ज्ञान प्रकाश नई दिल्ली, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट के चिकित्सकों ने हाल ही में 23 वर्षीय इराकी महिला की लैप्रोस्कोपिक लेफ्ट लैटरल हेपेटेक्टोमी की, जिसने अपने बीमार बेटे को अपने लिवर का एक हिस्सा दान दिया है। अली (ढाई साल) बहा हुसैन लिवर की बीमारी से पीड़ित था और दिन-ब-दिन उसकी स्थिति बिगड़ती जा रही थी, ऐसे में उनकी मां आगे आई और स्वेच्छा से अपने लिवर का एक हिस्सा उसे डोनेट किया। भारत में यह पहला मामला है, जहां लिवर ट्रांसप्लांट में ऐसी न्यूनतम इन्वैसिव तकनीकी प्रक्रिया को अपनाया गया।
क्या थी बीमारी:
फोर्टिस में लिवर ट्रांसप्लांट यूनिट के निदेशक डा. विवेक विज ने दावा किया कि इस विधि का लिवर प्रत्यारोपण करने के पहली बार प्रयोग किया गया। मरीज अपनी मां से लिवर का एक हिस्सा प्राप्त करने वाले अली बहा हुसैन, ‘ग्लाइकोजेन स्टोरेज डिजिज’ नाम की बीमारी से ग्रस्त था, जो एडवांस्ड लिवर की बीमारी और लिवर सिरोसिस का पूर्व लक्षण है। बच्चा कमजोर था और उसका विकास रूक सा गया था। उसका अपनी उम्र के हिसाब से नहीं हुआ था। यह उसकी स्थिति बिगड़ने से पहले की बात थी। जब ऐसा हुआ तो उनकी मां आगे आई और स्वैच्छा से अपने लिवर का एक हिस्सा दान किया। गहन चिकित्सकीय जांच के बाद दानदाता मां के लेफ्ट लैटरल हिस्से से ग्राफ्ट निकाला गया। इस पूरी प्रक्रिया में 10 घंटे का समय लगा।
चुनौतियां:
इस सर्जरी के लिए न्यूनतम इन्वैसिव तकनीक का इस्तेमाल करने में कई तकनीकी कठिनाइयों का सामना करना पडत़ा, लेकिन इससे रोगी को कई लाभ भी होते हैं, जैसे कि दर्द कम होना, चीरे का निषान अदृष्य होना, जिससे मनोवैज्ञानिक और सामाजिक स्वीकृति के अच्छी बात है और घाव से जुड़ी जटिलताएं भी काफी कम होना। रोगी की रिकवरी भी अच्छी रही और डोनर को भी अस्पताल में काफी कम समय तक रहना पड़ा।
फायदे:
लिवर डोनर को न्यूनतम इन्वैसिव सर्जरी से काफी लाभ होगा क्योंकि लैप्रोस्कोपिक अंग प्रोक्योरमेंट में उत्कृश्ट कॉस्मैटिक एवं मनोवैज्ञानिक-सामाजिक परिणाम सुनिष्चित होते हैं। यह पहला मौका है जब भारत में इस तरह की सर्जरी की गई, कोरिया और फ्रांस जैसे देशों में ऐसी सर्जरी पहले से ही की जा रही है और उसके अच्छे नतीजे आ रहे हैं।