-साहब, सर्दी से तो बच जाते हैं पर चूहे कुतर जाते हैं हाथ पैर -हरेक रैन बसेरों में रात विताने वाले बेघरों की है अपनी ही है राम कहनी -भूख का इतंजात भी हो जाता तो ज्यादा अच्छा रहता

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ज्ञानप्रकाश /भारत चौहान नई दिल्ली,दिल्ली सरकार की स्वायत्त संस्था दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डुसिब) एक इंजीनियर बोर्ड है जिसका कार्य बिल्डिंग निर्माण कर अन्य एजेंसी को सौपना है। वही अगर हम बेघरो के हितों की बात करे तो दिल्ली में बेघरो कि संख्या को लेकर संस्थाओं एवं सरकार में एक बड़ा ही अंतर दिखता है। सरकार का मानना है कि दिल्ली में मात्र 16 हजार 760 बेघर है वही संस्थाओं की माने तो 1 फीसद शहरी की आबादी बेघर है। दिल्ली के 16760 बेघरों को अगर राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन, शहरी बेघरों के लिए आश्रय के मानकों पर चर्चा की जाए तो मात्र 6880 बेघरों के सोने के लिए पर्याप्त जगह है वहीं डुसिब कहता है कि उनके पास 76 बिल्डिंग, 113 पोर्टा केबिन 17 टेंटों कुल 206 आश्रय गृहों में 17 हजार 370 लोगों के सोने के लिए जगह है। वहीं 60 फीसद आश्रय गृह में जगह की कमी स्पष्ठ रूप से नजर आती है। इसको समझने के लिए तकनीक को भी समझने की आवश्यकता है। नियम के अनुसार, प्रति एक लाख की आबादी पर एक आश्रय गृह एक हजार वर्ग मीटर का 100 लोगों के रहने-सोने की बुनियादी सुविधओं के साथ होना चाहिए। वहीं जहां दिल्ली की आबादी के हिसाब से आश्रय गृह पर्याप्त है। वही नज़र घुमा कर देखा जाये तो सोने वालों की जगह को लेकर मुख्य तौर पर दिक्कत नजर आती है। हाथ पैर में चूहे काट लेते हैं, कटखनी बिल्ली, सांप के काटने की घटनाएं भी आम है। रात को एक जून खाने का प्रबंध यदि प्रशासन कर देता तो ज्यादा अच्छा रहता। शुक्रवार की मध्य रात्रि को राष्ट्रीय सहारा ने कुछ रैन बसेरों की स्थिति का जायजा लेने के दौरान बेघरों ने अपने मन की बात साझा की।
डुसिब: गुरुद्वारा बंगला साहिब के पीछे:
रात 9 बजे, कुल पांच शेल्टर बने हैं। इनमें दो परिवार जनों के लिए हैं। दो सिर्फ महिलाओं के लिए जबकि एक वरिष्ठ नागरिकों के लिए बनाया गया है। 84 वर्षीय राजबाला ने दो कंबल नीचे बिछाए थे जबकि तीन कंबल ओढ़े थे, ने कहा कि यहां सब कुछ तो ठीक है लेकिन साहब रात के खाने का इंतजाम हो जाता, सुबह चाय, बिस्कुट मिल जाता तो अच्छा रहता। उनकी बगल में ही रजनी (67) ठंड से कांप रही थी, दरअसल, उसे बुखार है, रात को कई बार ठंड भी लगती है, ने कहा कि बच्चों ने धुत्कार दिया है, अब तो रैन बसेरा बाद में फुटपाथ पर रात गुजारने की आदी हो गई हूं। अधिकांश शेल्टर्स में क्षमता से डेढ गुना बेसहारा लोगों का दबाव था।
रात 10 बजे:
