ज्ञान प्रकाश नई दिल्ली , कोरोना वायरस संक्रमण कोविड-19 की गिरफ्त में आए लोकपाल के एक वरिष्ठ सदस्य बीते करीब 10 दिनों से यहां एम्स जेपीएन सेंटर के सघन चिकित्सा पण्राली यूनिट में वेंटीलेटर पर हैं। शारीरिक रूप से अत्यंत कमजोर और हालत अति गंभीर बनी हुई है। कई कोशिशों के बावजूद उनकी कई प्रकार के गले से संबंधी जांच नहीं हो पा रही थी। सेंटर के डाक्टरों की सूझबूझ से उनका दो दिन पहले प्रोन वेंटीलेशन विधि का इस्तेमाल करते हुए कई जांचें सफलता पूर्वक संपन्न की गई थी। जिसका मरीज को इतना फायदा हुआ कि वो वेंटिलेटर से बाहर आ गए हैं। अब उनकी स्थिति पहले से बेहतर बताई जा रही है। एम्स ने कोविड मरीजों में पहली बार इस तकनीक का इस्तेमाल किया है।
एम्स ट्रॉमा सेंटर के चिकित्सा अधीक्षक डा. अमित लथवाल ने बताया कि लोकपाल के मेंबर अब वेंटिलेटर से बाहर आ गए हैं। सेहत में काफी सुधार हुआ है। उन्होंने कहा कि उनके इलाज में प्रोन वेंटिलेटर तकनीक अपनाई गई, जिससे उनमें काफी फायदा देखा गया। यह मरीज न्यूरो के इलाज के लिए मेन एम्स आया था, जिसमें बाद में कोरोना पॉजिटिव पाया गया था। लोकपाल के इलाज में लंग्स की दवा का भी इस्तेमाल किया गया है। लोकपाल के सदस्य की बेटी भी अब एम्स ट्रॉमा सेंटर में ही भर्ती है। उनकी ट्रैवल हिस्ट्री फारेन की है। वह लंदन में रहने वाली उनकी एक बेटी भारत आई हुई हैं, उनके संपर्क में आने की वजह से उनमें वायरस पॉजिटिव पाया गया। कुछ दिन बाद उनकी बेटी में भी संक्रमण की पुष्टि हुई और वह भी अब एम्स ट्रॉमा सेंटर में भती है। डा. अमित ने कहा कि अभी एम्स ट्रॉमा सेंटर में 5 मरीज एडमिट हैं, जिसमें से अब सिर्फ एक मरीज वेंटिलेटर पर है।
प्रोन वेंटीलेटर विधि:
यह तकनीक क्यूट रेसप्रेट्री डिसट्रेस सिंडोम में अपनाई जाती है। जब मरीज बहुत कमजोर होता है। गले में ट्यूब लगी होती है। फेफड़ा खराब होता है। उनमें में द्रव्य भरा होता है। ऐसी स्थिति में सही से ऑक्सिजिनेशन नहीं हो पाता। ऐसे मरीजों को प्रोन वेंटीलेशन दिया जाता है, इसमें मरीज को उल्टा कर लिटा दिया जाता है। इससे लंग्स में मौजूद फ्लूड इधर-उधर हो जाता है, जिससे लंग्स में ऑक्सीजन पहुंचने लगता है। हालांकि, मरीज में यह प्रोसस करना अति जटिल होता है।