# Me Too कलयुग का चरम है, लीलाओं में रावण, राम, लक्ष्मण, सीता का किरदार निभा रहे कलाकारों भी है दु:खी सख्त कानून बने, साथ ही चरित्र निर्वाण के लिए छिड़े महाअभियान

0
880

ज्ञानप्रकाश नई दिल्ली राजधानी में आयोजित करीब 600 रामलीला समितियों के मंचों पर रावण, मेघनाद्, कुंभकरण, राम, लक्ष्मण का किरदार निभा रहे कलाकार कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ दुनियाभर में जारी मीटू आंदोलन से खासे खफा है। उनका कहना है कि रावण राज्य में कभी खुले आम बहन, बेटियों और महिलाओं की आबरू नहीं लुटी जाती थी। लोग संयमित जीवन जीते थे, ऋषि मुनियों की कृपा से कोई भी शख्स अनैतिक गतिविधि महिलाओं के साथ करने की जुर्रत बमुश्किल ही कर पाता था। लेकिन अब तो बहन, बेटियों की इज्जत सरेआम लुटी जा रही है। इन घटनाओं से कलाकार भी खासे दु:खी है। उनका कहना है कि मीटू कलयुग का चरम है। सख्त कानून के साथ ही व्यक्ति के चरित्र सुधारने के लिए महाआंदोलन की महती दरकार है।
एतिहासिक लवकुश लीला के मंच पर 22 साल से रावण का किरदार कर रहे मोहन राव ने कहा कि दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी जैसे अवगुणों को छोड़ने की प्रेरणा हमें देता है। हर साल लीला मंचन हमें याद दिलाती है कि हमें सात्विक आहार लेने, सत्य, अहिंसा, सदाचार, चरित्रवान होना चाहिए। लेकिन वर्तमान में जबकि सुचना प्रोद्योगिकी, संचार चरम पर है, शिक्षा का स्तर भी बढ़ा है, जन संसाधन, सुविधाओं में भी इजाफा हुआ है। बावजूद इसके लोगों की बुद्धि मंद हो रही है, वे अपनी बहु, बेटी को तो सम्मान जनक नजर से देखते हैं लेकिन दूसरों की बेटियों के प्रति बुरी नजर रखते हैं। ऐसे लोगों को दंडित करने के साथ ही कठोर नियम भी बनाए जाने की जरूरत है। नवश्री धार्मिक लीला में लक्ष्मण का किरदार निभा रहे बृजनंदन ने कहा कि दशहरा या विजयादशमी नवरात्रि के बाद दसवें दिन मनाया जाता है। भगवान राम युद्ध की देवी मां दुर्गा के भक्त थे, उन्होंने युद्ध के दौरान पहले नौ दिनों तक मां दुर्गा की पूजा की और दसवें दिन दुष्ट रावण का वध किया। इसके बाद राम ने भाई लक्ष्मण, भक्त हनुमान, और बंदरों की सेना के साथ एक बड़ा युद्ध लड़कर सीता को छुड़ाया। इसलिए विजयादशमी बुराई पर अच्छाई, असत्य पर सत्य और अंधकार पर प्रकाश का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण दिन है। इस दिन रावण, उसके भाई कुम्भकर्ण और पुत्र मेघनाद के पुतले खुली जगह में जलाए जाते हैं। मीटू जैसी पाश्चात्य संस्कृति की सक्रियता दरअसल,समाज की गंदी सोच का नतीजा है।
पीतमपुरा मॉडल टाउन रामलीला कमेटी में राम का अभिनय कर रहे रामनाथ ने कहा कि जिस तरह से रावण ने अपनी मोक्ष की प्राप्ति के लिए मां सीता का क्षल स हरण किया, तो सोने की लंका प्रभु राम ने जलाकर खाक कर दी थी, उसी तरह से अब वक्त आ गया है की मीटू की प्रवृत्ति को रोकी जाए। इसी रामलीला में सीता का किरदार निभा रही सारिका ने कहा कि परिवर्तन यह होना चाहिए कि यौनाचार करने वालों को सख्त दंड दिया जाए। पीयू ब्लाक श्रीरामलीला कमेटी में भरत का अभिन कर रहे पं. रामेर भी मीटू जैसी प्रवृत्तियों पर जल्द अंकुश लगाने की वकालत की।
मीटू के लिए बने सख्त कानून:
श्रीरामलीला महासंघ के प्रधान सुखवीर सरन अग्रवाल ने कहा कि आखिर कैसे संघर्ष करें घर-परिवार, समाज एवं संसार में छिपी बुराइयों से, जब हर तरफ रावण-ही-रावण पैदा हो रहे हो, चाहे भ्रष्टाचार के रूप में हो, चाहे राजनीतिक अपराधीकरण के रूप में, चाहे साम्प्रदायिक विद्वेष फैलाने वालों के रूप में हो, चाहे शिक्षा, चिकित्सा एवं न्याय को व्यापार बनाने वालों के रूप में। बीते 50 साल से लीला मंचन को निर्वाध रूप से कराने के प्रयास करने वाल श्री अग्रवाल ने कहा कि दशहरे का सांस्कृतिक पहलू भी है। यह देश की सांस्कृतिक एकता और अखंडता को जोड़ने का पर्व भी है। देश के अलग-अलग भागों में वहां की संस्कृति के अनुरूप यह पर्व मनाया जाता है, इस पर्व के माध्यम से सभी का स्वर एवं उद्देश्य यही होता है कि बुराई का नाश किया जाये और अच्छाई को प्रोत्साहन दिया जाये। यह पर्व कृषि उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। भारत कृषि प्रधान देश है। जब किसान अपने खेत में सुनहरी फसल उगाकर अनाज रूपी संपत्ति घर लाता है तो उसके उल्लास और उमंग का पारावार नहीं रहता।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here