एम्स के निकासी द्वार के समीप बनी धर्मशाला में 69 लोगों की रहने का प्रबंध किया गया है, केयर टेकर रोहित ने कहा कि बीते तीन चार दिनों से ठंड ज्यादा पड़ने की वजह से यह संख्या 159 तक पहुंच चुकी है। जो पहले रजिस्ट्रेशन कराता है उसे चारपाई मिलती है, इसके बाद जमीन पर दरी कंबल पर जगह दी जाती है। मूलत: बिहार के रहने वाले राजेर यादव ने कहा कि यहां पर सामान चोरी होना आम है। मैं, शौच करने गया जब वापस आया तो मेरे दो कंबल गायब थे।

रजिया (55) ने आरोप लगाया कि शेल्टर में हमें जगह नहीं मिली, इस वजह से शैल्टर गृह के पिछले हिस्से में मैट्रो की लिफ्ट के सामने ही बोरियों की एक अस्थायी झुग्गी बना ली है। सुबह उसे वह लपेट लेती है। इसकी तरह ही सबवे में रात बिता रहे
धनंजय (38) ने कहा कि साहब, यहां बेघरों की सुध लेने वाला कोई नहीं है, सुविधाओं के नाम पर हमें टेंट से निकाल देने की धमकी मिलती है। बदबू से बुरा हाल है। चूहे, बिल्ली, सांप काटने की घटनाएं तो यहां आम है।
सफदरजंग अस्पताल:
रात 10.45 मिनट:
टेंट चल रहे इस रैन बसेरा में आश्रय पानी के लिए 12 से अधिक लोग वेटिंग में थे वे यहां तैनात राम सिंह नामक केयर टेकर से उलझे हुए थे कि हमें यहीं पर रात गुजारनी है, जब हमने एक साथ तीन दिनों से यहीं रात बिता रहे हैं तो आज हमें क्यों जगह नहीं दी जा रही है। लंबी बहस के बाद इस संवाद्दाता को बताया कि यहां पर आज 8 बजे तक लोग फूल हो गए। अब यहां पर क्षमता से ज्यादा लोग पहले ही आ चुके हैं तो कैसे इन सबको हम प्रवेश दे। चूंकि यह स्थायी रैनबसेरा नहीं है, जो पहले आएगा उसे ही जगह दी जाएगी।
हर दूसरा शख्स है बीमार:
अधिकांश रैन बसेरों में करीब दर्जन भर से अधिक केयर टेकर्स से पूछताछ के बाद पता चला कि यहां पर हर दुसरा शख्त किसी न किसी बीमारी से परेशान है। ये लोग नसे का सहारा लेते हैं। इनकी वजह भूख है। कैट्स कर्मी ज्यादा तबियत बिगड़ने पर इन्हें नजदीकी अस्पताल ले जाते हैं।
अन्य बातें:
ठंड से राहत पाने के लिए बेघर लोग लकड़ी, टायर, कपड़े, कागज जला कर रात गुजारते हैं। इसमें से धुआं निकलता है जो उनकी सेहत को खराब कर रहा है।
-गंदगी का है बुरा हाल, दिल्ली गेट, कमला मार्केट, जीटीबी नगर स्थित शेल्टर में गंदगी की वजह से फूटपाथ पर सोते हैं।
डुसिब का कंबल उठा ले गया एनडीएमसी:
एम्स के सामने सबवे में करीब 500 से अधिक लोग रात गुजारते हैं, डुसिब के निर्देशन में यहां सोने आने वालों को मुफ्त में प्रयोग के लिए कंबल दरी दी जाती है। केयर टेकर राजेश पांडेय ने कहा कि साहब, बृहस्पतिवार की रात नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी) के कर्मचारी आए और सोते लोगों को उठाया, कंबल, दरी लेकर चलता बने। यहां पर चेतावनी लगी दी है कि यहां सोना मना है। सोते पाए जाने पर 500 रुपये का हो सकता है जुर्माना।
कोई नीति नहीं है:

