भारत चौहान,नई दिल्ली अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में आथरेपैडिक विभाग के प्रमुख डा. राजेश मल्होत्रा के अनुसार लोगों को हड्डी संबंधी विकृतियों की पहचान और उपचार के लिए प्रेरित करने की महती जरूरत है। उन्होंने कहा कि युवा पीढ़ी में ओस्टिओअर्थराइटिस पर जागरूकता फैलाने पर फोकस कर रहे हैं। ओस्टिओअर्थराइटिस अर्थराइटिस का ही एक प्रकार है जिसके होने का खतरा सबसे ज्यादा रहता है। भारत में शारीरिक रूप से क्षअम होने का मुख्य कारण यही है। इससे हर साल15 मिलियन लोग प्रभावित होते हैं। करीब 20साल पहले ओस्टिओअर्थराइटिस सिर्फ 65 साल से ज्यादा उम्र के बुजुगरे में होती थी। अब हड्डी रोग विषेशज्ञ 35-55 साल के लोगों में भी इसे देख रहे हैं।
कार्टिलिज हो रही हैं कमजोर:
वेंकटेर हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्टेंट-ऑर्थोपेडिक एंड जॉइंट रिप्लेसमेंट डा. आरके पांडे के अनुसार घुटने की अर्थराइटिस एक ऐसी बीमारी है जिसमें उपास्थि जो (कार्टलिज) हड्डियों के बीच एक कुषन की तरह काम करती है,जोड़ों में घिसने लगती है। इससे जोड़ों में दर्द और सूजन रहने लगता है और चलने-फिरने में भी दिक्कत होने लगती है। घुटने की ओस्टिओअर्थराइटिस के बारे में एक गलत धारणा बनी हुई है कि यह सिर्फ उम्रदराज लोगों में ही होती है। भारत में युवा पीढ़ी में यह दूसरी सबसे ज्यादा होने वाली बीमारी है,जो 25-30की उम्र के लोगों में देखी जा रही है और देश की 12 प्रतिशत आबादी इससे प्रभावित हो रही है। टीनेजर्स, महिलाएं ऊंची एडी वाले सैंडिल पहनती है जो इस रोग को बढ़ाती है। उन्हें समतल आकार के जुते और सैंडिले पहननी चाहिए