डाक्टर मरीज के लिए भगवान से कम नहीं है, इसलिए वे उनके साथ विनम्रता का करें व्यवहार: आडवाणी

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ज्ञान प्रकाश नई दिल्ली , पूर्व उपप्रधानमंत्री एवं भाजपा के वरिष्ठ वयोवृद्ध नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने चिकित्सा पेशे से जुड़े डाक्टरों को मरीजों के साथ विनम्र, मृदृल, सहानुभूति पूर्वक पेश आने की पेशकश करते हुए कहा कि डाक्टर भगवान होते हैं। श्री आडवाणी बुधवार को यहां सरिता विहार स्थित अपोलो हास्टिल के सभागार में इंडियन स्ट्रोक एसोसिएशन और इन्सटीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइन्सेज़ द्वारा लोगों को स्ट्रोक की पहचान, प्रबंधन एवं रोकथाम के बारे में शिक्षित करने के लिए आयोजित ‘सार्वजनिक जागरु कता कार्यक्रम’ के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे।
श्री आडवाणी ने अस्तपाल में स्नायु तंत्रिका विभाग के अध्यक्ष डा. विनीत सूरी के व्यवहार की तारीफ करते हुए कहा कि वह हर मरीज से निहायत ही अदब, सालीनता से पेश आते हैं। मैं व्यक्ति तौर पर इसका चश्मदीद रहा हूं। ऐसे ही अस्पताल में अन्य डाक्टर, पैरामेडिकल स्टाफ मिलनसार का सटीक उदाहरण है।
इस मौके पर श्री अडवाणी के अलावा मिस शहनाज़ हुसैन, सिने अभिनेत्री शर्मिंला टैगोर, एमिटी के संस्थापक अशोक चैहान, पूर्व उपराज्यपाल विजय कपूर समेत कई अन्य गणमान्य मौजूद थे। डा. सूरी ने इस मौके पर आमंत्रित लोगों में 200 से अधिक स्ट्रोक से उबर चुके मरीज़ और उनके परिवारजन भी शामिल लोगों से अनुभव साझा किए। जिन्हें स्ट्रोक के प्रबंधन और रोकथाम के तरीकों पेर जानकारी दी गई।
स्ट्रोक दुनियाभर में मृत्यु का दूसरा कारण:
डॉ सुरी ने बताया कि स्ट्रोक दुनिया भर में मृत्यु का दूसरा बड़ा कारण है, हर दो सेकेंड में एक स्ट्रोक होता है और हर 6 सेकेंड में स्ट्रोक के कारण एक जान चली जाती है। दुनिया में 4 में से एक व्यक्ति को अपने जीवन में स्ट्रोक होता है। इतने भयावह आंकड़ों के बावजूद इसके बारे में जागरु कता की कमी है। स्ट्रोक यानी अचानक शरीर का संतुलन खोना, एक या दोनों आंखों से अचानक देखने में परेशानी, चेहरे में बदलाव, बोलने में दिक्कत प्रारंभिक लक्षण हो सकते हैं। अगर मरीज़ को पहले कुछ घंटों के अंदर सही इलाज मिल जाए तो इसका इलाज संभव है। इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है। इन घंटों को गोल्डन आवर्स कहा जाता है। इलाज के लिए मरीज़ को इन्ट्रावीनस इन्जेक्शन दिया जाता है जिससे 4.5 घंटे के अंदर क्लॉट घुल जाता है। इसी तरह दिमाग में मौजूद क्लॉट को निकालने के लिए 6 घंटे (कुछ मरीज़ों में 24 घंटे) के अंदर एंजियोग्राफी द्वारा मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी की जाती है।

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