मदद के लिए उठे हाथ तो आठ घायलों को मिली नई जिंदगी! -एम्बुलेंस रोकी, आधी रात पहुंचे कोर्ट, तो घायलों को दूसरे अस्पताल किया गया शिफ्ट -इलाज के बिना ही दो ने तोड़ा दम, खून से लथपथ घंटों सुविधाविहीन अल हिंद अस्पताल में जिंदगी से जूझते रहे -जख्म तो ठीक हो जाएगा लेकिन साहब दर्द सालों सालता रहेगा

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ज्ञानप्रकाश नई दिल्ली , नार्थ ईस्ट दिल्ली में हिंसा के बाद घायल लोगों के लिए अस्पताल पहुंचना मुश्किल हो गया। आलम यह था कि एंबुलेंस भी घायलों तक नहीं पहुंच पा रही थी। मंगलवार रात गोली लगने से घायल करीब 10 लोग मुस्तफाबाद स्थित अल हिंद अस्पताल में थे लेकिन यहां इलाज की समुचित व्यवस्था न हाने के चलते उन्हें दूसरे अस्पताल में जाने का कहा। उनका आरोप है कि पुलिसकर्मियों द्वारा उन तक एंबुलेंस नहीं पहुंचने दी जा रही थी। इस वजह से दो ने दम तोड़ दिया तो रक्तस्रव होने से 8 की हालत हर पल गंभीर होती जा रही है। मददगार कोई सामान्य व्यक्ति नहीं बल्कि अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के पूर्व आरडीए अध्यक्ष डा. हरजीत सिंह भाटी की मेहनत रंग लाई।
मदद के लिए उठे हाथ, 8 की बचाई जान:
फेडरेशन ऑफ डाक्टर्स एसोसिएशन (फोरडा) के अध्यक्ष डा. हरजीत सिंह भाटी ने बताया कि मंगलवार की मध्य रात्रि हमें केंद्रीयकृत सद्मा एवं सुश्रुत सेवाएं (कैट्स) नियंतण्रकक्ष और दिल्ली अग्निशमन विभाग से पुख्ता सुचना मिली कि अल हिंद अस्पताल में कम से कम 10 लोग गंभीर रूप से घायल है। मल्टीपल हेड इंजूरी है, घंटों इलाज न मिल पाने की वजह से दो लोगों की मौत हो चुकी है। अन्य की हालत निरंतर गंभीर होती जा रही है। इसके बाद हम तुरंत हाईकोर्ट के जज के घर पहुंचे और उन्हें पूरी स्थिति के बारे में बताया। दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार देर रात याचिका पर सुनवाई की। डा. भाटी ने बताया कि आधी रात को जस्टिस एस. मुरलीधर और जस्टिस ए जे भंभानी ने निवास पर तत्काल सुनवाई की। उन्होंने आदेश दिया कि सभी घायलों को गुरुतेग बहादुर अस्पताल या फिर दूसरे नजदीकी अस्पताल में इलाज के लिए तत्काल शिफ्ट किया जाए। डा. भाटी ने बताया कि खुद जजों ने डीसीपी को फोन किया और घायलों को दूसरे अस्पताल भेजने का आदेश दिया। इसके बाद उन्हें दूसरे अस्पताल में शिफ्ट करने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। यह याचिका डाक्टर्स और डाक्यूमेंट्री फिल्ममेकर राहुल राय द्वारा लगाई गई थी जिसमें दिल्ली सरकार और पुलिस से हिंसा प्रभावित इलाकों में विजिट के दौरान उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की गई थी। इसमें अल-हिंद अस्पताल को भी शामिल किया गया था।
एम्स ट्रामा सेंटर और सफदरजंग अलर्ट:
हिंसा के बाद न सिर्फ जीटीबी अस्पताल और लोकनायक अस्पताल को अलर्ट पर रहने के आदेश दिए गए बल्कि अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), सफदरजंग, आरएमएल, आर्मी बेस्ड एंड रिसर्च हास्पिटल जैसे सम्पूर्ण गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सुविधाओं से लैस अस्पतालों को भी अलर्ट मोड पर रहने को कहा गया है। एम्स ट्रामा सेंटर के निदेशक डा. राजेश मल्होत्रा के अनुसार यहां पर सामान्यत: राउंड द क्लाक इमरजेंसी में दक्ष डाक्टरों की उपस्थिति रहती है। चूंकि दंगाग्रस्त क्षेत्रों में बुलेट इंजूरी के साथ ही पत्थरों से ज्यादा घायल होने की सूचना विभिन्न स्रेतों से मिली है। इसके मद्देनजर हम एलर्ट है।
बुलेट इंजूरी को जीवन देने में दक्ष:
यहां के डाक्टर जहरीली बुलेट इंजरी या प्वायजनिंग रिलेटिड मामले में विष वैज्ञानिकों और सर्जन्स की टीम है। अगर किसी व्यक्ति के हिंसा के दौरान गोली ज्यादा अंदर तक चली जाती है तो उस एम्स लाया जा सकता है। वह व्यक्ति जो ज्यादा गंभीर हैं, उन्हें भी सफदरजंग या फिर आरएमएल अस्पताल में भी लाया जा सकता है।
बेरहम, बेदर्द लोग:
जीटीबी अस्पताल में लाए गए इन घायलों के चेहरे पर दर्द के बावजूद यह सकून था कि वह सही जगह घंटो दर्द सहने के बाद यहां लाए गए है। चलों अब जीवन तो बच जाएगा। एक घायल ने कहा कि हिंदु, मुस्लिम, सिख, ईसाई मतलब जाति पांत को बुलेट की गोलियां नहीं जानती। हम मनुष्य और भारत के नागरिक है। साहब, दर्द तो सबको होता है। एक अन्य घायल ने कहा कि जख्म तो ठीक हो ही जाएगा लेकिन सर, दर्द को भुलाने में हमें सालों लग सकते हैं। जीटीबी में लाए गए 8 घायलों में से चार की हालत गंभीर बताई गई है जबकि अन्य 4 के मल्टीपल फ्रैक्चर हुए हैं।

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