ज्ञान प्रकाश नई दिल्ली , कहते हैं मरीजों के लिए डाक्टर भगवान समान होते हैं लेकिन लीवर कैंसर से जूझ रहे दो मरीजों के लिए उनकी पत्नियां भगवान बनकर सामने आई और उनकी जान बचा ली। पतियों की जान बचाने में पत्नियों की सीधी भूमिका न होकर थोड़ी टेढ़ी थी। मरीजों की पत्नियां अपना लीवर डोनेट कर एक-दूसरे के पति की जान बचाने में कामयाब रहीं। इस वक्त मरीज और उनकी पत्नियां दोनों ठीक हैं। इसके लिए 40 डॉक्टरों को टीम ने 12 घंटे तक ऑप्रेशन कर कड़ी मशक्कत की।
जानकारी के मुताबिक लीवर की बीमारी से जूझ रहे 45 साल के हरमिंदर सिंह और योगेश शर्मा का साकेत के मैक्स अस्पताल में इलाज चल रहा था। डॉक्टर्स ने उन्हें लीवर ट्रांसप्लांट की सलाह दी थी मगर कोई भी डोनर नहीं मिल रहा था। इनकी पत्नियां इन्हें लीवर डोनेट करने में सक्षम नहीं थीं क्योंकि उनका ब्लड ग्रुप एक-दूसरे से मैच नहीं कर रहा था। दरअसल हरमिंदर का ब्लड ग्रुप बी पॉजिटिव था और उसकी पत्नी गुरदीप कौर का ए पॉजिटिव, वहीं योगेश शर्मा का ब्लड ग्रुप ए पॉजिटिव था और उसकी पत्नी अनु शर्मा का ए पॉजिटिव। ऐसे में योगेश शर्मा की पत्नी अनु शर्मा को पता चला कि उसके पति से मिलता-जुलता ब्लड ग्रुप एक अन्य मरीज हरमिंदर की पत्नी से मिल रहा है और हरमिंदर को जिस ब्लड ग्रुप के डोनर की जरूरत है वह खुद उसका है। ऐसे में अनु ने गुरदीप से उसके पति को लीवर डोनेट करने की बात की और उससे अपने पति को डोनेट करने के लिए कहा। गुरदीप के तैयार होने पर दोनों ने राहत की सांस ली। इसके बाद डॉक्टरों ने इनका ऑपरेशन प्लान किया और 30 जनवरी, 2019 को ऑप्रेशन हुआ। अनु शर्मा ने बताया कि लीवर डोनेट करने में कोई खतरा नहीं हैं। जान बचाने के लिए यह लोगों को करना चाहिए। डोनर न मिलने की वजह से मैं बहुत परेशान थी मगर गुरदीप से बात करने पर राहत मिली थी। हमारे इस कदम से दो परिवार बिखरने से बच गए। इत्तेफाक से गुरदीप हमारे पड़ोस में ही रहती हैं और अब हम अच्छे दोस्त हैं।
चुनौती पूर्ण प्रक्रिया:
लीवर ट्रांसप्लांट सर्जन डा. सुभाष गुप्ता ने बताया कि जैसे ही हमें मरीजों के डोनर के बारे में पता चला हमने तुरंत जांच कराई और ऑप्रेशन प्लान किया। डा. गुप्ता ने बताया कि दोनों मरीजों का ट्रांसप्लांट एकसाथ करना था। इसके लिए एक ही वक्त पर चार ऑप्रेशन थिएटरों में ऑप्रेशन हुआ। पूरा ऑप्रेशन 12 घंटे तक चला। अब मरीज और डोनर दोनों ठीक हैं।