ज्ञानप्रकाश
नई दिल्ली , जीवन के लिए अति खतरनाक और मैन टू मैन फैलने वाली जानलेवा बैक्टीरियल ट्यूब्रोक्लोसिज (टीबी) पर अंकुश लगाने के लिए अब कुछ नई तकनीकियों ने इलाज को आसान बना दिया है। लालाराम स्वरूप तपेदिक रोग संस्थान (एलआरएस) के निदेशक डा. रोहित सरीन ने बताया कि जांच और इलाज में नवीनतम विधि आ गई है। जिससे मरीज की समय रहते पहचान करने के साथ ही इस बीमारी को जड़ से खत्म करने में महती सफलता मिल रही है। कई नवीनतम जांच और दवाओं के असरदार अवयवों पर शोध भी किया जा रहा है।
जांच और इलाज में नया क्या:
पहले जीन एक्सपर्ट टेस्ट (जीएटी) जरूरी: पहले टीबी के कुछ ही मामलों में जीन एक्सपर्ट टेस्ट कराया जाता था, लेकिन अब सभी मरीजों को कराना होता है। इसके कई फायदे हैं। इससे पता लग जाता है कि मरीज रिफैम्पसिन के प्रति रेजिस्टेंट तो नहीं है। दरअसल, टीबी के ज्यादातर मामलों में रिफैम्पसिन या आइसोनेक्स दवा दी जाती है। कुछ मरीज रिफैम्पसिन के प्रति रेजिस्टेंट होते हैं यानी इस दवा का उन पर असर नहीं होता, जबकि यह दवा सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाती है। पहले यह पता लगाने में लगभग 2 महीने लग जाते थे। जीन एक्सपर्ट टेस्ट का नतीजा 4 घंटों में आ जाता है और इसके आधार पर 24 घंटे में मरीज का इलाज शुरू हो सकता है। इससे इलाज शुरू करने में देरी नहीं होती। अगर मरीज के 1 मिली बलगम में 100 बैक्टीरिया भी हैं तो भी इस टेस्ट से पता लग जाता है। बीमारी के बढ़ने से पहले जानकारी मिल जाती है। बीमारी का पता शुरू में लगने से दूसरे लोगों में इन्फेक्शन फैलने से बच जाता है। माना जाता है कि एक मरीज की भी जानकारी वक्त पर मिल जाती है तो टीबी के 15-20 मामले जरूर रु कते हैं।
दो नई दवाएं बन रही है जीवनदायनी:
हाल में टीबी की 2 नई दवाएं बेडाक्विलिन और डेलामैनिड आई हैं। ये दोनों दवाएं ड्रग्स रेजिस्टेंट टीबी में दी जाती हैं और मरीजों पर बेहतर तरीके से काम करती हैं। लगभग 40 साल से भी ज्यादा वक्त के बाद टीबी के इलाज के लिए नई दवा मार्केट में आई हैं। हालांकि बेडाक्विलिन सब जगह अभी उपलब्ध भी नहीं है। महरौली स्थित एलआरएस ‘नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टीबी एंड रेस्पिरेटरी डिसीज़ में एक कमिटी तय करती है कि किस मरीज को यह दवा दी जाए। ऐसा इसलिए है ताकि इस दवा के प्रति भी मरीजों में रेजिस्टेंस पैदा न हो जाए।
क्या है टीबी:
टीबी यानी ट्यूबरक्युलोसिस बैक्टीरिया से होनेवाली बीमारी है। सबसे कॉमन फेफड़ों का टीबी है और यह हवा के जरिए एक से दूसरे इंसान में फैलती है। मरीज के खांसने और छींकने के दौरान मुंह-नाक से निकलने वालीं बारीक बूंदें इन्हें फैलाती हैं। ऐसे में मरीज के बहुत पास बैठकर बात की जाए तो भी इन्फेक्शन हो सकता है। फेफड़ों के अलावा ब्रेन, यूटरस, मुंह, लिवर, किडनी, गले आदि में भी टीबी हो सकती है। फेफड़ों के अलावा दूसरी कोई टीबी एक से दूसरे में नहीं फैलती। टीबी खतरनाक इसलिए है क्योंकि यह शरीर के जिस हिस्से में होती है, सही इलाज न हो तो उसे बेकार कर देती है। फेफड़ों की टीबी फेफड़ों को धीरे-धीरे बेकार कर देती है तो यूटरस की टीबी बांझपन की वजह बनती है, ब्रेन की टीबी में मरीज को दौरे पड़ते हैं तो हड्डी की टीबी हड्डी को गला सकती है।