धूम्रपान करने वालों की लत छुड़ाने के लिए अब वैज्ञानिक ई-सिगरेट्स का सहारा लेने का दे रहे हैं सलाह -ई-सिगरेट या इलेक्ट्रोनिक निकोटिन डिलीवरी सिस्टम में कैंसर जनित संभावानाएं नहीं

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ज्ञानप्रकाश
नई दिल्ली , धूम्रपान करने वालों को सेहत के लिए जहरीले धुएं से निजात दिलाने के लिए वैज्ञानिकों का शोध युद्धस्तर पर जारी है। तंबाकू निर्मित उत्पादों के विकल्प के रूप में कम हानिकारक विकल्प जैसे ई-सिगरेट या इलेक्ट्रोनिक निकोटिन डिलीवरी सिस्टम्स (ईएनडीएस) पर अब वे फोकस कर रहे हैं।
क्या है ई सिगरेट:
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) समेत अन्य शीषर्स्थ संस्थानों के वैज्ञानिकों का तर्क है कि ई-सिगरेट साधारण तौर वाष्प या एयरोसोल को बनाने के लिए एक द्रव्य को गर्म करती, जिसे धूम्रपान की नकल करते हुए अंदर खींचा जा सके। यह लोगों में बिना कैंसर कारी टार अथवा दूसरे जहरीले पदार्थ को बढ़ाए, सिगरेट की तरह कार्य करती है। इस तरह के उपकरणों ने धूम्रपान की लत को को कम करने में अथवा सिगरेट को छोड़ने में लाखों लोगों की मदद कर रही है। परिणाम स्वरूप उनके स्वास्थ पर मंडराते खतरे को कम किया है। पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड के अध्ययन से पता चलता है कि दूसरे सिगरेट छोड़ने के उपायों की तुलना में ई-सिगरेट 50 फीसदी ज्यादा प्रभावी है।
व्यापक अध्ययन में मिले सकारात्मक परिणाम:
दिल्ली ट्यूबरकोलोसिस और फेफड़ों की बीमारियों के विशेषज्ञ एवं अध्ययनकर्ता डा. राजेश चावला ने यह जानकारी दी। इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में प्लूमनोरी मेडिसिन यूनिट के प्रमुख डा. चावला ने कहा कि व्यापक पैमाने पर किये गये अध्ययन बताते हैं कि ई-सिगरेट्स केवल सन और फेफड़ों संबंधी बीमारियों के खतरे को कम ही नही करती, बल्कि तम्बाकू युक्त धूम्रपान से फेफड़ों को होने वाले नुकसान की भरपाई में भी मदद कर सकती है। इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनल मेडिसिन एंड क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी कैटेनिया विविद्यालय के निदेशक डा. रिकाडरे पोलोसा के अध्ययन के हवाले से डा. चावला ने कहा कि उन्होंने सीओपीडी धूम्रपान करने वालों पर स्वास्थ्य परिणामों का अवलोकन किया। जिन्होंने 3 साल की अवधि में ई-सिगरेट को अपनाया है। उन्होंने पाया कि पारंपरिक सिगरेट पर धूम्रपान कर्ता की निर्भरता को कम करने के लिए ई-सिगरेट के उपयोग से सीओपीडी की वृद्धि दर 2.3 से 1.7 रह जाती है। सीओपीडी आकलन टेस्ट (या कैट स्कोर) में महत्वपूर्ण सुधार भी देखे गए।
भ्रांतियां:
यह दावा किया गया है कि कुछ स्वादों में रासायनिक तत्व डायसिटिल होते हैं, जिनके ज्यादा सेवन से फेफड़ों के गंभीर रोग ब्रोंकोलाइटिस ओबिटरन्स का खतरा बढ़ जाता है। साक्ष्य से पता चलता है कि पहले भी अमेरिका और ब्रिटेन में कुछ मामलों में जहां ईएनडीएस वाष्प में डायसिटिल पाया गया, जिसकी सांद्रता सिगरेट के धुएं की तुलना में सैकड़ों गुना कम थी। केवल डायसिटिल की बहुत तीव्र सांद्रता इस बीमारी का कारण बन सकती है और चिकित्सा समुदाय का मानना है कि पारंपरिक सिगरेट धूम्रपान भी इस बीमारी का एक मुख्य कारक नहीं है। इसके सापेक्ष, ई-सिगरेट में पॉपकॉर्न फेफड़े’ के शून्य या सीमित
जोखिम होता है।

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