पैकेज: आग से बचाव के इंतजाम संबंधी पैकेज पेशेंट्स, डाक्टर्स, पैरामेडिकल स्टाफ की सुरक्षा भी है राम भरोसे, अस्पतालों में कम हैं आग से बचने के इंतजाम! -बेसमेंट में चलती है पैथोलॉजी और ओपीडी -टूटे पड़े हैं फायर हाइड्रेंट्स, एफएसओ भी नहीं तैनात

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ज्ञानप्रकाश नई दिल्ली , इलाज देने वाले अस्पताल किसी भी समय खुद हादसे की वजह बन सकते हैं। जगह की कमी के कारण प्रमुख सरकारी और निजी अस्पतालों की बेसमेंट में पार्किंग की जगह ओपीडी और भंडार कक्ष ही नहीं पैथोलॉजी और ओपीडी भी चलाई जा रही है। यही नहीं आग से सुरक्षा के लिए लगाए फायर हाइट्रेंड्स भी टूट चुके हैं। लापरवाही का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बिजली के खुले पड़े कंट्रोल पैनल के साथ ही अग्नि सुरक्षा संयंत्रों को लगाया गया है।
हेडगेवार आरोग्य संस्थान, कड़कड़डूमा– पूर्वी दिल्ली स्थित हेडगेवार अस्पताल के इमरजेंसी गेट पर लगा अग्नि रोधक बक्सा खाली पड़ा है। जिसमें न तो गैस का सिलेंडर है और न ही वाटर पाइप, पता चला कि दो साल पहले से यह डिब्बा खाली है, जिसपर अस्पताल प्रबंधन का कभी ध्यान नहीं गया। प्रमुख सात जगह पर लगाए गए फायर हाड्रेट्स और अग्नि सुरक्षा पैनल में ताला लगा हुआ है, इन तालों पर भी जंग लगा है। आग से सुरक्षा क लिए लगभग एक साल पहले प्रबंधन द्वारा मॉक ड्रिल कराई गई थी, इसके बाद यहां अग्नि सुरक्षा का मुआयना ही नहीं किया गया। अस्पताल के बेसमेंट में एसी कंट्रोल कक्ष, भंडार कक्ष के साथ ही भौतिक परीक्षक ओपीडी चलाई जाती है, जहां से निकासी का केवल एक रास्ता है। इसी बेंसमेंट में आग से सुरक्षा के लिए हालांकि दस एबीसी फायर हाइडेंट्स और पांच बीसी टाइप फायर हाइडेंट्र्स लगाए गए हैं, लेकिन सभी फायर हाइडेंट्र्स की जांच एक साल पहले की गई थी। 100 मीटर लंबे बेसमेंट के कॉरिडोर में ही भौतिकी प्रयोगशाला भी है। यही नहीं बेसमेंट भंडार कक्ष के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें आग के लिए संवेदनशील लगभग हर चीज उपलब्ध है। अधिकांश फायर हाइडेंट्र्स की सुरक्षा अवधि भी बीत चुकी है।
लोकनायक जयप्रकाश– मध्य दिल्ली स्थित इस प्रमुख सरकारी अस्पताल में आग से बचाव के इंतजाम नाकाफी है। इमरजेंसी से होकर नई बिल्डिंग तक जाने वाले 200 मीटर के रास्ते में एक भी जगह फायर हाइड्रेंट्स नहीं लगाए गए हैं। अस्पताल परिसर में लगे 25 फायर हाइट्रेट्स को बीते दो महीने से जांचा नहीं गया है। यही नहीं आग से बचाव के नाकाफी इंतजाम होने के कारण अस्पताल के आर्थोपेडिक्स विभाग को दिल्ली अग्नि शमन विभाग द्वारा एनओसी भी नहीं दिया गया है। पहले तल पर लिफ्ट के पास लगे फायर स्प्रिंगर को तीन महीने पहले जांचा गया था। जबकि इसी तल पर ऑपरेशन थियेटर के पास लगे फायर हाइडेट्र्स की पाइप ही गायब है। अस्पताल सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बीते तीन साल में यहां एक बार भी फायर मॉक ड्रिल नहीं कराई गई है, 70 प्रतिशत अस्पताल को अग्नि सुरक्षा बचाव संयंत्रों का इस्तेमाल नहीं करना आता है। निकास द्वार पर भी ताला पड़ा हुआ है, ऐसे में यदि कोई घटना होती है तो पहले निकास द्वार की चाबी ढुंढनी होगी, जबकि नियम कहते हैं कि निकास द्वार के शीशे हल्के व दरवाजे आसानी से खुलने वाले होने चाहिए। मालूम हो कि पुरानी इमारत से नई इमारत को जोड़ने वाले कॉरिडोर के पास ही अस्पताल का एसी प्लांट भी है।
बेसमेंट के इस्तेमाल में निजी अस्पताल आगे:
