सुनहरे आधे घंटे ने हार्ट अटैक से पीड़ित एक 42 वर्षीय की जिंदगी बचा ली -34 मिनट में डोर-टू-बैलूनिंग कर 16 मिनट में प्रत्योरोपित किया स्टेंट

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ज्ञानप्रकाश नई दिल्ली, कहते हैं कि यदि डाक्टरों की टीम में आपसी तालमेल अैार अस्पताल में एक ही छत के नीचे सभी सुविधाएं हो तो मरीज कितनी भी जोखिम में क्यों न इमरजेंसी में लाया जाए उसका जीवन बचाया सकता है। चेन्नई के 42 वर्षीय निवासी संतोष कुमार गुर्गुबेली का कुछ ऐसे ही मामला है। हार्ट अटैक के बाद कुछ मिनट के अंदर उसे अस्पताल में लाया गया जहां पर डाक्टरों ने 34 मिनट में बैलूनिंग की और 16 मिनट में स्टेंट प्रत्योरित कर बंद धमनी का रक्त संचार सामान्य कर नई जिंदगी दी है। यह मामला बीएलके सुपरस्पेशिलिटी अस्पताल का है। अस्पताल में इमेरजेंसी एंड एक्यूट केयर के निदेशक डा. नवनीत सिंह ने दावा किया कि जिनकी मुस्तैदी और कार्डिएक विभाग से समन्वय करके तुरंत चिकित्सकीय सुविधा मुहैया कराने से एक जिंदगी बचाने में मदद मिली। यह प्रक्रिया सुनहरे आधे घंटे ने हार्ट अटैक से पीड़ित अब स्वस्थ है। उसे यहां छाती में तेज दर्द की शिकायत पर लाया गया था। तत्काल ईसीजी किया गया जिसमें व्यापक, एंटीरियर मायोकार्डियल इंफ्राक्शन का पता चला, जो सबसे गंभीर कार्डियक आपात स्थिति है, क्योंकि इससे कार्डियक अरेस्ट या दिल को गंभीर नुकसान हो सकता है। कार्डियलॉजी यूनिट के प्रमुख डा. नीरज भल्ला के अनुसार उनके बाएं एंटीरियर असेंडिंग (एलएडी) आर्टरी में 100 फीसद ओस्टियल घाव था और वह खुला हुआ था, तुरंत प्रवाह को बहाल किया गया। 16 मिनट के तेज टर्नअराउंड समय के भीतर आर्टरी में बहाव रखने के लिए एक स्टेंट लगाया गया। रोगी ने तत्काल और कुशल इलाज पर बहुत अच्छी प्रतिक्रिया दी और एक बहुमूल्य जीवन बच गया।
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मैक्स कैथलैब के निदेशक डा. विवेका कुमार के अनुसार हर साल भारत में 30 लाख से अधिक लोगों को दिल का दौरा पड़ता है और कई जीवित नहीं बच पाते हैं। बच न पाने के सबसे बड़े कारणों में से एक समय पर इलाज न मिल पाना है। डोर-टू-बैलून को कम करना दिल के दौरे की मौत दर को कम करने में एक बड़ी भूमिका निभाता है। हाल के दिनों में, तकनीकी और प्रक्रिया में उन्नित से रोगी के समग्र परिणामों में बेहतर करने में मदद मिली है।

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