स्वास्थ्य विभाग ने की तैयारी, पांच अस्पतालों में शुरू होगी लीवर विकृति की जांच -हेपेटाइटिस सी संबंधी अन्य नैदानिक जांच की मिलेगी मुफ्त में सुविधा -50 हजार लोगों की हर माह स्क्रीनिंग करने का रखा गया है लक्ष्य -5 करोड़ होगा खर्च, मार्च 2019 में यूनिट करना शुरू करेगी काम

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भारत/ज्ञानप्रकाश नई दिल्ली असहनीय जिगर (लीवर) के दर्द से जूझ रहे मरीजों के लिए राहत की खबर है। दिल्ली सरकार ऐसे मरीजों की पहचान करने के लिए वृहद स्तर पर पांच अस्पतालों में लीवर स्क्रीनिंग क्लीनिक की शुरुआत करेगी। इस योजना को पूरा करने में मार्च 2019 का लक्ष्य रखा गया है। जिस पर 5 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। यकृत, गुर्दा एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान (आएलबीएस) के विशेषज्ञों की देखरेख में पं. मदम मोहन मालवीय हास्पिटल, महषर्ि वाल्मीकी हास्पिटल, संजय गांधी स्मारक अस्पताल, हरी नगर स्थित दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल, यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिकल साईसेज से संबंद्ध गुरुतेग बहादुर अस्पताल में यह क्लीनिक खोले जाएंगे। यहां पर लीवर संबंधी विकृति वाले मरीजों का ही सिर्फ इलाज व नैदानिक सेवाएं एक ही छत के नीचे मुहैया की जाएंगी।
फलू प्रूफ तैयारी:
आईएलबीएस के निदेशक डा. एसके सरीन ने कहा कि राजधानी में हर पांचवा व्यक्ति लीवर संबंधी बीमारी से जूझ रहा है। लेकिन दु:खद यह है कि 70 फीसद मामले लीवर खराब होने के तीसरे और चौथे स्टेज में अस्पताल में पहुंचत हैं। लीवर संबंधी रोग की यदि शुरुआत में पता चल जाए तो यह तय है कि उसके क्षतिग्रस्त होने की प्रक्रिया को रोका जा सकता है। यह कार्य मामुली दवाओं के जरिए ही संभव है। इसके लिए हेपेटाइटिस सी की जांच कराना भी अनिवार्य किया जाए। इसके लिए आईएलबीएस ने एक गैर सरकारी संस्था के साथ समझौता किया है। इन अस्पतालों में एक फिजिसियन और एक माइक्रोबायोलॉजी की चिकित्सक चयनित किया जाएगा, जो नोडल ऑफिसर की तरह काम करेंगे। इन अस्पतालों में अत्याधुनिक हेपेटाइटिस जांच किट दी जाएगी, जो प्रेगनेंसी जांच किट की तरह होगा। यहीं नहीं इसके लिए मरीज से केवल बार ब्लड सैंपल लिया जाएगा। इन पांच अस्पतालों में हुई प्राथमिक जांच में इसका पता लगने पर शेष बचे ब्लड सैंपल को आईएलबीएस भेजा जाएगा। यहां इनकी गहन जांच की जाएगी। उनका कहना है कि इसके तहत करीब 50 हजार मरीजों की स्क्रीनिंग की जाएगी।
हम गंभीर है:
अभियान में शामिल संजय सरीन के अनुसार अभी तक दिल्ली सरकार में हेपेटाइटिस सी को लेकर कोई अलग से प्रोग्राम नहीं है। हालांकि इसकी दवा को सरकार ने इसेंसियल ड्रग लिस्ट में जरु र डाल दिया है। यही नहीं इसे लेकर नेशनल प्रोग्राम के आभाव में इसके मरीजों का डाटा बेस भी नहीं है। इसलिए इस अभियान में आईएलबीएस की जांच में बीमारी का पता लगने के बाद न सिर्फ फोन कर मरीज से संपर्क किया जाएगा, बल्कि उनका एक डाटा बेस भी बनाया जाएगा, जो बीमारी को लेकर भविष्य में बनने वाली योजनाओं का आधार होगा।

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