और कोर्ट ने दिया सम्मान से मरने का अधिकार – पैसिव इथोनेशिया को मिली सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी

0
672

निशी भाट नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने लाइलाज बीमारी में इच्छा मृत्यु का अधिकार दे दिया है तो बहुत हद तक अस्पतालों की मनमानी रूकेगी। मरीज यदि चाहेगा तो वह डेथ विल लिख सकेगा। बीते कई साल से इथोनेशिया या इच्छा मृत्यु पर बहस चल रही थी, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने शुक्रवार को इच्छा मृत्यु अधिकार पर मुहर लगाते हुए अधिकार के लिए गाइडलाइन बनाने की बात कही है, जिससे दुरूपयोग न हो सके।
आईएमए के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल ने बताया कि इच्छा मृत्यु के संदर्भ में चार तकनीकि पहलूओं को समझना जरूरी है,

एडवांस डायरेक्टिव- खुद के इलाज संबंधी जरूरी दिशानिर्देश को समझने की शक्ति या संवेदना जब मरीज में नहीं रह जाती है तो मरीज की इच्छा के अनुसार परिजन उसकी मर्जी से एडवांस डायरेक्टिव पर हस्ताक्षर करा सकते हैं।
लिविंग विल- लाइलाज बीमारी की ऐसी अवस्था में मरीज पहुंच चुका हो जबकि किसी भी तरह की दवा या सर्जरी का उसकी बीमारी पर कोई असर नहीं हो रहा है, और उसकी मानसिक स्थिति इतनी बेहतर है कि वह अपनी बीमारी की गंभीरता को इच्छी तरह समझ सकता है तो ऐसी अवस्था में मरीज अपनी मर्जी से लिविंग विल लिख सकता है, इसका मतलब है कि उसके इलाज पर अब पैसे न खर्च किए जाएं।
हेल्थ केयर प्रॉक्सी- मरीज द्वारा खुद अपनी परिवार में किसी एक व्यक्ति को अपने इलाज संबंधी सभी निर्णय लेने का अधिकार दिए जाने व्यक्ति को हेल्थ केयर प्रोक्सी कहा जाता है। मानसिक रोगियों के इलाज के संदर्भ में इसे अधिक मान्य माना गया है जबकि मरीज की मानसिक स्थिति बेहतर नहीं होती कि वह खुद की लिविंग विल लिख सके। एक तरह से मरीज के इलाज की पॉवर ऑफ आटर्नी अमुक व्यक्ति को दी जाती है।
डीएनआर या डू नॉट रिसस्टिकेट- कार्डियोप्लमोनरी अरेस्ट की स्थिति में इसका उपयोग किया जाता है, इसे सीपीआर इस्तेमाल करने की इच्छा या अनिच्छा से जोड़ा जाता है। बीमारी संबंधी भले ही मरीज की स्थिति अधिक बिगड़ रही हो लेकिन दिल के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सीपीआर तकनीक के लिए डीएनआर है कि मरीज को सीपीआर दिया जा सकता है।
सीसीयू और लाइफ सपोर्ट का खेल कम होगा
पापा से मैने दो हफ्ते पहले बात की थी, कैंसर की अंतिम अवस्था के शिकार पापा को पहले एक साल तक कीमो दिया गया। शहर के एक निजी अस्पताल में उन्हें भर्ती कराया गया। कुछ दिन तक इशारों में अपनी बात समझाने की कोशिश की, इसे बाद उन्होंने किसी भी बात का किसी भी तरह का जवाब देना बंद कर दिया, चिकित्सकों से जब पूछा जाता तो वो कहते सीसीयू में है, बाहर आते ही वह बात करने लगेगें, बिस्तर के पास का हार्ट रेट मॉनिटर चलता देखकर हम राहत की सांस लेते थे, लेकिन एक दिन अचानक सुबह वह मॉनिटर भी रूक गया और हमें बताया गया कि पिताजी नहीं रहें। उनकी दिल्ली इच्छा कि मौत कुछ इस कदर आएं कि अस्पतालों की मशीनों के बीच न हों।
लेकिन ऐसा कुछ हो न सका, और लाइफ सपोर्ट सिस्टम भी उन्हें जिंदगी न दे सका, परिजनों को पता था कि पिता लाइलाज बीमारी से जूझ रहे हैं। बेटी रहमत ने बताया कि हमें उस समय भी शक हुआ था कि पिता जी को मरने के बाद भी जिंदा दिखाया लेकिन हम कुछ नहीं कर सके।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here