ज्ञान प्रकाश नई दिल्ली , नेशनल एसोसिएशन ऑफ ब्लाइंड वुमेन की निदेशक शालिनी खन्ना ने कहा कि स्तन कैंसर की पहचान के लिए अब मेडिकल टैक्टाइल एक्जामिनेशन (एमटीई) के अंतर्गत नेत्रहीन महिलाओं को प्रशिक्षित किया जा रहा है। जो टेक्टाइल यानी हाथों के स्पर्श की मदद से स्तन कैंसर की पहचान कर रही है। उन्हें इससे रोजगार भी मिल रहा है और महिलाओं में स्तन कैंसर के बढ़ते मामलों को रोकने में भी मदद मिल रही है। बेयर क्रॉप साइंस द्वारा समर्थित नौ महीने के लंबे प्रशिक्षण कार्यक्रम में दृष्टिहीन महिलाओं को स्तन कैंसर का पता लगाने के लिए सभी आयु वर्ग के रोगियों को स्क्रीन पर प्रशिक्षित किया जाता है।
जर्मनी बेस्ड इस विधि के जनक डा. फ्रैंक हॉफमैन ने महिलाओं को ट्रसरी स्वास्थ्य सेवाएं देने के लिए खुले सीके बिरला हास्पिटल फॉर वुमेन की ओर से यहां बाराखंबा रोड़ स्थित बिरला टावर के सभाकक्ष में आयोजित स्तन कैंसर, रोकथाम और जागरुकता विषय सम्मेलन में मंगलवार को दावा किया कि टेक्टाइल का मतलब यह है कि हाथों की खोज – देश में स्तन कैंसर को जल्द पकड़ने के उद्देश्य से ऐसा पहला उपक्रम – एक अनूठी पहल है। डा. फ्रैंक ने भारत की महिलाओें में बढ़ते स्तन कैंसर की वजह जागरुकता की कमी बताया। उन्होंने कहा कि महिलाएं संकोचवश, भय व लज्जा के चलते डाक्टर तक स्क्रीनिंग की जांच कराने से हिचकती है। स्वयं जांच करनें अनुभव नहीं रखती है, जब वे क्लीनिकल जांच के तहत मेमोग्राफी जैसी जांच कराने जाती है तब पता चलता है कि उन्हें दूसरे या तीसरे स्तर का कैंसर हो चुका है। चूंकि टैक्टाइल विधि से जांच दृष्टिहीन महिला करती है। इसलिए वे बेझिझक जांच कराने के लिए आकषिर्त हो रही है। एमटीई के लिए दृष्टहीन को ही सिर्फ 9 माह का सघन प्रशिक्षण दिया जाता है। दृष्टिहीन प्रशिक्षण के बाद जो स्तनों में होने वाली असामान्यताओं की पहचान करने के लिए अपने उच्च विकसित स्पर्शीय समझ का उपयोग करता है। एमटीई ने जर्मरी, अस्ट्रिया और कोलंबिया में एक लाख 20 हजार से अधिक महिलाओं की मदद की है।
22 में से एक महिला स्तन कैंसर की गिरफ्त में:
अस्पताल में कैंसर सर्जरी विभाग के अध्यक्ष डा. मनदीप मल्होत्रा के अनुसार बीते छह माह पहले एक पायलट प्रोजेक्ट के तहत दिल्ली और एनसीआर में अब तक कुल एक हजार से अधिक महिलाओं की एमटीई के जरिए टैक्टाइल ब्रेस्ट की जांच की गई। जांच में 22 में से एक महिला में कैंसर के लक्षण पाए गए। जिन्हें बाद में मेमोग्राफी व अन्य प्रकार की जांच कराने की सिफारिश की गई। हाल के अध्ययनों से पता चलता है कि 40 से 50 वर्षो के बीच दिल्ली में चोटी की घटनाओं के साथ युवा महिलाओं में स्तन कैंसर का तेजी से पता लगाया जा रहा है।
इनकी नजर में:
एमटीएस साक्षी ने कहा कि हम जर्मनी से प्रेरित एक स्वदेशी स्तन कैंसर स्क्रीनिंग पद्धति को आगे बढ़ा रहे हैं, जो नेत्रहीन महिलाओं के स्पर्श की श्रेष्ठ भावना का उपयोग करता है और इसे सोनोमामोग्राफी और स्वयं स्तन परीक्षण की मानक पद्धति के साथ एकीकृत करता है। इसे हर उम्र की महिलाओं पर लागू कर सकते हैं। स्तन कैंसर की पहले चरण में पहचान कर कीमती जीवन बचाएंगे।