परिजनों के आंखों के आंसुओं का सवाल किसने किसको क्यूं मारा! -जीटीबी में चारों तरफ गम, गुस्सा व बदहवासी का है आलम -जाति, धर्म छोड़ सब बने हुए है एक दूसरे का सहारा

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ज्ञानप्रकाश नई दिल्ली , दिल्ली हिंसा में मारे गए लोगों के परिजनों की दुारियां कम होने का नाम नहीं ले रही है। किसी के परिवार का चिराग इस आग में बुझ गया तो किसी बुढ़ी मां का सहारा उससे छिन गया। जीटीबी अस्पताल का नजारा देखकर कोई पाषाण हृदय भी पिघल जाएगा। चारों तरफ अफरातफरी का माहौल। कोई इस हिंसा में जान गवां चुके अपनों के शवों का इंतजार कर रहा है। तो कोई अपने से बिछड़ों का अता पता लगाने की जीतोड़ कोशिशों में लगा हुआ है। आलम यह है कि हिंसा घटनाओं के पांचवें दिन भी अस्पताल में घायल को लाने का तांता लगा हुआ है।
सामाजिक ताना बाना बेमानी:
अस्पताल परिसर में पीड़ितों व मृतको के परिजन अपनों का हालचाल जानने के लिए इधर उधर के चक्कर लगा रहे हैं। कहीं से भी उनके जख्मों पर कोई मरहम लगाने वाला नहीं है। अस्पताल के हालात ये है कि तीन-तीन दिन तक पोस्टमार्टम नहीं हो पा रहा है। परिजन अन्तिम क्रिया के लिए शव मिलने के इंतजार में है। पश्चिमी उत्तरप्रदेश के एक हिस्से से आई एक बुढ़ी मां अपने साथ कफन लेकर भी आई है। उसका चश्मे चिराग पिछले तीन दिनों से गायब था। जब उसे बताया गया कि वह अस्पताल में उसकी मौत हो गई है तो वह अपने बेटे अन्तिम दर्शन का इंतजार कर रही है। उसका रो रोकर बुरा हाल है। अस्पताल परिसर में ही मृतकों और घायलों के परिजनों के दु:ख का सैलाब नेताओं पर कहर बनकर टूट रहा है। उनका सारा गुस्सा राजनीतिक दलों पर उतर रहा है। सामाजिक ताने बाने को जिस तरह से दंगाइयों ने चिंगारी दिखाने की कोशिश की उसका यहां कोई असर नहीं है। यहां सब पीड़ित है सब गमगीन है और एक दूसरे का सहारा बनने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। दु:ख की इस घड़ी में मानों न कोई हिंदु है न ही ईसाई है न ही अन्य जांत पांत का शख्स है। यहां दिख रही है तो बस सिर्फ हिंसा की चादर में लिपटी बेचारों की हाय। अस्पताल प्रशासन भी उन्हें सटीक जानकारी देने में बौना साबित हो रहा है। शवगृह के बाहर गम गुस्से का माहौल है। परिजनों के आंखों के आंसुओं में सवाल है आखिर किसने किसको किस लिए मारा। दिल्ली तो सबकी है।
आथरेपैडिक वार्ड में भर्ती राहुल शुक्ला के दायीं जांघ में इंजूरी हुई है। उसे बुलेट इंजरी होने के बाद यहां लाया गया। उसके चाचा रामनाथ शुक्ला ने कहा कि बड़ी मुश्किल से घटना के दो दिन बाद उसकी सर्जरी की बारी आई। हमने डाक्टरों से भी मिन्नतें की कि साहब यहां पर ऑपरेशन थियेटर में सुविधा नहीं है तो उसे दूसरे अस्पताल रेफर कर देते पर किसी ने उसकी एक न सुनी।
मोरचरी के बाहर कफन (बाक्स में ले लें)
मोरचरी में रखे गए करीब 26 शवों में से 19 की शिनाख्त नहीं हो सकी है। अधिकांश को बुलेट इंजरी के साथ ही जहरीले पत्थरों के जख्म शरीर के विभिन्न हिस्सों में पाए गए हैं। फोरेंसिक यूनिट के एक डाक्टर ने कहा कि इनकी पहचान करना फिलहाल चुनौती बना हुआ है। हिंसा के पांचवे दिन भी हमें यह मुश्किल यथावत बनी हुई है कि भला इनकी पहचान कैसे होगी। एक स्वयं सेवक संस्था के पदाधिकारी तो मदद के लिए मुफ्त में कफन मुफ्त में प्रबंध किया है। बाहर लगी सूची में बिना शिनाख्त वाले शवों की फेहरिस्त ज्यादा है। जाफराबाद के गली नंबर 2 में रहने वाले इरफान भाई ने सुबकते हुए कहा कि घर में तीन लोग थे मैं तो गांव गया था, टीवी देखा तो पता चला कि दंगाइयों ने घर को फूंक दिया है। आज पांच दिन हो चुके हैं अब तक शवों की शिनाख्त नहीं हो सकी जो शव मोरचरी में रखे गए हैं उनकी पहचान करना मुश्किल है। कद काठी, रंग को देखकर वे तो मेरे बच्चे लगते नहीं है। कहां गए यह कोई बता ही नहीं रहा है।
वीडियों ग्राफी के नाम पर ठगी:
कुछ परिजनों ने आरोप लगाया कि यहां के अस्पताल का स्टाफ वीडियोग्राफी कराने के नाम पर पैसे दो से चार हजार रुपये तक की मांग कर रहे हैं। जिसकी शिकायत स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन के साथ ही मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से कर दी।
अब तो भगवान ही पता बताएगा:
लोकनायक अस्पताल के इमरजेंसी के बाहर जीटीबी हस्पताल की तरह ही अफरातफरी की स्थिति देखी गई। यहां पर मोचरी के बाहर मृतक के परिजनों ने हंगामा किया। उनका कहना था कि अस्पताल के अधिकारी कहते हैं पुलिस आएगी तब शव की शिनाख्त की जाएगी। पुलिस कहती है जब डाक्टर हमें बुलाएंगे तभी तो हम आएंगे। इस खींचतान में ही शवों का विच्छेदन नहीं किया जा सका।
डाक्टर पस्त, सीटी स्कैन है खराब:
विभिन्न प्रकार के इंजरी देखकर डाक्टर भी पस्त है दरअसल, इस अस्पताल में जख्म व गुम चोटिल हिस्से की जांच में महती भूमिका अदा करने वाली सीटी स्कैन मशीन काम ही नहीं कर रही है।

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