कम जगह का अधिक इस्तेमाल करने के लिए निजी अस्पतालों ने बेसमेंट को भी क्लीनिकल काम के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। मैक्स पड़पड़गंज, फोर्टसि एस्कार्ट्स, सरगंगाराम अस्पताल, इन्द्रप्रस्थ अपोलो सरिता विहार आदि सभी प्रमुख निजी अस्पतालों के बेसमेंट में ओपीडी सहित प्रयोगशालाएं चलाई जा रही हैं। जबकि बेसमेंट का इस्तेमाल मरीजों के लिए करने से पहले प्रमुख औपचारिकताओं का पालन करना जरूरी है। दमकल विभाग के अधिकारियों का कहना है कि दमकल विभाग द्वारा कुछ समय पहले तक अस्पतालों को बेसमेंट में किसी तरह की जांच, ओपीडी व औषधि केन्द्र खोलने का एनओसी दिया ही नहीं जाता था। लेकिन अस्पताल बनाने की तकनीक में आए बदलाव के कारण बीते पांच साल से बेसमेंट भी ऐसी व्यवस्था का एनओसी दिया जाता है। दिल्ली फायर सर्विस के डिप्टी चीफ फायर ऑफिसर संतोख सिंह ने बताया कि बेसमेंट में पार्किंग के अलावा क्लीनिक व ओपीडी चलाने की अनुमति देने से पहले 20 प्रमुख बिन्दुओं पर अस्पताल का मुआयना किया जाता है। जिसमें पहली सबसे जरूरी शर्त है कि बेसमेंट पूरी तरह एअर कंडीशन्ड हो, फायर स्प्रींगलर के अलावा, वेंटिलेशन, फायर चेक डोर और निकास द्वार होने चाहिए। बेसमेंट को क्योंकि आग के लिए अस्पताल का सबसे संवेदनशील क्षेत्र माना जाता है, इसलिए यहां ओटी या फिर वेंटिलेटर बनाने की इजाजत नहीं दी जाती है। मैक्स कैथलैब के निदेशक डा. विवेका कुमार कहते हैं कि अस्पताल की पूरी इमारत में हर जगह ऑटोमेटिक फायर अलार्म सिस्टम लगाया गया है, जिसमें कहीं से धुंआ उठने पर ही सभी नियंतण्रकक्ष तक सूचना पहुंच जाती है।
चाचा नेहरू अस्पताल है आदर्श:
आग से बचाव के लिए गीता कॉलोनी स्थित चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय को आदर्श अस्पताल कहा जा सकता है। जहां के फायर हाइडेट्र्स और स्प्रिंगल की हर महीने जांच की जाती है। अस्पताल के सुरक्षा व सेनिटेशन अधिकारी राजकुमार चौहान ने बताया कि सुरक्षा कक्ष में अस्पताल का ब्लू प्रिंट लगाया गया है, जहां किसी भी स्थिति में दो चरणों में आग से बचाव की कोशिश की जाती है। 216 बेड़ के अस्पताल में 35 एबीसी और बीसी फायर हाइड्रेंट्स हैं, जिन्हें हर महीने जांच की जाती है। हर तल पर चार आपातकालीन निकास द्वार बनाए गए हैं। अस्पताल के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि संयंत्रों के इस्तेमाल के लिए हर महीने मॉक ड्रिंल कराई जाती है, जबकि किसी भी आपात स्थिति से बचने के लिए कड़कड़डूमा स्थित फायर सेफ्टी अधिकारी का मोबाइल नंबर अस्पताल के सभी सुरक्षा अधिकारियों को दिया गया है।
एनीस्थिसिया की गैस बढ़ा सकती है आग का खतरा:
ऑपरेशन से पहले मरीज को बेहोश करने के लिए दिए जाने वाले एनिस्थिसिया का इस्तेमाल किसी भी अस्पताल में आग लगने के खतरे को बढ़ा सकता है, यदि वहां इससे बचाव के लिए अलग एजीएसएस (एनेस्थेिटिक गैस सेगरेजिंग सिस्टम) प्लांट न लगाया गया हो। दरअसल सभी तरह के ओटी और पोस्ट ओटी केयर यूनिट में पहले की अपेक्षा अब एनीस्थिसिया का इस्तेमाल अधिक बढ़ गया है। चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय हॉस्पिटल गैस और एसी प्लांट विशेषज्ञ विनीत कुमार ने बताया कि बेहोशी से पहले मरीज को एक विशेष तरह की हैलोथीन और आइसोफ्लूरेन गैस दी जाती है, यह बाजार में तरल रूप में उपलब्ध होती है, जिसे गैस के रूप में परिवर्तित कर मरीज को बेहोश करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। हैलोथीन और आइसोफ्लूरेन लेने के बाद मरीज जब सांस लेता है तो वह यही जहरीली गैस बाहर निकालता है। सुरक्षा मानक कहते हैं कि एनीस्थिसिया के बाद मरीज के 100 के दायरे में फैलने वाली इन गैंसों को अस्पताल परिसर से बाहर निकालने के लिए एजीएसएस प्लांट लगाया जाना चाहिए। यह प्लांट सभी प्रमुख ऑपरेशन थियेटर से जुड़ता हुआ चिकनी की तरह अस्पताल के सबसे ऊपरी छत से बाहर की ओर खुलता है। एजीएसएस प्लांट इस तरह काम करता है कि प्लांट में लगा फिलटर गैस के असर को कम कर उसे वातवरण में फैलने से रोकता है। विनीत कहते हैं कि अस्पतालों को दिए जाने वाले अग्नि सुरक्षा मानकों में एजीएसएस प्लांट को भी प्रमुखता से शामिल किया गया है, जबकि एनीस्थिसिया देने वाले दस प्रतिशत अस्पताल एजीएसएस प्लांट को जरूरी नहीं मानते। एनीस्थिसिया गैस के अलावा अस्पतालों में इस्तेमाल होने वाली सीओटू, एनटूओ और एचटूओ की भी यदि सही ढंग से मॉनिटिरंग न की जाएं तो आग लगने के खतरे से इंकार नहीं किया जा सकता। इस सब के बीच शार्ट सर्किट से बचने के लिए इलेक्ट्रिक बोर्ड और वायर की भी निगरानी की जानी चाहिए।

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