अंगदान को मिलेगा बढ़ावा, स्वास्थ्य विभाग आप्ट आउट सिस्टम अपनाने की रणनीति तैयारी में! -अंगदान करने के मामले में देशवासी पीछे -ड्राइविंग लाईसेंस के पीछे लिखे स्वैच्छि अंगदान करने के स्लोगन से मिल रही है सफलता

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ज्ञानप्रकाश
नई दिल्ली , अपने अंगदान से दूसरे को जीवन देकर कुछ इंसान भगवान बन जाते हैं। अंगदान का मतलब है किसी शख्स से स्वस्थ अंगो और टिशूज को लेकर इन्हें किसी दूसरे जरूरतमंद शख्स में ट्रांसप्लांट कर दिया जाना। इस तरह के अंगदान से किसी की जिंदगी बचाई जा सकती है। अंगदान मृत्यू के बाद और कभी-कभी जीवित भी होता है। लेकिन अंगदान के मामले हमारे देश में जागरूकता की कमी और पिछड़ापन साफ दिखाई पड़ता है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के अंग पुन:स्थापन संगठन (ओरबो) से प्राप्त जानकारी के अनुसार देश में हर साल 1.5 लाख किड़नी की जरूरत पड़ती है, जबकि 3 हजार मुहैया हो पाती है। मरीजों को 25 हजार नए लीवर की आवश्यकता होती है लेकिन हासिल हो पाते है सिर्फ 800 ही। करीब 60 लाख नेत्रहीन लोगों को आंखों से रोशनी की जरूरत होती है, लेकिन 22 हजार 384 लोगों को ही कार्निया हासिल हो पाती है। इस कमी को दूर करने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय आप्ट आउट सिस्टम अपनाने पर विचार कर रहा है।
क्या है आप्ट आउट सिस्टम:
स्पेन में अंग दान की एक ऑप्ट आउट सिस्टम है, जिसके तहत प्रत्येक नागरिक को एक अंग दाता माना जाता है जब तक कि वे ऑप्ट आउट को स्वीकार न करें और अंगों को न दान करने के निर्णय को स्वीकार करें। इंग्लैंड इस दृष्टिकोण को अपनाने वाला नवीनतम देश है। मांग और आपूर्ति के बीच असमानता को भरने के लिए संघषर्रत देश के रूप में, भारत को मृतक दाताओं की दर में सुधार के लिए अंग दान की ऑप्ट आउट पण्राली पर भी विचार करना चाहिए। केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव प्रीति सुदान के अनुसार सरकार इस मामले को लागू करने के लिए गंभीरता से विचार कर रही है। इसके पहले वह विभिन्न समुदाय के अनुयायियों और धर्मगुरुओं के साथ विचार विमर्श किया जा रहा है। निष्पक्ष तौर पर, कोई भी पहल तब तक सफल नहीं हो सकती जब तक कि जनता के बीच पर्याप्त जागरूकता न हो। प्रभावशाली लोगों जैसे कि लोकप्रिय हस्तियों, खिलाड़ियों और धर्म गुरु ओं को जागरूकता अभियानों में शामिल करना बहुत महत्वपूर्ण है। एक ऑर्गन डोनर (अंग दाता) दिल, दो फेफड़े, अग्न्याशय (पैंक्रीयाज), दो गुर्दे (किडनी) और आंत (इंटेस्टाइन) दान करके आठ लोगों के जीवन को बचा सकता है।
विशेषज्ञों की नजर में:
पारस हेल्थकेयर के प्रबंध निदेशक डा. धर्मिद्र नागर का मानना है कि अशिक्षा के उच्च स्तर और जागरूकता की कमी वाले देश के रूप में, भारत शायद अभी तक ऑप्ट आउट पण्राली में स्थानांतरित होने के लिए तैयार नहीं है। यह तर्क विशेष रूप से इस तथ्य को ध्यान में रखता है कि धार्मिंक मान्यताएं मृतकों के साथ भी जुड़ी हुई हैं। कुछ समुदायों की धार्मिंक मान्यताएं भी पोस्टमार्टम को भी मानव शरीर का अपवित्र होना मानती हैं। अंग दान से जुड़े कई मिथक भी हैं। और कुछ समुदायों का मानना है कि यह उनकी धार्मिंक मान्यताओं के खिलाफ है।
सकारात्मक पहल:
देश में पहले ही ड्राइविंग लाइसेंस पर अपने अंगों को गिरवी रखने का विकल्प प्रदान करने की प्रथा को अपना लिया है। 2018 में, सरकार ने यह दिखाने के लिए ड्राइविंग लाइसेंस के प्रारूप में बदलाव किया कि क्या व्यक्ति ने मस्तिष्क की मृत्यु के मामले में अपने अंगों को गिरवी रखा है। ज्यादातर ड्राइविंग लाइसेंस धारक व्यक्ति के रक्त समूह का उल्लेख इसमें होता है। इसमें अब यह भी कहा जाएगा कि एक व्यक्ति दाता बनने के लिए सहमति देता है या नहीं।
अंगदान दो तरह से किए जा सकते हैं:
– लिविंग डोनर: जीवित रहते हुए कोई भी व्यक्ति शरीर के कुछ अंग जैसे किडनी, बोन मैरो (अस्थि मज्जा), लिवर और फेफड़े का कुछ हिस्सा परिजनों को डोनेट कर सकता है.
– ब्रेन डेड: इसे केडेवर डोनर भी कहते हैं। 18 साल से कम उम्र के युवा पैरेंट्स की अनुमति और इससे अधिक उम्र होने पर अंगदान के लिए रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। ब्रेन डेड घोषित होने पर किडनी, लीवर, फेफड़े, पैन्क्रियाज, ओवरी, गर्भाशय, आंखें, हड्डियां और त्वचा का दूसरे शरीर में ट्रांसप्लांट करते हैं।
स्थिति:
सिंगापुर, बेल्जियम और स्पने में 10 लाख में से 20 से 40 लोग, अमेरिका, जर्मनी और नीदरलैंड में 10 लाख में से 10 से 20 लोग अंगदान करते हैं जबकि भारत में प्रति 10 लाख में से ये आंकड़ा 0.16 लोगों का है।

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