निजीकरण के खिलाफ यूनियन, सरकार से नाराजअधिकारियों पर लगाए भ्रष्टाचार के आरोपसरकार पर वादाखिलाफी और धोखा देने के आरोप केजरी सरकार से खफा है कैट्स कर्मचारी

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ज्ञानप्रकाश
नई दिल्ली , केंद्रीयकृत सद्मा सेवाएं (कैट्स) की सेवाएं वर्ष 1991 में तत्कालीन उपराज्यपाल ने आवश्यक सेवा रखरखाव अधिनियम (एस्मा) के तहत प्रारंभ की थी। जिसका तात्पर्य यह है कि कैट्स एम्बुलेंस सेवाएं निर्बाध रूप से साल के 365 दिनों निरंतर राउंड द क्लाक मरीजों के लिए उपलब्ध रहेंगी। इस सेवा में कार्यरत कैट्स एम्बुलेंस ड्राइवर और अन्य कर्मचारी हड़ताल व स्वास्थ्य सेवाएं किसीभी सूरत में बाधित नहीं कर सकते हैं। ऐसा जब उनकी भर्ती होती हुई तो उनसे शपथपत्र पर लिखवाया गया। लेकिन बीते चार दिनों यानी 96 घंटे से नियम कानून ताक पर रखते हुए कैट्स एम्बुलेंस ड्राइवर्स और कर्मचारियों ने सेवाएं पुरी तरह से ठप कर दी है। हड़ताल की शुरूआत शनिवार से हुई, जो अब तक जारी है।
दुर्घटनाग्रस्तों, गभीर मरीजों की दिक्कतें बढ़ी:
दिल्ली सरकार में ही विधि विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जब कैट्स सेवाएं प्रभावित नहीं की जा सकती है। तो फिर अब तक एस्मा के तहत हड़ताली कर्मचारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई क्यों नहीं की गई। अनुमान है कि हर दिन कैट्स के नियंतण्रकक्ष में 2 हजार से डाई हजार के मध्य हेल्पलाइनों पर मदद के लिए काल्स आती है। यानी की चार दिनों में हड़ताल होने से 8 हजार से अधिक दुर्घटनाग्रस्तों, बीमार लोगों को मदद से वंचित रहना पड़ा। सोमवार को देर सायं दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य सचिव संजीव खिरवार के साथ कैट्स कर्मियों की बैठक भी बेनतीजा ही रही, दरअसल, कर्मचारी स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन से अपनी लंबित मांगों को लिखित में आासन के रूप में लेना चाहते थे।
खफा है केजरीवाल से:
दिल्ली के लोगों के लिए 28 वर्षो से एक फोन कॉल पर एंबुलेंस लाने वाले चालक आम आदमी पार्टी (आप) के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से खासा नाराज हैं। कैट्स एंबुलेंस यूनियन ने सरकार पर धोखाधड़ी और वादाखिलाफी के आरोप लगाए हैं। यूनियन की मानें तो दिल्ली सरकार बगैर सोचे-समझे निर्णय ले रही है। विधानसभा चुनाव से पहले अरविंद केजरीवाल ने उन्हें कैट्स के निजीकरण नहीं होने का वादा किया था। लेकिन कुर्सी संभालते ही सरकार ने फाईल पास कर दी। जबकि पिछले 24 माह से यूनियन ठेका प्रथा व कैट्स के संचालन को निजी हाथों में देने का विरोध कर रही है।
कैट्स उद्देश्य से भटकी:
दिल्ली के सरकारी अस्पतालों तक मरीज लाने-ले जाने के लिए सरकार ने कैट्स एंबुलेंस की शुरु आत की थी। लेकिन कुछ ही समय बाद इस सेवा में लापरवाही के चलते खामियां उजागर होने लगीं। आलम यह है कि आए दिन कैट्स कंट्रोल रु म सेवा बंद हो जाती हैं। मरीज के परिजन फोन लगाते रहते हैं और कंट्रोल रु म ठप्प पड़ा है। इससे निपटने के लिए केजरीवाल सरकार ने कैट्स के कंट्रोल रु म को प्राइवेट हाथों में देने का फैसला लिया है। 500 में से 250 कर्मचारी अनुबंध पर लगे हुए हैं। साथ ही वे 25 सालों से सेवा कर रहे हैं। ऐसे में इन कर्मचारियों को दूसरे विभाग में शिफ्ट करना गलत है।
‘भ्रष्ट’ अधिकारी के भरोसे सरकार :
यूनियन महासचिव अजीत डबास ने कहा है कि दिल्ली में एंबुलेंस की दुर्दशा के जिम्मेदार वे अधिकारी हैं, जिन पर सरकार भरोसा करके बैठी है। ये अधिकारी कई बार भ्रष्टाचार के मामलों में संलिप्त पाए गए हैं। डबास ने बताया कि वर्ष 2010 में डेपुटेशन पर कैट्स में एक अधिकारी आया। जोकि वह एक फॉर्मासिस्ट है। पिछले 6 सालों से कैट्स विभाग को संभाल रहा है। जबकि डेपुटेशन सिर्फ 3 साल तक के लिए मान्य होता है। उन्होंने कहा है कि मंत्री-संत्रियों की सेवा कर अधिकारी निचले कर्मचारियों के साथ धोखा कर रहे हैं। इतना ही नहीं, डबास ने कहा है कि कुछ ही समय पहले वित्तीय विभाग ने रिकवरी भी डाली, लेकिन मामला ठंडे बस्ते में चला गया। फिलहाल कैट्स के निजीकरण के लिए अधिकारी पुरजोर दवाब बनाने में लगे हैं।
हालत खस्ता:
कैट्स में कुल 152 एंबुलेंस (120 ईको + 31 फोर्स एडवांस लाइफ स्पोर्ट) हैं, इनमें से 90 फीसदी गाड़ियों के सायरन सहित तमाम तकनीकी उपकरण खराब हैं। कैट्स में 31 अत्याधुनिक एंबुलेंस हैं जिनमें से 27 ही चलती हैं। इनमें भी 20 के एयर कंडीशन ठप्प पड़े हैं। कैट्स एंबुलेंस के लिए विभाग द्वारा ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि एंबुलेंस में संक्रमण होने पर कीटाणु रक्षित सफाई कराई जा सके। एंबुलेंस को एक साल से इंडेंट (प्राथमिकी सहायता में प्रयोग किया जाने वाला सामान) नहीं दिया जा रहा है। अभी तक प्रति माह एक एंबुलेंस पर एक लाख खर्च। लेकिन ठेका प्रथा से यह खर्चा एक लाख 40 हजार हुआ।

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