एम्स सर्जन्स की काबिलियत पर उठे गंभीर सवाल -आपरेशन थियेटर एम्स का, सर्जन्स बाहर के -मरीज करते हैं भरोसा, लेकिन पॉलिटिशियन्स नहीं

0
681

ज्ञान प्रकाश नई दिल्ली अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के सर्जन्स पर बेशक दुनियाभर के लोग हीं नहीं डाक्टर बिरादरी भी भरोसा करती है लेकिन चौंकाने वाले तथ्य है कि देश के पॉलिटिशिटन्स यानी राजनेता इनकी काबिलियत पर सवाल उठा रहे हैं।
यक्ष प्रश्न:
देश के प्रधानमंत्री से लेकर मंत्रियों तक को एम्स पसंद है, लेकिन शायद नेताओं को एम्स के सर्जन पसंद नहीं हैं। कई नेता अपना इलाज तो एम्स में कराना चाहते हैं लेकिन उन्हें एम्स के डॉक्टरों पर भरोसा नहीं है। वे अपने इलाज के लिए प्राइवेट सर्जन एम्स में बुलाते हैं। देश के सबसे बड़े मेडिकल इंस्टिट्यूट एम्स के डॉक्टरों के इलाज का तरीका देशभर के बाकी डॉक्टर और सर्जन फॉलो करते हैं। हालांकि उसी एम्स में प्राइवेट डॉक्टर आकर वीवीआईपी मरीजों की सर्जरी करते हैं।
दबाव या सरकारी नौकरी की बंदिश से एम्स के डाक्टर इस परम्परा को बंद करने के मूड में हैं। इसकी शुरु आत 2009 में हुई, जब पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की रीडू बायपास सर्जरी की गई थी। तब मुंबई के एशियन हार्ट इंस्टिट्यूट के डा. रमाकांत पांडा को सर्जरी के लिए बुलाया गया था। तब भी एम्स के डाक्टरों में नाराजगी थी। पांडा के बारे में यह दावा किया गया कि वह दोबारा बाइपास सर्जरी में एक्सपर्ट हैं। फिर 2016 में विदेश मंत्री सुषमा स्वाराज ने अपने गुर्दा प्रतिरोपण के लिए एम्स को चुना। एम्स में औसतन हर हफ्ते दो से तीन गुर्दा प्रतिरोपण होते हैं। सुषमा के ट्रांसप्लांट के लिए एक प्राइवेट अस्पताल से एम्स में सर्जन बुलाया गया। 2016 में उनकी सर्जरी के लिए मोहाली के फोर्टसि अस्पताल के रीनल ट्रांसप्लांट के एचओडी डा. मुकुट मिंज को बुलाया गया। मिंज अपनी टीम के साथ आए, उन्हें एम्स के डाक्टरों ने भी सहयोग किया।
केंद्रीय वित्त मंत्री अरु ण जेटली ने भी कुछ ऐसा ही किया। वह भी इलाज के लिए एम्स लाए गए। उन्होंने भी गुर्दा प्रतिरोपण के लिए एम्स के सर्जन की बजाय अपोलो के डा. संदीप गुलेरिया को चुना। पिछले महीने डा. संदीप गुलेरिया अपनी टीम को लेकर एम्स पहुंचे और उनकी सर्जरी की। सर्जरी सफल रही। यकृत प्रतिरोपण के लिए मेदांता के डाक्टर सोईन तो हृदय संबंधी मामलों के लिए डा. नरेश त्रेहन को। इस बारे में फिलहाल कोई फैकल्टी खुलकर नहीं बोल रहा है। लेकिन जल्द ही इस पर फैकल्टी और आरडीए नीतिगत फैसले लेने पर विचार कर सकता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here