ज्ञान प्रकाश नई दिल्ली ,एल्कली मैन्यूफैक्चर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एएमएआई) ने क्लोरीन के जरिये जल को संक्रमणमुक्त करने और पानी से होने वाली बीमारियों के रोकथाम के लिए जागरूकता अभियान शुरू किया है। एएमएआई कास्टिक सोडा, सोडा एश और क्लोरोविनाइल का उत्पादन करने वाली कंपनियों की अहम संस्था है। दुनियाभर में पीने के पानी को संक्रमणमुक्त करने के लिए क्लोरीन का इस्तेमाल होता है और एक निसंक्रामक (डिसइंफैक्टेंट) के रूप में यह सबकी पहली पसंद है। पानी के संक्रमण को खत्म करने के लिए क्लोरीन का इस्तेमाल सुरक्षित व प्रभावी है और यह भारत में आसानी से उपलब्ध भी है।
एएमएआई के अध्यक्ष जयंतीभाई पटेल ने कहा सुरक्षित पीने के पानी की पहुंच लोगों तक सुनिश्चित करने के लिए एएमएआई प्रतिबद्ध है। एएमएआई के सदस्यों ने न केवल क्लोरीन की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने की दिशा में अभियान चलाया है, बल्कि पानी और वेस्टवाटर ट्रीटमेंट से जुड़े लोगों को क्लोरीन के सुरक्षित प्रयोग के बारे में निशुल्क प्रशिक्षित भी कर रहे हैं। श्री पटेल ने आगे बताया कि क्लोरीन और कास्टिक सोडा एल्कली उद्योग के उप-उत्पाद हैं और एएमएआई ने स्वयं अपने स्तर पर क्लोरीन के सुरक्षित प्रयोग को लेकर जागरूकता फैलाने का अभियान चलाया है। वेस्टवाटर ट्रीटमेंट को लेकर चलाया जा रहा एएमएआई का अभियान स्वच्छ भारत अभियान के लक्ष्यों का समर्थन भी करता है।
यह भी:
पीने के पानी के सोत जैसे नदी, तालाब, नहर, कुएं आदि कई तरह की बीमारियों का कारण बनने वाले बैक्टीरिया, वायरस और प्रोटोजोआ जीवाणुओं से संक्रमित हैं और डायरिया, हेपेटाइटिस ए, हैजा और टायफाइड जैसी कई बीमारियों का कारण बन रहे हैं।
जरूरत क्यों:
हाल ही में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने कहा था कि भारत के शहरों से निकलने वाला सीवेज का 60 फीसद से ज्यादा पानी बिना शोधित हुए सीधे नदी आदि जलसोतों में मिल जाता है और इसे मनुष्यों के प्रयोग के लिहाज से असुरक्षित बना देता है। एनजीटी ने यह भी कहा था कि पर्यावरण में आ रही गिरावट से लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है और इस दिशा में तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। एएमएआई द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार करीब 3.77 करोड़ भारतीय सालाना पानी से होने वाली बीमारियों का शिकार हो जाते हैं और इस तरह की बीमारियों के कारण 7 करोड़ कार्य दिवसों का नुकसान होता है। इस कारण से अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाला दबाव अनुमानित 60 करोड़ डॉलर सालाना का है। यूनीसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में हर साल 3 लाख 80 हजार बच्चों की डायरिया और इससे जुड़ी दिक्कतों के कारण मौत हो जाती है। शहरी भारत में 80 प्रतिशत बीमारियों की वजह सफाई की कमी और संक्रमित जल है। पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत की सबसे बड़ी वजहों में डायरिया शुमार है। बैक्टीरिया, वायरस और प्रोटोजोआ जीवाणुओं को प्रभावी तरीके से खत्म करने के लिए इस तरह से डिसइंफेक्शन की जरूरत होती है, जो इन्हें रासायनिक व भौतिक दोनों तरीके से खत्म कर दे। इस दिशा में क्लोरीन एक प्रभावी माध्यम है।