नए मानव का निर्माण बचपन के संस्कारों से ही सम्भव: कोठारी

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भारत चौहान नई दिल्ली ,अणुव्रत वि भारती (अणुविभा) की ओर से यहां छतरपुर स्थित तेरापंथ भवन में शांति व अहिंसा पर चल रहे चार दिवसीय 10वें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के दूसरे दिन बुधवार को वेद विज्ञान के मूर्धन्य विद्धन गुलाब कोठारी ने कहा कि नए मानवका निर्माण बचपन के संस्कारों से ही संभव है। वैदिक अवधारणा में नए व्यक्ति के निर्माण विषय पर विशेष सत्र आयोजित हुआ। फ्रांस के इंटरनेशल इंस्टीट्यूट आफ पीस स्टडीज एंड ग्लोबल फिलोसिफी के निदेशक डा. थामस डाफर्न ने सत्र की अध्यक्षता की।
डा. कोठारी ने जीवन के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि संकृति एक स्थायी तत्व है जो जीवन को संस्कारित करती है। अहिंसा की संस्कृति का संबंध केवल व्यक्ति के स्वयं के साथ ही नहीं होता बल्कि वह एक सामूहिक व्यवहार है। वेदों में कहा है। व्यक्ति जैसा अन्न खाता है वैसा ही उसका मन और संस्कार बन जाते हैं। इसीलिए अन्न को ब्रह्म की संज्ञा दी गई है। अन्न वही नहीं होता जो हम खाते हैं, अपितु विचार और ज्ञान भी अन्न के रूप होते हैं। इसी से हमारा स्वभाव बनता है। यही प्रकृति का रूप है जो सत, रज, तम के प्रभावों से निर्मिंत होती है, इसी को माया कहा गया है। यही इच्छाओं की जननी है, इच्छाएं ही हमें कर्म की ओर प्रवृत्त करती हैं। इस दौरान प्रो. जगदीश चंद्र बत्रा, वैज्ञानिक डा. एनएन पन्नीकर, बौद्ध विद्धान गेशे नगवांग सोनम ला, जे रविकुमार स्टीफन और इन्नेशियस जेवियर प्रमुख रूप से शमिल थे। मंच का संचालन अणुविभा के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष डा. सोहनलाल गांधी ने निभाई। इस कार्यक्रम में शांति एवं अहिंसा में विास रखने वाले 15 देशों के 120 से भी ज्यादा बुद्धिजीवी प्रतिनिधि भी शामिल हो रहे हैं।

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