PUB G कर रहा बच्चों को बीमार -एक्जाम सिर पर: 90 फीसद पैरेंट्स है मोबाइल गेमिंग से परेशान, बच्चे हो रहे हैं एडीक्ट, पढ़ाई पर असर, बौद्धिक क्षमता, आंखों की दृष्टि भी हो रही है कमजोर -साइकेट्रिस्ट्स कर दर पर पेरेंट्स ने कहा,PUB G से बचा लो जी -आरएमएल अस्पताल, इहबास में पहुंच रहे हैं पेरेंट्स -90 प्रतिशत पेरेंट्स बच्चों की गेमिंग अडिक्शन से परेशान -आधी रात का अलार्म लगाकर उठ जाते हैं बच्चे और खेलते हैं PUB G -बच्चों ने बताया, रात को नेटवर्क अच्छे और कोई डिस्टर्ब करने वाला भी नहीं होता

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ज्ञानप्रकाश नई दिल्ली , बच्चों के एग्जाम सर पर हैं लेकिन पेरेंट्स साइकेट्रिस्ट्स के दर पर चक्कर लगा रहे हैं। उसका सबसे बड़ा कारण हैं पब-जी, मोबाइल गेमिंग। दरअसल बच्चे इस गेम के इतने शिकार हो गए हैं कि वह आधी रात को भी इसे खेलने से परहेज नहीं करते। ऐसे में पेरेंट्स की टेंशन बढ़ती जा रही है इसलिए बच्चों की इस लत को छुड़ाने के लिए और एग्जाम अच्छे से निकले इसके लिए पेरेंट्स मनोचिकित्सकों के पास पहुंच रहे हैं।
क्या है पब-जी:
पब-जी एक ऑनलाइन गेम है जिसे एक नहीं बल्कि एक से ज्यादा लोग खेल सकते हैं। इस गेम में मारधाड़ और हथियारों से खेला जाता है और साथ ही इसमें आप अपने पार्टनर से गेम खेलते वक्त ऑनलाइन बात भी कर सकते हैं और अलगे चरण में क्या करना है, यह भी उन्हें बता सकते हैं।
डा. राम मनोहर लोहिया अस्पताल के साइकेट्री डिपार्टमेंट में इन दिनों 90 प्रतिशत पेरेंट्स अपने बच्चों की गेमिंग लत से जुड़ी समस्याएं लेकर पहुंच रहे हैं। इस बारे में डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रो. डा. मनीष कांडपाल के अनुसार लगभग बीते एक महीने से हमारे पास ऐसे पेरेंट्स की लंबी कतारें लगी रहती हैं जो बच्चों की गेमिंग लत से परेशान हैं। एग्जाम सिर पर हैं लेकिन बच्चे पढ़ने के बजाय गेमिंग में लगे रहते हैं। इनमें सबसे ज्यादा बच्चे पब-जी गेम के शिकार हैं और इन पेरेंट्स में से आधे से ज्यादा वह हैं जो वर्किंग हैं।
आम शिकायतें:
पेरेंट्स की शिकायत रहती है कि उनका बच्चा रात के दो-तीन बजे तक पब-जी खेलता रहता है। कुछ बच्चे ऐसे हैं जो पेरेंट्स के डांटने पर जल्दी सो जाते हैं लेकिन रात को उठकर गेम खेलने लगते हैं। जब बच्चों से रात को गेम खेलने के बारे में पूछा गया तो बच्चों ने बताया कि रात को नेटवर्क काफी अच्छे आते हैं और दूसरा हमें डिस्टर्ब करने वाला कोई नहीं होता। इनमें से कुछ बच्चे ऐसे थे जिन्होंने अपना ग्रुप बना रखा है और रात को प्लान बनाकर सोते हैं कि वह सभी रात को एक, दो या तीन बजे उठेंगे और फिर ऑनलाइन गेम खेलेंगे। ऐसे में बच्चे सुबह स्कूल जाते वक्त उठते नहीं है और स्कूल जाते हैं तो नींद पूरी नहीं होती जिसकी वजह से उनकी पढ़ाई पर असर पड़ता है। इसी वजह से स्कूल टीचर्स पेंरेंट्स से कई बार यह शिकायत भी कर चुके हैं कि बच्चा क्लास में सोता रहता है और ढंग से पढ़ाई भी नहीं करता।
6 से 10वीं कक्षा के ज्यादा इसकी गिरफ्त में:
यह सभी बच्चे छठी क्लास से लेकर 10वीं क्लास तक के हैं और इस गेमिंग अडिक्शन की वजह से इनका रिजल्ट साल दर साल कम होता जा रहा है। आरएमएल और मानव व्यवहार एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान (इहबास) में सोमवार को बच्चों के लिए स्पेशल क्लीनिक चलता है और इसके अलावा शुक्रवार को बिहेवियरल अडिक्शन क्लीनिक चलता है जिसमें ऐसे पेरेंट्स की लाइन लगी रहती है। इसके अलावा रूटीन में भी कई पेरेंट्स आते हैं। इनमें से कुछ बच्चों का इलाज चल रहा है तो कुछ के पेरेंट्स फिलहाल सिर्फ सलाह लेने के लिए आते हैं।
पेरेंट्स भी हैं बड़ी वजह:
इहबास के निदेशक डा. निमेश देशाई के अनुसार बच्चों में सिर्फ गेमिंग अडिक्शन ही नहीं है बल्कि कई बच्चे पोर्न अडिक्शन जैसे कई अन्य अडिक्शन के भी शिकार हैं और इसके जिम्मेदार कहीं न कहीं पेरेंट्स भी हैं। पेरेंट्स रोते हुए बच्चे को चुप करवाने के लिए उसे हाथ में मोबाइल थमा देते हैं और धीरे-धीरे बच्चे को इसकी लत लग जाती है। कई घरों में पेरेंट्स वर्किग हैं, ऐसे में बच्चा घर में अकेला रहता है इसलिए भी उसे स्मार्टफोन दे देते हैं ताकि यदि उसे किसी चीज की जरूरत पड़े तो वह पेरेंट्स से बात कर ले। ऐसे में बच्चा स्मार्टफोन का गलत इस्तेमाल करने लगता है और धीरे-धीरे वह एडिक्ट बन जाते है।

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