सेंटर फॉर होलिस्टिक डेवलपमेंट के प्रमुख सुनील कुमार आलेडिया ने बेघरों के लिए कोई ठोस नीति नहीं होने पर दु:ख जताया। बीते तीन दशक से बेघरों, आसक्तों की नि:स्वार्थ भाव से सहायता कर रहे श्री आलेडिया ने कहा कि एक लाख आबादी पर एक शेल्टर होम एक हजार वर्ग मीटर का पक्के इमारत में, 50 वर्गमीटर जगह चाहिए एक व्यक्ति को सोने के लिए, अगर डुसिब की माने की 1670 बेघर मात्र है तो इसके हिसाब से 60 फीसद शेल्टर स्पेस डेफिसिट है। दिल्ली में में बेघरों को लेकर कोई नीति नहीं है जिससे कि उनके पूर्ण रूप से पुनर्वास पर चर्चा नहीं होती है। वहीं सरकारों सामाजिक कार्यकताओं को देखा गया है कि मात्र सर्दी में जाग कर कार्य को देखा जाता है जो कि बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण है।
क्यों लोग सोते हैं सड़कों पर:
यहां पर यह भी है कड़ाके की ठंड सहते हुए गरीब बेसहारा सड़कों पर इसलिए भी सोते हैं कि उन्हें रात के अंधेरे में तरस खाकर कोई दान के रूप में कंबल तो कोई खाने पीने की भी दे जाए। दिल्ली के तमाम सड़कों, फ्लाई ओवर के नीचे, सबवे समेत मंदिरों, गुरुद्वारों, आदि के बाहर बड़ी संख्या में लोग ठिठुरते सहजता से दिख जाते हैं। ऐसा नहीं है कि वहां पर उसके आसपास कोई आश्रय गृह नहीं है या फिर कोई धर्मशाला या खुले आसमान से बचने के लिए कोई जगह नहीं है, जगह है फिर भी ये लोग सिर्फ थोड़ी लालज के लिए रात फूटपाथ पर गुजारते हैं। लालच भी एक वजह है कि जिसकी वजह से सड़कों के किनारे जोखिम भरी जगहों पर सहजता से रात के अंधेरे में दुबके हुए देखा जा सकता है।
हर रात.इनके आसपास है फूटपाथों पर बेघरों का कब्जा:
श्री हनुमान मंदिर, कनाट प्लेस, हनुमान मंदिर यमुना बाजार, कनाट प्लेस का आउटर इनर सर्किल के फूटपाथ, दिल्ली छावनी, दिल्ली कैंट का फूटपाथ, किंग्जवे कैंप, विकास मार्ग, यमुना पुस्ता, राजघाट, लालकिला के पीछे, आईएसबीटी, आनंद विहार रेलवे स्टेशन, बस टर्मिनल का बाहरी हिस्सा,एम्स, सफदजरजंग के आमने सामने सड़कों पर, डा. राममनोहर लोहिया अस्पताल, लोकनायक, जीटीबी हास्पिटल, लाल बहादूर शास्त्री हास्पिटल, डीडीयू हास्पिटल, हरीनगर समेत करीब 140 से अधिक जगहें।
हो रहा है सुधार:
डुसिब के चीफ एक्जक्यूटिव आफिसर सुरबीर सिंह ने दावा किया कि हम जो भी मदद मांगता है उस अस्थायी रूप से रात गुजारने के लिए व्यवस्था करते हैं। यह संख्या कितनी है फिलहाल बता पाना मुश्किल होगा। उन्होंने हम किसी आने से नहीं रोक सकते हैं। आश्रय कें द्रों में केयर टेकर को हिदायत दी गई है कि वह सबके साथ विनम्रता से पेश आएं।
दावा बेमानी:
डुसिब के रिकार्ड में इस समय रात्रि शैल्टरों की संख्या इस प्रकार है। पक्के नाइट शेल्टर 76 जहां पर कुल 9255 लोग का विश्राम करने का प्रबंध है। पोर्टा केबिन 113 में जहां पर 7115 लोगों के ठहरते हैं, जबकि 17 टैंटों में चल रहे हैं, इसमें 940 बेघरों को ठहराया जाता है। इस हिसाब से कुल शेल्टर की संख्या 206 है जहां पर 17 हजार 320 बेघर रह सकते हैं। दु:खद यह है इन रैन बसेरों में क्षमता से दो गुना लोगों को ठहराने के बाद भी जगह कम पड़ रही है।

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