चिल्ड्रेन्स एलर्ट: स्क्रीन पर अधिक समय बिताने से बच्चों का कॉर्टेक्स समय से हो रहा है पतला! -माता-पिता को खुद उदाहरण पेश करते हुए बच्चों के लिए स्क्रीन का समय करें निर्धारित

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ज्ञानप्रकाश नई दिल्ली, शोधकर्ताओं ने ऐसे बच्चों के मस्तिष्क स्कैन में अलग-अलग पैटर्न पाए हैं जो स्मार्टफोन और वीडियो गेम आदि पर अधिक समय लगाते हैं। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (एनआईएच) के एक अध्ययन से मिली जानकारी दर्शाती है कि इस तरह के उपकरणों का उपयोग करते हुए दिन में सात घंटे से ज्यादा समय व्यतीत करने वाले 9 और 10-वर्षीय बच्चों के कॉर्टेक्स समय से पहले पतले होने का संकेत देते हैं। कॉर्टेक्स मस्तिष्क की बाहरी परत होती है, जो सेंसरी जानकारी को प्रोसेस करती है। एनआईएच आंकड़ों से यह भी पता चला है कि स्क्रीन पर दो घंटे से अधिक समय खर्च करने वाले बच्चे भाषा और तर्क परीक्षणों में भी खराब प्रदर्शन करते हैं। अकादमी की माता-पिता को सलाह है कि ‘डिजिटल मीडिया के उपयोग से बचें-वीडियो चैटिंग को छोड़कर 18 से 24 माह से कम उम्र के बच्चों में।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में न्यूरोलॉजी विभाग के प्रो. डा. रोहित भाटिया ने कहा कि स्क्रीन पर अधिक समय लगाने से सिर्फ आंखें ही प्रभावित नहीं होती हैं। पहले छह वर्षो में एक बच्चे का मस्तिष्क तेजी से विकसित होता है और उसे निष्क्रिय बैठे रहने के बजाय रचनात्मक स्टिमुलेशन की आवश्यकता होती है। स्क्रीन कंटेंट केवल निष्क्रियता को बढ़ाती है। एक समय में 10 मिनट से ज्यादा एक्सपोजर मस्तिष्क के विकास को प्रभावित कर सकता है। आज स्क्रीन टाइम में वृद्धि हुई है, विशेष रूप से बच्चों में। हालांकि काम निबटाने के लिए यह उपयोगी लग सकता है या बच्चे को वीडियो चलाकर खाना खिलाना आसान हो सकता है, लेकिन इसके कई दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभाव हो सकते हैं।
एचसीएफआई के अध्यक्ष पद्मश्री डा. के के अग्रवाल ने कहा, ‘भोजन के दौरान फोन पर कुछ देखते हुए खाने वाले बच्चे ज्यादा खुराक ले सकते हैं। वे भोजन और मनोरंजन के बीच अस्वास्थ्यकर कनेक्शन बनाना शुरू कर सकते हैं। मायोपिया या शॉर्ट-साइट के लिहाज से भी स्क्रीन पर बहुत अधिक समय लगाना जोखिमपूर्ण हो सकता है। यह आंखों पर अत्यधिक तनाव पैदा कर सकता है और आंखों के सूखेपन का कारण बन सकता है।’
दुष्प्रभाव:
यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिकल साईसेज में मनोरोग विभाग के अध्यक्ष डा. संजय अग्रवाल के अनुसार स्क्रीन-बेस्ड मीडिया बच्चों और उनके व्यवहार को प्रभावित कर सकता है, उदाहरण के लिए, बच्चे नकारात्मक व्यवहार, हिंसक चित्रण, हिंसक इमेजरी या विज्ञापन व अन्य मीडिया में इस्तेमाल हो रही भाषा से प्रभावित हो सकते हैं।
– ‘गैजेट्स के माध्यम से अलग-अलग स्ट्रीम द्वारा प्राप्त जानकारी मस्तिष्क के ग्रे मैटर के घनत्व को कम कर सकती हैं, जो संज्ञान और भावनात्मक नियंतण्रके लिए जिम्मेदार है। इस डिजिटल युग में, संयम ही अच्छे स्वास्थ्य की कुंजी होनी चाहिए, यानी, प्रौद्योगिकी का कम से कम उपयोग होना चाहिए। हम में से अधिकांश लोग ऐसे उपकरणों के दास बन गए हैं, जो वास्तव में हमें मुक्त करने के लिए बनाये गये थे ताकि हम जीवन का अनुभव कर सकें और साथ के लोगों के साथ अधिक समय बिता सकें। हम अपने बच्चों को भी उसी रास्ते पर ले जा रहे हैं।
सुझाव:
-बच्चों को व्यस्त रखने के लिए, फोन देने के बजाय, उनके साथ बातचीत करें और उनके साथ कुछ समय बिताएं। इससे किसी डिवाइस की आवश्यकता नहीं रहेगी।
-कंप्यूटर या टीवी को घर के खुले स्थान पर रखें। इस तरह उनके उपयोग को ट्रैक करना और स्क्रीन टाइम को सीमित करना आसान होगा।
– पूरे घर के लिए दिन में कुछ घंटे जीरो स्क्रीन टाइम होने चाहिए।
– अगर, माता-पिता के रूप में, आप मोबाइल और कंप्यूटर के लिए बहुत समय लगाते हैं, तो बच्चे स्वाभाविक रूप से आपके जैसा करेंगे। उनके लिए एक सकारात्मक भूमिका का मॉडल सामने रखें।

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