राजधानी के 32 हजार एलोपैथ डाक्टरों को मिलेगी अब राहत – हर दिन वॉट्सएप के जरिए मिलता था मैसेज, डॉक्टरों को देते हैं कानून का हवाला – डीएमसी ने दी राहत, कन्फ्यूजन होगा दूर – सुप्रीम कोर्ट से राहत के बाद एलोपैथी डॉक्टरों को मिली मंजूरी

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ज्ञानप्रकाश नई दिल्ली, राजधानी में प्रैक्टिशरत करीब 32 हजार एलोपैथ डाक्टरों के लिए राहत भरी खबर है। दिल्ली सरकार की स्वायत्त संस्था दिल्ली आयुर्विज्ञान परिषद (डीएमसी) ने डाक्टरों के हित में एक फरमान जारी किया है। जिसके तहत अब वे मरीजों को बीमारी के लक्षण के मुताबिक ही दवाएं लिख सकेंगे। इसके तहत वे दवा के अवयवों (साल्ट्स) तक का पेशेंट प्रेस्क्रीप्सन कार्ड में जिक्र करेंगे। यह व्यवस्था दरअसल अब तक नहीं थी। उन्हें अब तक औषध नियंत्रक विभाग और निदेशालय स्वास्थ्य सेवाएं (डीएचएस) एक गाइडलाइन जारी करता रहा है कि वे मरीजों को कौन कौन सी दवाएं प्रेस्क्राइब्ड करें या फिर न करें। इस प्रक्रिया से डाक्टरों को आवर द काउंटर ड्रग्स (ओटीसी) और एच शैड्यूल्ड ड्रग्स का ब्यौरा भी अपने पास बतौर रिकार्ड के लिए रखना पड़ता था।
कन्फ्यूजन होगा दूर:
फेडरेशन ऑफ डाक्टर्स एसोसिएशन (फोर्डा) के अनुसार दिल्ली मेडिकल काउंसिल (डीएमसी) ने डॉक्टरों को हर सवेरे मिलने वाले उस डर से मुक्ति दी है, जिसके कारण मरीज को दवा लिखते वक्त डॉक्टर परेशान रहते थे। दरअसल दिल्ली के डॉक्टरों को हर दिन सुबह वॉट्सएप पर एक नौ साल पुराना डीएमसी का पत्र मिलता था, जिस पर लिखा होता था कि चुनिंदा आयुष दवाओं को मरीज की पर्ची पर नहीं लिखेंगे। वर्ष 2009 में डीएचएस द्वारा जारी इस पत्र में कई तरह की दवाओं का जिक्र था। इस पत्र पर न किसी के हस्ताक्षर थे और न ही पत्र जारी होने की कोई तारिख। डॉक्टरों को यहां तक डर था कि उनका लाइसेंस जब्त हो सकता है। इसे लेकर कई डॉक्टरों ने डीएमसी के इस आदेश को लेकर जांच भी की, लेकिन उन्हें जानकारी नहीं मिली।
एतिहासिक पहल:
दिल्ली मेडिकल काउंसिल के सचिव एवं रजिस्ट्रार डा. गिरीश त्यागी ने बताया कि डॉक्टरों को अब घबराने की जरूरत नहीं है। इस पत्र का अब कोई लेना देना नहीं है। डीएमसी ऐसी संस्था है जो दिल्ली में प्रैक्टिश करने वाले एलोपैथ डाक्टरों की डिग्रियां का पंजीकरण कर उन्हें दिल्ली में प्रैक्टिश करने की अनुमति प्रदान करती है।
टेंशन क्यों:
सुबह के वक्त डॉक्टरों को गुड मैसेज भेजने के बजाय आजकल उन्हें चेतावनी भेजी जा रही है। उन्हें खबरदार किया जा रहा है कि अगर कोई डॉक्टर किसी मरीज को आयुर्वेदिक दवाएं लिखता है तो उसके खिलाफ दिल्ली भारतीय चिकित्सा परिषद् एक्ट 1998 के तहत कार्रवाई की जाएगी। जबकि सुप्रीम कोर्ट की ओर से पहले ही राहत मिल चुकी है। ऐसे में डॉक्टर डरे हुए हैं और इस दुविधा में भी हैं कि वह सुप्रीम कोर्ट की बात मानें या डीएमसी की। हालांकि डीएमसी का तर्क है कि यह मैसेज सिर्फ डॉक्टरों को सावधानी बरतने के लिए बनाया गया था और यह मैसेज पुराना है। इस मैसेज पर जो दवाएं लिखी हुई हैं, उन्हें अब सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल चुकी है। एलोपैथी डॉक्टरों को इसलिए आयुर्वेदिक दवाएं लिखने से मना किया जाता है कि क्योंकि उन्हें आयुर्वेदिक दवाओं की सही जानकारी नहीं होती और कई बार यह रिएक्ट भी कर जाती हैं इसलिए इस मैसेज का मकसद डॉक्टरों को डराना नहीं बल्कि सचेत करना है। एलोपैथी डॉक्टरों पर इसे लेकर कोई प्रतिबंध नहीं है।

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