वैश्विक संकट कोरोना के बीच अपने घरों से निकलकर हर क्षेत्र में अनवरत सेवाएं देने वाले योद्धाओं को सलाम करती कवियत्री सुनीता बिश्नोलिया (जयपुर ) की एक कविता

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योद्धा

लाखों दें हम इन्हें सलामी, ये सच्चे हकदार हैं
मानवता की खातिर इनके पाँवों में रफ़्तार है,

दीवारों की तरह खड़े ये, हाथ श्वास की माला है
रात अमावस की बीती, दिन नूतन आने वाला है।।
इक-इक जान बचाने को, जो खुद पर संकट झेल रहे
नमन देश के उन वीरों को, जो खतरों में खेल रहे।
नींद नहीं इनकी आँखों में,हर एक बना रखवाला है
बीतेगी अब रात अमावस, दिन नूतन आने वाला है।।

विकट समय में बनकर ईश्वर,सभी सिपाही दौड़ रहे,
अपनी सूझबूझ से सारे, यम को वापस मोड़ रहे,
लाखों दें हम इन्हें सलामी, ये सच्चे हकदार हैं
मानवता की खातिर इनके पाँवों में रफ़्तार है,
ये जलते ज्यों जलें मशालें, चढ़ी कर्म की हाला है,
बीतेगी अब रात अमावस,दिन नूतन आने वाला है।।

लोगों की बातें सुनकर भी,सड़कों पर जो अटल खड़े,
बाधाओं के आगे देखो ये बनकर दिवार खड़े।
राहें रोशन रहें हमारी,साफ स्वच्छ हों राहें सारी
हों ना हम भूखे ना प्यासे, हर मुश्किल इनसे हारी
अंधियारे को चीर-चंद्र, रज-कण बिखराने वाला है ,
बीतेगी अब रात अमावस, दिन नूतन आने वाला है।।

(सुनीता बिश्नोलिया जयपुर)

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