खबर एम्स से : दिल्ली-एनसीआर और दूसरे स्टेट के डॉक्टर्स सिखेंगे एडवांस थ्रीडी डेंटल इम्लांट की तकनीक -16 ऑपरेशन थियेटरों में एक दिन में क्लीनिक प्रशिक्षण लेंगे 300 से अधिक डेंटल सर्जन -सरकारी अस्पतालों में केवल सिर्फ एम्स में ही है थ्रीडी एडवांस सीबीसीटी की सुविधा

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ज्ञानप्रकाश नई दिल्ली,अब दिल्ली-एनसीआर और अन्य राज्यों के डॉक्टरों को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के वैज्ञानिक डेंटल इम्पलांट के लिए थ्रीडी तकनीक वाला एडवांस सीबीसीटी करना सिखाएगा। इसके लिए आज एम्स में डॉक्टर्स इकट्ठा होने जा रहे हैं। एम्स के सेंटर फॉर डेंटल एजुकेशन एंड रिसर्च (सीडीईआर) डिपार्टमेंट की ओर से यह पहल की जा रही है। सीडीईआर के चीफ डा. ओपी खरबंदा से मिली जानकारी के मुताबिक सरकारी अस्पतालों में केवल एम्स ऐसा अस्पताल है जहां एडवांस सीबीसीटी किया जाता है। डेंटल इम्लांट के इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन न तो अन्य अस्पतालों में इसकी सुविधा है और न ही डॉक्टरों को इस बारे में ज्यादा जानकारी है। आमतौर पर अस्पतालों में डेंटल इम्लांट करने से पहले मुंह की स्थिति जानने के लिए एक्स-रे किया जाता है जिसमें यह चेक किया जाता है कि कहीं इम्पलांट वाली जगह के आसपास कोई नस तो नहीं या फिर बॉन डेंसिटी कैसी है। साथ ही उसका हाईट और चौड़ाई भी मापी जाती है लेकिन इसमें काफी समय लगता है।
नई तकनीक की खासियतें:
थ्रीडी एडवांस सीबीसीटी में मुंह की स्थित को स्कैन कर लिया जाता है और स्कैन करते ही वह आपके सामने स्क्रीन पर होती है जिसमें एक-एक चीज साफ नजर आती है और इम्पलांट करने में सहायता होती है। इसमें पूरी वर्चुअल प्लानिंग की जाती है। इससे पेशेंट का इम्पलांट करने में तकलीफ भी कम होती है और समय भी कम लगता है। इसके बारे में डॉक्टरों को सिखाने के लिए आज दिल्ली-एनसीआर सहित अन्य राज्यों के डॉक्टर एम्स पहुंच रहे हैं। यह कार्यक्रम ऑरिगन हेल्थ एंड साइंस यूनिर्वसटिी के सहयोग से किया जा रहा है जिसमें ऑरिगन और एम्स के डॉक्टर शामिल रहेंगे और इस तकनीक को डॉक्टरों को सिखाएंगे। यह एक तरह का पूरा कोर्स है।


प्रिवेंशन या कम्युनिटी डेंटल पर भी होगा जोर:
एम्स दंत विज्ञान विंग के प्रमुख डा. ओपी खरबंदा ने बताया कि यह कार्यक्रम दो भागों में किया जा रहा है। पहले में थ्रीडी एडवांस सीबीसीटी करना सिखाया जाएगा। वहीं दूसरे हिस्से में प्रिवेंशन पर जोर दिया जाएगा क्योंकि प्रिवेंशन की तरफ लोगों का ध्यान कम है। अगर किसी के दांत में दर्द है तो या तो वह उसे सहन करता रहेगा या फिर सीधा उसे निकलवाने की सोचेगा। प्रिवेंशन के बारे में बेहद कम लोग सोचते हैं। ऐसे में डॉक्टरों को यह बताया जाएगा कि वह कैसे पब्लिक को प्रिवेंशन की तरफ आकर्षित करें और बर्दास्त करने या दांत निकलवाने से अच्छा उसका इलाज करके उसे ही ठीक करें।

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