शतप्रतिशत बाल मृत्युदर के उन्मूलन संबंधी सरकारी दावा बेमानी -वर्ष 2017-18 में 5051 बच्चों की मौत, जबकि 2 लाख 67 हजार 828 बच्चों का हुआ जन्म -67 फीसद प्रसुताएं गर्भ के एडवांस स्थिति पर पहुंचती है अस्पताल

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ज्ञानप्रकाश
नई दिल्ली , राजधानी में बाल मृत्यु दर को शुन्य करने के लक्ष्य को लेकर की जा रही कोशिशों के बावजूद दिल्ली में पांच हजार से अधिक मृत बच्चों का जन्म हुआ। दिल्ली सरकार आधुनिक सुविधाओं को बढ़ा रही है लेकिन यह आकड़ा शुन्य तक नहीं पहुंच पा रहा है। पिछले 5-6 सालों से करीब इतने ही मृत बच्चों का जन्म हुआ। सूचना के अधिकार मिली जानकारी में यह खुलासा किया गया। आरटीआई से प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्ष 2017-18 में दिल्ली के सार्वजनिक और निजी अस्पतालों में 2 लाख 67 हजार 828 जीवित बच्चों का जन्म हुआ। जबकि 5051 मृत बच्चों का जन्म हुआ। आरटीआई कार्यकर्ता राजहंस बंसल ने दिल्ली स्वास्थ्य विभाग से दिल्ली के सरकारी और निजी अस्पताल में हुए बच्चों के जन्म के बारे में जानकारी हासिल की।
विभाग से मिली जानकारी के अनुसार 2013 से 2017-2018 तक दिल्ली के सार्वजनिक और निजी अस्पतालों में 21281 मृत बच्चों का जन्म हुआ और 19 लाख 66 हजार 960 जीवित बच्चों का जन्म हुआ। जानकारी के अनुसार वर्ष 2013 में दिल्ली के अस्पतालों में कुल 3517 मृत बच्चें व 3 लाख 70 हजार जीवित बच्चों का जन्म हुआ। 2014 में 3102 मृत व 373693 जीवित बच्चों का जन्म हुआ। 2015 में 3 लाख 74 हजार 012 जीवित व 3175 मृत बच्चों का जन्म हुआ। वहीं 2016 में मृत बच्चों की संख्या घटकर 2977 रह गई। वर्ष 2017-18 में 5051 मृत बच्चों का जन्म हुआ। वर्ष 2018-19 के दिसंबर 2018 तक 3459 मृत बच्चों का जन्म हुआ जो अभी तक काफी ज्यादा है।
लोक अस्पताल में सर्वाधिक बाल मृत्युदर:
बिस्तरों और स्त्री एवं प्रसूति संबंधी सुविधाओं के मामले में दिल्ली सरकार के सबसे बड़े मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज से संबंद्ध लोकनायक अस्पताल में में मृत बच्चों के जन्म की संख्या ज्यादा देखी गई है। यहां पर अधिकांश मौते जन्म के कुछ घंटे बाद ही दर्ज की गई है। जिसकी वजह संक्रमण के साथ ही कुपोषण और रक्तालप्ता (महिलाओं में खून की कमी), वजन कम होना, रक्तचाप का असामान्य होना पाया गया है।
उपचार में लापरवाही :
लोकनायक अस्पताल में उच्च मृत बच्चों के जन्म को लेकर शिकायत मिली है कि यहां पर प्रसव पूर्व उपचार के दौरान लापरवाही की जाती है। वर्ष 2017-2018 के दौरान प्रसव के दौरान इलाज में कथित लापरवाही की वजह से 198 शिकायतें मिली इसमें 109 में स्थानीय पुलिस में प्राथमिकी दर्ज भी कराई गई। हालांकि यहां के डाक्टरों का तर्क है कि यहां पर आने वाले 67 फीसद गर्भवती महिलाएं गर्भधारण करने के 6 या 7वें महीने में ही पंजीकरण कराने आती है, जबकि 23 फीसद तो एडवांस हालत में यानी डिलीवरी के कुछ सप्ताह पहले तब आती है जब उनकी हालत अत्यंत गंभीर हो चुकी रहती है। इसके पहले स्थानीय क्लीनिकों भरोसे ही इलाज कराती है। इस वजह से हम चाहते हुए भी शिशु का जीवन नहीं बचा पाते हैं। प्रसूति विभाग के प्रो. डा. अशोक कुमार ने कहा कि 24 फीसद महिलाए गर्भ के तीसरे माह में ही पंजीकरण कराती है, ऐसी प्रसुताओं की सेहत और उनकी कोख में पल रहे बच्चे के स्वास्थ्य को हम गंभीरता पूर्वक देखते हैं। चूंकि यह सरकारी अस्पताल है यहां पर हम हर मरीज को उपचार, नैदानिक सेवाएं देते हैं, एडवांस हालत में बिना पुर्व पंजीकरण के ही हमें इमरजेंसी में भी प्रसव करते हैं। जागरुकत की जरूरत है। इसके अलावा गर्भवती महिला के पोषण स्तर और गर्भावस्था से संबंधित जटिलताओं के कारण भी बच्चों की मौत हो रही है।

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