) के मरीजों की संख्या राजधानी में तेजी से बढ़ रही है। इससे यह तय माना जा रहा है कि स्टेट टीबी कंट्रोल प्रोग्राम बेदम साबित हो रहा है। एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि टीबी मरीजों की बढ़ने की वजह दरअसल, डाट्स केंद्रों में दवाओं की पुरी खुराक लेने में चूक है। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग सीधे तौर पर जिम्मेदार है। वर्ष 2018 में बीते सालों की अपेक्षा 31.47 फीसद बढ़ोतरी हुई है। स्वास्थ्य कमेटी की एक रिपोर्ट के अनुसार एक साल में 89 हजार से अधिक नए मरीज विभिन्न डाट्स केंद्रों में जांच के दौरान पोजिटिव पाए गए। जो वर्ष 2017 में यह आंकड़ा सिर्फ 67 हजार 867 था। जो बीते साल की अपेक्षा वर्ष 2018 में 21 हजार 361 मामले ज्यादा है। वर्ष 2016 में कुल 62 हजार 706 मामले थे।
आंकड़ा बढ़ने की एक वजह यह भी:
दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य सेवाएं निदेशालय के अनुसार टीबी नोटिफिकेशन की प्रक्रिया में बदलाव के कारण वषर्-2018 में टीबी के अधिक मामलों को सूचीबद्ध किया गया। हालांकि राजधानी के 467 डाट्स केंद्र में कार्यरत टीबी निरीक्षक व डाक्टर निदेशालय के इस तर्क से इत्तेफाक नहीं रखते हैं। उनका तर्क है कि टीबी मरीजों की पहचान की प्रक्रिया में कोई बदलाव नहीं किया गया।
सघन स्क्रीनिंग से बढ़े मामले:
टीबी से पीड़ित सभी मरीजों की सूचना सरकार तक नहीं पहुंच पाती है। इसलिए कई मरीज इलाज से छूट जाते थे। केंद्र सरकार ने मरीजों के नोटिफिकेशन पर डॉक्टरों को प्रति मरीज 500 रु पये देने का प्रावधान किया गया।
इनका तर्क, दिल्ली के बाहर के हैं ज्यादा:
स्टेट टीबी नियंतण्रकार्यक्रम के निदेशक डा. अनी खन्ना ने कहा कि राजधानी में टीबी की जांच के लिए उत्तर प्रदेश से भारी संख्या में मरीज पहुंचते हैं। पहले बाहर के मरीजों का दिल्ली में पंजीकरण करते थे। अब बाहरी मरीजों का भी पंजीकर शुरू कर दिया है।
टीबी:
वीपी पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट के निदेशक डा. राज कुमार के अनुसार टीबी एक संक्रामक रोग है जो कि माइक्रोबैक्टीरिया टीबी के कारण होता है। यह मैन टू मैन फैलता है। सटीक दवा लेने से यह ठीक हो जाता है। यह बीमारी लाइलाज नहीं है।

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