.हर साल 3 करोड़ अल्पविकसित शिशु ले रहे जन्म! -स्वास्थ्य विभाग-यूनिसेफ की रिपोर्ट में सामने आई स्थिति -17 लाख शिशुओं को हर साल मौत से बचाने में जुटी स्वास्थ्य एजेंसियां – नवजात शिशुओं को तत्काल इलाज की है दरकार – 2017 में 25 लाख शिशुओं की हो चुकी है मौत

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ज्ञानप्रकाश/भारत चौहान नई दिल्ली, दुनिया में हर साल 3 करोड़ नवजात शिशु अल्पविकसित पैदा हो रहे हैं। संक्रमण प्रीमैच्योर और रक्ताल्पता (खून की कमी) होने के कारण इन्हें तत्काल बेहतर चिकित्सीय सुविधा की जरूरत पड़ती है। जन्म के दौरान इन्हें बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं नहीं मिलने की वजह से नवजात शिशु अपना पहला जन्म दिवस नहीं मना पाते हैं। उनकी मृत्यु हो जाती है। परिवार कल्याण निदेशालय और यूनिसेफ ने जारी रिपोर्ट में दावा किया है कि वर्ष 2017 के दौरान करीब 25 लाख नौनिहाल दम तोड़ चुके हैं। नवजात शिशुओं की कमजोर स्थिति ग्लोबल कोलिशन की रिपोर्ट भी करती है।
क्या कहती है रिपोर्ट:
रिपोर्ट के अनुसार भारत सहित निम्र और मध्य आय वाले देशों में नवजात शिशुओं की हालत सबसे खराब देखने को मिल रही है। अगर स्वास्थ्य सेवाओं पर ध्यान दिया जाए तो करीब 17 लाख नवजात शिशुओं को हर वर्ष मरने से बचाया जा सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार शिशु के जन्म लेने से 28 दिन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं। करीब 80 फीसद शिशु कम वजन के साथ जन्म ले रहे हैं। इनके पीछे वजहें कई हो सकती हैं लेकिन रिपोर्ट में दुनिया भर के देशों से समाधान के लिए अपील की है। रिपोर्ट में ये भी कहा है कि अगर सभी देश मिलकर अभी से इस परेशानी से लड.ना शुरू करें तो साल 2030 तक नवजात शिशुओं की मौत में काफी गिरावट आ सकती है।
माता पिता है चिंतित:
संयुक्त राष्ट्र संस्था यूनिसेफ के उप कार्यकारी निदेशक ओमर आबदी का कहना है कि शिशुओं के साथ उनके माता पिता की चिंता करना भी बेहद जरूरी है। दुनिया में होने वाली शिशुओं की मौत में से अधिकांश को रोका जा सकता है। प्राथमिक से लेकर टर्सरी केयर के जरिए हर देश अपने यहां की शिशु मृत्युदर पर नियंतण्रपा सकता है। बता दें कि इससे पहले भी यूनिसेफ ने वि स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के साथ मिलकर एक संयुक्त रिपोर्ट कुछ माह पहले जारी की थी जिसके अनुसार दुनियाभर में हर 5 में से 3 नवजात बच्चे ऐसे हैं जिन्हें जन्म के पहले एक घंटे के भीतर किसी कारणवश स्तनपान नहीं नसीब होता है। ऐसे बच्चों की संख्या दुनियाभर में 780 लाख के करीब है। ऐसे बच्चों के जल्दी मौत का खतरा होता है और उनमें गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। अगर वो किसी तरह जीवित बच भी जाएं तो उनका शारीरिक और मानिसक विकास ठीक ढंग से नहीं हो पाता है।
इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया था कि भारत की स्थिति में पहले से सुधार हुआ है। देश में 2005 से 2015 के बीच काफी सुधार किए हैं। यहां 1 घंटे के नवजात को स्तनपान कराने के आंकड़े 10 सालों में दुगने हो गए हैं। जहां 2005 में ये आंकड़े 23ण्1 प्रतिशत थे वहीं 2015 में ये आंकड़े 41ण्5 प्रतिशत हो गए हैं।
विशेषज्ञों की नजर में:
डब्ल्यूएचओ की उप महानिदेशक डा. सौम्या स्वामीनाथन के अनुसार मां और बच्चे के लिए गर्भाधान से लेकर जन्म के बाद के कुछ महीने महत्वपूर्ण होते हैं। इसका स्वास्थ्यकर होना आवश्यक है। नवजात शिशु के स्वास्थ्य की देखभाल के क्षेत्र में प्रगति सबके लिए लाभ की स्थिति है। इससे जान बचती है और यह प्रत्येक बच्चे के विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
रिपोर्ट में दी गई है चेतावनी:
-2030 तक नहीं आए बदलाव तो अंतरराष्ट्रीय लक्ष्य को हासिल नहीं करना मुश्किल।
– 2030 तक 68 फीसद नवजात शिशुओं की मौत टाल सकती है।
– 81 देशों की 29 लाख महिलाओं हर वर्ष दे सकते हैं संजीवनी।
– 10 लाख शिशु हर वर्ष दिव्यांगता के हो रहे हैं शिकार।

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