दावे बेमानी: 20 फीसद से अधिक महिलाएं स्वास्थ्य केंद्रों में बच्चों को नहीं देती जन्म – इससे माता और बच्चे दोनों की मृत्यु दर बढ़ती है -एनएफएचएस 4 के सर्वे में खुलासा -आंकड़ों के अनुसार, 78.9 फीसद महिलाओं ने देश में संस्थागत जन्म का विकल्प चुना

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ज्ञानप्रकाश नई दिल्ली , बाल जन्म मृत्युदर में शतप्रतिशत शून्य दर तक कमी लाने के तेज प्रयासों के बावजूद केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय कमी लाने में विफल रहा है। देश में पांच में से एक महिला अब भी किसी व्यवस्थित जगह से बाहर बच्चे को जन्म दे रही है। यानी 20 फीसद महिलाएं घर पर ही बच्चों को जन्म दे रही है। जो शिशु मृत्युदर के फीसद को बढ़ा रही है।
ऐसे हुआ खुलासा:
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस 4) से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, 78.9 फीसद महिलाओं ने देश में संस्थागत प्रसव का विकल्प चुना है। गैर-संस्थागत प्रसव का चुनाव करने वाली महिलाओं को संबंधित जटिलताओं की चपेट में आने का अधिक खतरा होता है, जबकि ऐसी जगह में पैदा होने वाले बच्चों को तुरंत आवश्यक देखभाल उपलब्ध नहीं हो पाता है, और इसीलिए, शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) के बढ़ने की संभावना भी बढ़ जाती है।
घर पर प्रसव, जोखिम भरा:
फोर्टिस ला फेमे की प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ डा. अनिता गुप्ता के अनुसार जो लोग अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवा केंद्रों के बाहर प्रसव का विकल्प चुनते हैं, उनकी घर पर बच्चे के जन्म देने की अधिक संभावना होती है, वो भी किसी प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मिंयों की निगरानी के बिना। ऐसी स्थिति में जन्म देने का अर्थ यह भी है कि मां और बच्चे दोनों की अल्ट्रासाउंड, इलेक्ट्रॉनिक फीटल हॉर्ट रेट (भ्रूण की हृदय गति) की निगरानी और प्रसवकालीन अन्य जरूरी जांच नहीं हो पाती है। भारत जैसे विकासशील देशों के लिए, यह एक मुश्किल स्थिति हो सकती है, क्योंकि कई महिलाओं को पर्याप्त पोषण या जरूरी पोषण भी नहीं मिल पाता है। गैर-संस्थागत जन्म (अस्पताल या स्वास्थ्य सेवा केंद्र के बाहर) मातृ और शिशु मृत्यु दर में वृद्धि और प्रसव के दौरान चिकित्सा जरूरत को प्रतिबंधित करता है, जो माता और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
भ्रांतियां:
एम्स में स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की प्रमुख डा. सुचेता कृपलानी के अनुसार बच्चे को घर में जन्म देना एक सदियों पुरानी प्रथा है, यह प्रथा खासकर ग्रामीण इलाकों में अधिक प्रचलित है। अब भी लोग इन परंपराओं का पालन करने के लिए औपचारिक स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ लिए बिना बच्चे पैदा करने का विकल्प चुनते हैं, जबकि कुछ लोग स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता में खराब सुविधा या स्वास्थ्य कर्मिंयों की उपलब्धता के अभाव में ऐसा करने के लिए मजबूर होते हैं।
महिलाओं को जागरुक करेंगे डाक्टर:
नीति आयोग के सदस्य एवं प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत स्वास्थ्य जन योजना के उपाध्यक्ष डा. वीके पॉल के अनुसार जबकि दिल्ली जैसे शहरी क्षेत्रों में गैर-संस्थागत प्रसव का चुनाव करने वाली महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच एक दृष्टिकोण मात्र है, पारंपरिक विचार औपचारिक स्वास्थ्य चिकित्सा सेवा का विकल्प चुनने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आयुष्मान भारत जैसी योजनाएं स्वास्थ्य सुविधाओं को सुगम बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, इससे डॉक्टरों को उम्मीद है कि आने वाले समय में बच्चे के जन्म के लिए अन्य तरीकों की अपेक्षा संस्थागत प्रसव का चुनाव अधिक होगा।

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