कुदरत का कमाल: अति दुर्लभ र्हेकुइन इच्थ्योसिस ग्रस्त शिशु जन्मा -कस्तूरबा गांधी अस्पताल में जन्में इस शिशु ने जन्म के तीन घंटे बाद हुई मौत

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ज्ञान प्रकाश नई दिल्ली, उत्तरी दिल्ली नगर निगम के प्रसूति अस्पताल कस्तूरबा गांधी में सोमवार शाम को पैदा हुआ एक बच्चा डॉक्टरों समेत सभी के लिए कौतुहल का विषय बन गया। शाम करीब छह बजे जन्में इस बच्चे का त्वचा सफेद और गहरी दरारों वाली थी, मुंह समान्य से बड़ा, होठ बाहर की तरफ निकले हुए, आंखें अविकसित और बाहर की तरफ निकली हुई थी। इसके साथ ही बच्चे के हाथ और पैर मुड़े हुए थे और भौं, कान व जननांग नहीं था। इसे बचाने के लिए नियोनेटल आईसीयू में भी रखा गया था, लेकिन देर रात बच्चे ने मौत को गले लगा लिया। डॉक्टरों ने इसे र्हेकुइन इच्थ्योसिस बताया है। ऐसा तीन लाख में एक बच्चा होता है। हालांकि देश में इस तरह के अब तक केवल दो मामले ही रिपोर्ट हुए हैं।
अस्पताल की चिकित्सा अधिक्षक डा. संगीता नांगिया के अनुसार बच्चे की मां का नाम शहरीन है, जो करीब 20 साल की है और मुस्तफाबाद में रहती है। वह पहली बार गर्भवति हुई थी। वह कुछ समय से अस्पताल में अपना उपचार कराने के लिए पंजीकरण कराया था। दरअसल यह एक ऐसा मामला है, जिसका पता बच्चे के जन्म के बाद ही लग पाता है। उनकी मानें तो शहरीन का समय पर अल्ट्रासाउंड भी कराया गया था, लेकिन ऐसे मामलों का पता अल्ट्रासाउंड में नहीं लग पाता। वहीं शहरीन की मां बताती हैं कि इसी साल पहली फरवरी को शहरीन का निकाह उसके बुआ के लड़के कामिल से कराया था, जो उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर का रहने वाला है, लेकिन कुछ महीने पहले वह भी काम की तलाश में दिल्ली आ गया था।
जीन विकृति है:
अस्पताल के प्रसूति विभाग की वरिष्ठ सलाहकार डा. मारूति के अनुसार बच्चे के ऐसा होने की वजह आनुवांशिक है। दरअसल यह एबीसीए12 जीन की खराबी की वजह से होता है। उनकी मानें तो इसकी वजह से त्वचा के नीचे चर्बी नहीं बन पाती। इससे त्वचा काफी कठोर और सूखा हो जाता है। इसकी वजह से त्वचा सफेद और दरार वाली हो जाती है। इसके साथ ही बच्चे की आंख अविकसित रह जाती है और कभी कभी कान, भौं और जननांग नहीं बन पाते। उनका कहना है कि त्वचा में गहरी दरारों की वजह से इन्हें संक्रमण का ज्यादा खतरा होता है। वहीं त्वचा के ठोस होने की वजह से फेफड़े को फूलने की जगह नहीं मिल पाती, जिससे बच्चे ठीक से सांस नहीं ले पाते हैं। यही उनके मौत की वजह बनती है। डा. मारूती की मानें तो र्होक्विन इक्योसिस के मामले में जरूरी नहीं की सभी बच्चों की मौत हो ही जाए। देश से बाहर नेली नाम की एक लड़की है जिसका जन्म 1984 में हुआ था और वह लंबे समय तक जीवित थी। इसके साथ ही उनका कहना है कि मास्चराइजर या रेटीनोइडस एसीड के प्रयोग से त्वचा को सामन्य किया जा सकता है।

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